नई दिल्ली: भारत पहली बार कोलंबो प्रोसेस का अध्यक्ष बना है. इस मंच की स्थापना के दो दशक से अधिक समय के बाद यह पहला मौका है, जब भारत इसका अध्यक्ष बनाया गया है. यह एशियाई देशों के लिए विदेशी रोजगार और कॉन्ट्रैक्चुअल लेबर मैनेजमेंट को लिए एक क्षेत्रीय परामर्श प्रक्रिया है.
इस संबंध में विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने बुधवार को एक्स पर पोस्ट किया, 'सुरक्षित, व्यवस्थित और कानूनी प्रवास को बढ़ावा.' भारत ने कोलंबो प्रोसेस की शुरुआत के बाद पहली बार 2024-26 के लिए इसकी अध्यक्षता संभाली है.
उन्होंने कहा कि कोलंबो प्रोसेस दक्षिण और दक्षिण पूर्व एशियाई के प्रवासी श्रमिक के देशों की एक क्षेत्रीय परामर्श प्रक्रिया है. यह विदेशी रोजगार पर बातचीत के एक मंच के रूप में काम करता है.
कब हुई कोलंबो प्रोसेस की स्थापना?
कोलंबो प्रोसेस की स्थापना 2003 में हुई थी. इसे श्रीलंका के कोलंबो में आयोजित मंत्रिस्तरीय परामर्श के दौरान लॉन्च किया गया था, इसलिए इसका नाम कोलंबो रखा गया. यह दक्षिण और दक्षिण-पूर्व एशियाई लेबर को विदेशों में भेजने वाले सदस्यों राज्यों को बातचीत के लिए मंच प्रदा करता है. इसका उद्देश्य लेबर से संबंधित साझा हितों और चिंताओं के मुद्दों पर बातचीत और सहयोग को सुविधाजनक बनाना है.
गौरतलब है कि कोलंबो प्रोसेस में एशिया के 12 सदस्य देश शामिल हैं. इनमें अफगानिस्तान, बांग्लादेश, चीन, भारत, इंडोनेशिया, नेपाल, पाकिस्तान, फिलीपींस, श्रीलंका, थाईलैंड और वियतनाम शामिल हैं. इस प्रक्रिया को जिनेवा में संयुक्त राष्ट्र में सदस्य देशों के स्थायी मिशनों के माध्यम कोर्डिनेट किया जाता है. भारत 2003 में कोलंबो प्रोसेस की स्थापना के बाद से ही इसका सदस्य है.
अंतरराष्ट्रीय प्रवासन संगठन (IOM) के अनुसार, कोलंबो प्रोसेस का उद्देश्य एशियाई लेबर भेजने वाले देशों के लिए एक मंच प्रदान करना है, ताकि वे विदेशी रोजगार और मजदूरों के हितों से जुड़े मामलों पर चर्चा कर सकें.
क्या है इसकी जरूरत थी?
आईओएम के अनुसार हर साल लगभग तीन मिलियन एशियाई लेबर विदेशों में काम करने के लिए जाती है. इनमें से एक बड़ा हिस्सा (दक्षिण और दक्षिण-पूर्व एशिया से) खाड़ी देशों में जाता है, जबकि कुछ अन्य उत्तरी अमेरिका, यूरोप और अन्य एशियाई देशों में चले जाते हैं. उल्लेखनीय है कि भारत, खास तौर पर खाड़ी के देशों में मजदूर भेजने वाला प्रमुख देश है.
आईओएम की वेबसाइट के मुताबिक जैसे-जैसे एशियाई प्रवासी कामगारों की संख्या बढ़ती जा रही है और वैसे-वैसे विदेशों में विविधता आ रही है. उनका प्रभाव क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तेजी से महसूस किया जा रहा है. साथ ही कई औद्योगिक अर्थव्यवस्था वाले देशों में कुशल/कम-कुशल श्रमिकों की निरंतर आवश्यकता के कारण एशियाई प्रवासी कामगारों की कुल संख्या में वृद्धि होने की संभावना है.
कोलंबो प्रोसेस में शामिल देशों ने पुष्टि की कि श्रम गतिशीलता की चुनौतियों के प्रति क्षेत्रीय प्रतिक्रिया में सुधार लाने और संगठित श्रम गतिशीलता के लाभों को अनुकूल बनाने के लिए और प्रयास करने की जरूरत है.
कोलंबो प्रोसेस के प्राथमिकता वाले क्षेत्र क्या हैं?
कोलंबो प्रोसेस पांच को प्राथमिकता के साथ संबोधित करती है और इन प्राथमिकता वाले क्षेत्रों में चार क्रॉसकटिंग थीम को भी शामिल करती है. क्रॉसकटिंग थीम का काम प्रवासी स्वास्थ्य, संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्यों का संचालन, महिला प्रवासी श्रमिकों के लिए समानता को बढ़ावा देना और प्रवासी श्रमिकों के लिए कांसुलर समर्थन देना है.
विदेश मंत्रालय द्वारा साझा किए गए संक्षिप्त विवरण के अनुसार, ADD जोकि एक क्षेत्रीय, स्वैच्छिक और गैर-बाध्यकारी परामर्श प्रक्रिया है. इसमें भी कोलंबो प्रोसेस के 12 सदस्य देश शामिल हैं. इसकी स्थापना 2008 में की गई थी. इसके मकसद भी एशियाई देशों के बीच संवाद और सहयोग के लिए एक मंच के देने के लिए की गई थी. भारत 2008 से ADD का सदस्य है.
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