बिहार

bihar

सबसे पहले किसने किसको बांधा था रक्षासूत्र, जानिए कब है रक्षाबंधन का शुभ मुहूर्त? - RAKSHA BANDHAN 2024

By ETV Bharat Bihar Team

Published : Aug 19, 2024, 6:46 AM IST

RAKSHA BANDHAN SHUBH MUHURTA: भारतीय समाज में भाई-बंधन के रिश्ते की एक अलग ही गरिमा है. इसी गरिमा को और ऊंचाई प्रदान करता है रक्षाबंधन का पावन पर्व जो भारतीय जनमानस में रचा-बसा हुआ है. इस पर्व पर बहनें अपने भाई की कलाई में रक्षासूत्र बांधकर सभी विपत्तियों से रक्षा की कामना करती हैं तो भाई भी प्राण रहने तक बहन की रक्षा का संकल्प लेते हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि सबसे पहले किसने किसको रक्षासूत्र बांधा था और इस वर्ष रक्षाबंधन का शुभ मुहूर्त क्या है ?

रक्षाबंधन 2024
रक्षाबंधन 2024 (ETV Bharat GFX)

पटनाःसावन महीने की पूर्णिमा को मनाया जानेवाला रक्षाबंधन का पर्व भाई-बहन के पवित्र संबंध को नवीनता प्रदान करनेवाला पर्व है. सभी विपत्तियों से बचाने की कामना के साथ बहन अपने भाई की कलाई में रक्षासूत्र बांधती है और भाई अपने प्राणों की आहुति देकर भी बहन की रक्षा का संकल्प लेता है. वैसे तो ये पर्व भाई-बहन के पवित्र प्रेम का प्रतीक है लेकिन इसका वर्णन पुराणों में व्यापक तौर पर है. रक्षासूत्र से जुड़ी पौराणिक कथा के पहले जान लेते हैं कि आज रक्षाबंधन के लिए उत्तम मुहूर्त कब है.

आज मकर राशि की भद्रा है: ज्योतिष शास्त्र की मान्यताओं के मुताबिक भद्राकाल में राखी नहीं बांधनी चाहिए क्योंकि भद्राकाल में रक्षाबंधन शुभ नहीं माना जाता है. काशी पंचाग के अनुसार आज दिन में 1 बजकर 25 मिनट तक भद्रा है लेकिन आपको बता दें कि ये भद्रा मकर राशि की है और मुहूर्त चिंतामणि के अनुसार मकर राशि की भद्रा का वास पाताल लोक में होता है और जहां भद्रा का वास होता है वहीं उसका फल भी होता है. इस तरह आज भद्राकाल के कारण रक्षाबंधन में कोई बाधा नहीं है और दिन भर रक्षाबंधन का मुहूर्त है.

पुराणों में है रक्षाबंधन का वर्णनः रक्षाबंधन पर्व की शुरुआत की बात की जाय तो ये विजय पाने के लिए किया गया बंधन है. भविष्य पुराण के अनुसार कई वर्षों तक चले देवासुर संग्राम में असुरों ने देवताओं को परास्त कर देवराज इंद्र के सिंहासन सहित तीनों लोकों में अपना सामाज्य स्थापित कर लिया. असुरों से पराजित होने के बाद देवराज इंद ने देवगुरू बृहस्पति से असुरों पर विजय प्राप्त करने का उपाय पूछा.

गुरु बृहस्पति ने किया रक्षा विधानः इंद्र को दुःखी देख गुरु बृहस्पति ने रक्षा विधान का अनुष्ठान किया. श्रावण महीने के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को गुरू बृहस्पति ने रक्षा विधान संस्कार आरंभ किया,रक्षा विधान संस्कार के अनुष्ठान के दौरान उन्होंने रक्षा पोटली को अभिमंत्रित किया.

शची ने इंद्र को बांधी रक्षा पोटलीः अनुष्ठान संपन्न होने के बाद देवराज इंद्र की पत्नी शची ने वो अभिमंत्रित रक्षा पोटली इंद्र के दाहिने हाथ पर बांधा और गुरु बृहस्पति ने स्वस्तिवाचन किया और रक्षामंत्र पढ़ा.

येन बद्धो बलि राजा दानवेन्द्रो महा बल:।

तेन त्वामपि बध्नामि रक्षे मा चल मा चल ॥

अर्थात् जिस रक्षा सूत्र से महान शक्ति शाली दानवेन्द्र राजा बलि को बांधा गया था उसी सूत्र से मैं तुझे बांधता हूँ. हे रक्षे (राखी )! तुम अडिग रहना (तू अपने संकल्प से कभी विचलित न हो)

इस रक्षा पोटली की शक्ति से देवराज इंद्र ने असुरों को परास्त किया और अपना राज्य पुनः प्राप्त किया.

पुरोहित-आचार्य बांधते हैं रक्षासूत्रः आज भी बहनें अपने भाइयों की कलाई में रक्षासूत्र तो बांधती ही हैं, वहीं पुरोहित और आचार्य भी अपने यजमानों-शिष्यों को रक्षासूत्र बांधकर आशीर्वाद देते हैं और बदले में यजमान और शिष्य दक्षिणा देते हैं.

यह भी पढ़ेंःये रक्षाबंधन कुछ खास है.. भाई की कलाई पर सजेगी 3.50 लाख की राखी, मार्केट में आई धाकड़ डिजाइन - Raksha Bandhan

ABOUT THE AUTHOR

...view details