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ब्रह्मपुत्र नदी पर चीन बना रहा दुनिया का सबसे बड़ा और महंगा बांध, अब इन चुनौतियों से कैसे निपटेगा भारत? - CHINA MEGA DAM ON BRAHMAPUTRA

भारत ने कहा है कि उसने तिब्बत में ब्रह्मपुत्र पर विशाल बांध के निर्माण का मुद्दा चीन के समक्ष उठाया है. अब आगे क्या होगा? वरिष्ठ पत्रकार अरुणिम भुइयां ने विस्तार से समझाया है.

brahamputra river
चीन में यारलुंग त्सांगपो भारत में ब्रह्मपुत्र नदी (फाइल फोटो) (AFP)
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By Aroonim Bhuyan

Published : Jan 4, 2025, 3:22 PM IST

Updated : Jan 4, 2025, 3:39 PM IST

नई दिल्ली: चीन अपनी विस्तारवादी नीतियों से बाज नहीं आ रहा है. बीजिंग की यही नीति पूरी दुनिया को नाक में दम कर रखा है. चीन ने एक बार फिर झिंजियांग में दो नए काउंटी स्थापित करके एक भड़काऊ कदम उठाया है. भारत के लिए चिंता का विषय यह भी है कि, बीजिंग ने चीन में यारलुंग त्सांगपो नदी यानी की ब्रह्मपुत्र नदी पर दुनिया का सबसे बड़ा बांध बनाने का फैसला किया है.

चीन का ये प्रोजेक्ट एक विशाल हाइड्रोपॉवर परियोजना को लेकर है. खबर है कि, उसने नदी के जल पर अपने स्थापित अधिकारों का दावा करते हुए निचले तटवर्ती देशों के हितों को भी ध्यान में रखा है. वहीं, विदेश मंत्रालय ने ब्रह्मपुत्र नदी पर ऐसी परियोजनाओं के प्रभाव के बारे में लंबे समय से चली आ रही चिंताओं को दोहराया है. उसने बीजिंग से पारदर्शी व्यवहार अपनाने और प्रभावित देशों के साथ परामर्श करने का आह्वान किया है.

विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने मीडिया ब्रीफिंग के दौरान कहा कि, 'निचले तटवर्ती देश के रूप में, हमने नदी के जल के उपयोग के अधिकार स्थापित किए हैं. हमने विशेषज्ञ स्तर के साथ-साथ कूटनीतिक चैनलों के माध्यम से चीनी पक्ष को उनके क्षेत्र में मेगा परियोजनाओं पर अपने विचार और चिंताएं लगातार बताई हैं.'

जायसवाल ने कहा कि, भारत के विचारों को नवीनतम रिपोर्ट के बाद पारदर्शिता की आवश्यकता और डाउनस्ट्रीम देशों के साथ परामर्श के साथ दोहराया गया है. उन्होंने कहा कि, चीनी पक्ष से यह सुनिश्चित करने का आग्रह किया गया है कि ब्रह्मपुत्र के डाउनस्ट्रीम राज्यों के हितों को अपस्ट्रीम क्षेत्रों में गतिविधियों से नुकसान न पहुंचे. हम अपने हितों की रक्षा के लिए निगरानी और आवश्यक उपाय करना जारी रखेंगे.'

सरकारी समाचार एजेंसी सिन्हुआ ने एक आधिकारिक बयान का हवाला देते हुए बताया कि, पिछले महीने चीनी सरकार ने यारलुंग त्सांगपो नदी की निचली पहुंच पर बांध के निर्माण को मंजूरी दी. 137 बिलियन डॉलर की लागत से बनने वाला यह बांध पूरा होने पर दुनिया की सबसे बड़ी जलविद्युत परियोजना होने की उम्मीद है और इससे सालाना लगभग 300 बिलियन किलोवाट-घंटे (kWh) बिजली का उत्पादन होगा. इसका मतलब है कि यह चीन में यांग्त्जी नदी पर बने थ्री गॉर्जेस बांध से तीन गुना ज्यादा बिजली पैदा करेगा, जो वर्तमान में दुनिया की सबसे बड़ी जलविद्युत परियोजना है.

हालांकि इस विशाल परियोजना को चीन की 2021 से 2025 तक की 14वीं पंचवर्षीय योजना में शामिल किया गया था. हालांकि, पिछले महीने ही बीजिंग ने इसे मंज़ूरी दी थी. जिसको भारत और बांग्लादेश ने चिंता जताई थी.

चीनी विदेश मंत्रालय ने बांध के निर्माण का बचाव करते हुए कहा है कि, चीन हमेशा से सीमा पार की नदियों के विकास के लिए जिम्मेदार रहा है. पिछले महीने बीजिंग में एक नियमित मीडिया ब्रीफिंग के दौरान, विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता माओ निंग ने कहा कि, यारलुंग त्सांगपो (भारत में ब्रह्मपुत्र) नदी के निचले इलाकों में चीन के जलविद्युत विकास का उद्देश्य "स्वच्छ ऊर्जा के विकास में तेजी लाना और जलवायु परिवर्तन और चरम जलविद्युत आपदाओं का जवाब देना है.'

इस मामले की सच्चाई यह है कि ब्रह्मपुत्र अरुणाचल प्रदेश और असम की जीवन रेखा है, जो पीने, सिंचाई और जलविद्युत के लिए पानी उपलब्ध कराती है. तिब्बत में एक बांध शुष्क मौसम के दौरान पानी के प्रवाह को काफी कम कर सकता है, जिससे कृषि और पीने के पानी की आपूर्ति प्रभावित हो सकती है. कम प्रवाह से नदी में गाद जमा हो सकती है, जिससे बाढ़ के मैदानों में मिट्टी की उर्वरता पर खराब प्रभाव पड़ सकता है.

भारत का पूर्वोत्तर क्षेत्र मानसून के दौरान भीषण बाढ़ से ग्रस्त रहता है. यदि चीन भारी वर्षा के दौरान बांध से पानी छोड़ने का फैसला करता है, तो यह निचले इलाकों में बाढ़ को बढ़ा सकता है, जिससे जान-माल का व्यापक नुकसान हो सकता है. ब्रह्मपुत्र क्षेत्र में व्यापक कृषि गतिविधियों का समर्थन करता है. नदी के प्रवाह में कोई भी परिवर्तन खेती के चक्र को बाधित कर सकता है, जिससे लाखों किसानों की आजीविका प्रभावित हो सकती है. बांध के कारण पानी के तीव्र बहाव से मिट्टी की गुणवत्ता प्रभावित हो सकती है, जिससे कृषि उत्पादकता कम हो सकती है.

ब्रह्मपुत्र बेसिन अद्वितीय पारिस्थितिकी तंत्र और विविध प्रजातियों का घर है, जिसमें लुप्तप्राय गंगा डॉल्फिन और विभिन्न प्रवासी पक्षी शामिल हैं. नदी के प्रवाह में परिवर्तन से इन जीवों पर संकट पैदा हो सकता है और जैव विविधता में गिरावट आ सकती है. प्रजनन के लिए नदी के प्राकृतिक प्रवाह पर निर्भर रहने वाली मछलियों की आबादी को गंभीर खतरों का सामना करना पड़ सकता है, जिससे स्थानीय मछली पकड़ने वाले समुदाय प्रभावित हो सकते हैं.

भारत के पूर्वोत्तर राज्यों, विशेष रूप से अरुणाचल प्रदेश में ब्रह्मपुत्र और उसकी सहायक नदियों पर जलविद्युत विकास की महत्वाकांक्षी योजनाएं हैं. अपस्ट्रीम डैमिंग के कारण कम जल प्रवाह इन परियोजनाओं को कमजोर कर सकता है, जिससे भारत के ऊर्जा लक्ष्य प्रभावित हो सकते हैं.

बता दें कि,ब्रह्मपुत्र भारत की प्रमुख नदियों में से एक है. यह तिब्बत, भारत तथा बांग्लादेश से होकर बहती है. ब्रह्मपुत्र का उद्गम हिमालय के उत्तर में तिब्बत के मानसरोवर झील के निकट से होता है. यहां इसे यारलुंग त्सांगपो कहा जाता है. तिब्बत से निकलकर यह नदी भारत के अरुणाचल प्रदेश राज्य में प्रवेश करती है.

भारत के पाकिस्तान और बांग्लादेश के साथ नदी जल बंटवारे को लेकर विवाद हैं. हालांकि, इन मुद्दों को बातचीत के जरिए सुलझाया जा सकता है क्योंकि भारत ने इन दोनों देशों के साथ उचित संधियां की हैं. पाकिस्तान के साथ भारत की सिंधु जल संधि है और बांग्लादेश के साथ गंगा जल बंटवारे की संधि है. लेकिन, चीन के साथ भारत की ऐसी कोई संधि नहीं है. भारत और चीन के बीच केवल एक समझौता ज्ञापन (एमओयू) है जिसके तहत चीनी पक्ष ब्रह्मपुत्र पर हाइड्रोलॉजिकल डेटा प्रदान करता है। विशेषज्ञों के अनुसार, यह एक अस्थायी समझौता है जिसे हर पांच साल में नवीनीकृत किया जाता है और चीन जब चाहे इसे अमान्य घोषित कर सकता है.

चीन द्वारा बांध बनाने के फैसले की खबरों के मद्देनजर, असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने चिंता जताते हुए कहा कि यह परियोजना पूरे पारिस्थितिकी तंत्र को कमजोर और शुष्क बना देगी. उन्होंने यह भी कहा कि बांध के कारण असम को अरुणाचल प्रदेश और भूटान से आने वाले वर्षा जल पर निर्भर होना पड़ेगा. सरमा ने कहा कि, भारत सरकार ने पहले ही चीनी पक्ष को अपनी चिंता से अवगत करा दिया है.

उन्होंने इस सप्ताह की शुरुआत में गुवाहाटी में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान कहा, "मुझे यकीन है कि भारत और चीन के बीच चल रही वार्ता प्रक्रिया में भारतीय पक्ष इस मुद्दे को उठाएगा." उन्होंने कहा, "हमने पहले ही बता दिया है कि अगर यह बांध आता है तो ब्रह्मपुत्र का पारिस्थितिकी तंत्र कमजोर और शुष्क हो जाएगा और फिर हम अरुणाचल प्रदेश और भूटान के वर्षा जल पर निर्भर हो जाएंगे."

शुक्रवार को विदेश मंत्रालय के बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए मनोहर पर्रिकर रक्षा अध्ययन और विश्लेषण संस्थान के वरिष्ठ फेलो और ट्रांसबाउंड्री जल मुद्दों पर एक प्रमुख टिप्पणीकार उत्तम कुमार सिन्हा ने कहा कि हालांकि इस पर कहने के लिए ज्यादा कुछ नहीं है, लेकिन निचले तटवर्ती राज्यों का उल्लेख महत्वपूर्ण है. सिन्हा ने ईटीवी भारत से कहा, "विदेश मंत्रालय ने कहा है कि हम इस मुद्दे पर चीन के साथ परामर्श कर रहे हैं." उन्होंने कहा, "इस बार अंतर यह है कि हम निचले तटवर्ती राज्यों का उल्लेख कर रहे हैं जिनमें बांग्लादेश और भूटान भी शामिल हैं."

ये भी पढ़ें: नहीं सुधरेगा चीन! लद्दाख के इलाके में नई काउंटी बनाने पर बढ़ी टेंशन, भारत ने किया कड़ा विरोध

नई दिल्ली: चीन अपनी विस्तारवादी नीतियों से बाज नहीं आ रहा है. बीजिंग की यही नीति पूरी दुनिया को नाक में दम कर रखा है. चीन ने एक बार फिर झिंजियांग में दो नए काउंटी स्थापित करके एक भड़काऊ कदम उठाया है. भारत के लिए चिंता का विषय यह भी है कि, बीजिंग ने चीन में यारलुंग त्सांगपो नदी यानी की ब्रह्मपुत्र नदी पर दुनिया का सबसे बड़ा बांध बनाने का फैसला किया है.

चीन का ये प्रोजेक्ट एक विशाल हाइड्रोपॉवर परियोजना को लेकर है. खबर है कि, उसने नदी के जल पर अपने स्थापित अधिकारों का दावा करते हुए निचले तटवर्ती देशों के हितों को भी ध्यान में रखा है. वहीं, विदेश मंत्रालय ने ब्रह्मपुत्र नदी पर ऐसी परियोजनाओं के प्रभाव के बारे में लंबे समय से चली आ रही चिंताओं को दोहराया है. उसने बीजिंग से पारदर्शी व्यवहार अपनाने और प्रभावित देशों के साथ परामर्श करने का आह्वान किया है.

विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने मीडिया ब्रीफिंग के दौरान कहा कि, 'निचले तटवर्ती देश के रूप में, हमने नदी के जल के उपयोग के अधिकार स्थापित किए हैं. हमने विशेषज्ञ स्तर के साथ-साथ कूटनीतिक चैनलों के माध्यम से चीनी पक्ष को उनके क्षेत्र में मेगा परियोजनाओं पर अपने विचार और चिंताएं लगातार बताई हैं.'

जायसवाल ने कहा कि, भारत के विचारों को नवीनतम रिपोर्ट के बाद पारदर्शिता की आवश्यकता और डाउनस्ट्रीम देशों के साथ परामर्श के साथ दोहराया गया है. उन्होंने कहा कि, चीनी पक्ष से यह सुनिश्चित करने का आग्रह किया गया है कि ब्रह्मपुत्र के डाउनस्ट्रीम राज्यों के हितों को अपस्ट्रीम क्षेत्रों में गतिविधियों से नुकसान न पहुंचे. हम अपने हितों की रक्षा के लिए निगरानी और आवश्यक उपाय करना जारी रखेंगे.'

सरकारी समाचार एजेंसी सिन्हुआ ने एक आधिकारिक बयान का हवाला देते हुए बताया कि, पिछले महीने चीनी सरकार ने यारलुंग त्सांगपो नदी की निचली पहुंच पर बांध के निर्माण को मंजूरी दी. 137 बिलियन डॉलर की लागत से बनने वाला यह बांध पूरा होने पर दुनिया की सबसे बड़ी जलविद्युत परियोजना होने की उम्मीद है और इससे सालाना लगभग 300 बिलियन किलोवाट-घंटे (kWh) बिजली का उत्पादन होगा. इसका मतलब है कि यह चीन में यांग्त्जी नदी पर बने थ्री गॉर्जेस बांध से तीन गुना ज्यादा बिजली पैदा करेगा, जो वर्तमान में दुनिया की सबसे बड़ी जलविद्युत परियोजना है.

हालांकि इस विशाल परियोजना को चीन की 2021 से 2025 तक की 14वीं पंचवर्षीय योजना में शामिल किया गया था. हालांकि, पिछले महीने ही बीजिंग ने इसे मंज़ूरी दी थी. जिसको भारत और बांग्लादेश ने चिंता जताई थी.

चीनी विदेश मंत्रालय ने बांध के निर्माण का बचाव करते हुए कहा है कि, चीन हमेशा से सीमा पार की नदियों के विकास के लिए जिम्मेदार रहा है. पिछले महीने बीजिंग में एक नियमित मीडिया ब्रीफिंग के दौरान, विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता माओ निंग ने कहा कि, यारलुंग त्सांगपो (भारत में ब्रह्मपुत्र) नदी के निचले इलाकों में चीन के जलविद्युत विकास का उद्देश्य "स्वच्छ ऊर्जा के विकास में तेजी लाना और जलवायु परिवर्तन और चरम जलविद्युत आपदाओं का जवाब देना है.'

इस मामले की सच्चाई यह है कि ब्रह्मपुत्र अरुणाचल प्रदेश और असम की जीवन रेखा है, जो पीने, सिंचाई और जलविद्युत के लिए पानी उपलब्ध कराती है. तिब्बत में एक बांध शुष्क मौसम के दौरान पानी के प्रवाह को काफी कम कर सकता है, जिससे कृषि और पीने के पानी की आपूर्ति प्रभावित हो सकती है. कम प्रवाह से नदी में गाद जमा हो सकती है, जिससे बाढ़ के मैदानों में मिट्टी की उर्वरता पर खराब प्रभाव पड़ सकता है.

भारत का पूर्वोत्तर क्षेत्र मानसून के दौरान भीषण बाढ़ से ग्रस्त रहता है. यदि चीन भारी वर्षा के दौरान बांध से पानी छोड़ने का फैसला करता है, तो यह निचले इलाकों में बाढ़ को बढ़ा सकता है, जिससे जान-माल का व्यापक नुकसान हो सकता है. ब्रह्मपुत्र क्षेत्र में व्यापक कृषि गतिविधियों का समर्थन करता है. नदी के प्रवाह में कोई भी परिवर्तन खेती के चक्र को बाधित कर सकता है, जिससे लाखों किसानों की आजीविका प्रभावित हो सकती है. बांध के कारण पानी के तीव्र बहाव से मिट्टी की गुणवत्ता प्रभावित हो सकती है, जिससे कृषि उत्पादकता कम हो सकती है.

ब्रह्मपुत्र बेसिन अद्वितीय पारिस्थितिकी तंत्र और विविध प्रजातियों का घर है, जिसमें लुप्तप्राय गंगा डॉल्फिन और विभिन्न प्रवासी पक्षी शामिल हैं. नदी के प्रवाह में परिवर्तन से इन जीवों पर संकट पैदा हो सकता है और जैव विविधता में गिरावट आ सकती है. प्रजनन के लिए नदी के प्राकृतिक प्रवाह पर निर्भर रहने वाली मछलियों की आबादी को गंभीर खतरों का सामना करना पड़ सकता है, जिससे स्थानीय मछली पकड़ने वाले समुदाय प्रभावित हो सकते हैं.

भारत के पूर्वोत्तर राज्यों, विशेष रूप से अरुणाचल प्रदेश में ब्रह्मपुत्र और उसकी सहायक नदियों पर जलविद्युत विकास की महत्वाकांक्षी योजनाएं हैं. अपस्ट्रीम डैमिंग के कारण कम जल प्रवाह इन परियोजनाओं को कमजोर कर सकता है, जिससे भारत के ऊर्जा लक्ष्य प्रभावित हो सकते हैं.

बता दें कि,ब्रह्मपुत्र भारत की प्रमुख नदियों में से एक है. यह तिब्बत, भारत तथा बांग्लादेश से होकर बहती है. ब्रह्मपुत्र का उद्गम हिमालय के उत्तर में तिब्बत के मानसरोवर झील के निकट से होता है. यहां इसे यारलुंग त्सांगपो कहा जाता है. तिब्बत से निकलकर यह नदी भारत के अरुणाचल प्रदेश राज्य में प्रवेश करती है.

भारत के पाकिस्तान और बांग्लादेश के साथ नदी जल बंटवारे को लेकर विवाद हैं. हालांकि, इन मुद्दों को बातचीत के जरिए सुलझाया जा सकता है क्योंकि भारत ने इन दोनों देशों के साथ उचित संधियां की हैं. पाकिस्तान के साथ भारत की सिंधु जल संधि है और बांग्लादेश के साथ गंगा जल बंटवारे की संधि है. लेकिन, चीन के साथ भारत की ऐसी कोई संधि नहीं है. भारत और चीन के बीच केवल एक समझौता ज्ञापन (एमओयू) है जिसके तहत चीनी पक्ष ब्रह्मपुत्र पर हाइड्रोलॉजिकल डेटा प्रदान करता है। विशेषज्ञों के अनुसार, यह एक अस्थायी समझौता है जिसे हर पांच साल में नवीनीकृत किया जाता है और चीन जब चाहे इसे अमान्य घोषित कर सकता है.

चीन द्वारा बांध बनाने के फैसले की खबरों के मद्देनजर, असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने चिंता जताते हुए कहा कि यह परियोजना पूरे पारिस्थितिकी तंत्र को कमजोर और शुष्क बना देगी. उन्होंने यह भी कहा कि बांध के कारण असम को अरुणाचल प्रदेश और भूटान से आने वाले वर्षा जल पर निर्भर होना पड़ेगा. सरमा ने कहा कि, भारत सरकार ने पहले ही चीनी पक्ष को अपनी चिंता से अवगत करा दिया है.

उन्होंने इस सप्ताह की शुरुआत में गुवाहाटी में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान कहा, "मुझे यकीन है कि भारत और चीन के बीच चल रही वार्ता प्रक्रिया में भारतीय पक्ष इस मुद्दे को उठाएगा." उन्होंने कहा, "हमने पहले ही बता दिया है कि अगर यह बांध आता है तो ब्रह्मपुत्र का पारिस्थितिकी तंत्र कमजोर और शुष्क हो जाएगा और फिर हम अरुणाचल प्रदेश और भूटान के वर्षा जल पर निर्भर हो जाएंगे."

शुक्रवार को विदेश मंत्रालय के बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए मनोहर पर्रिकर रक्षा अध्ययन और विश्लेषण संस्थान के वरिष्ठ फेलो और ट्रांसबाउंड्री जल मुद्दों पर एक प्रमुख टिप्पणीकार उत्तम कुमार सिन्हा ने कहा कि हालांकि इस पर कहने के लिए ज्यादा कुछ नहीं है, लेकिन निचले तटवर्ती राज्यों का उल्लेख महत्वपूर्ण है. सिन्हा ने ईटीवी भारत से कहा, "विदेश मंत्रालय ने कहा है कि हम इस मुद्दे पर चीन के साथ परामर्श कर रहे हैं." उन्होंने कहा, "इस बार अंतर यह है कि हम निचले तटवर्ती राज्यों का उल्लेख कर रहे हैं जिनमें बांग्लादेश और भूटान भी शामिल हैं."

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Last Updated : Jan 4, 2025, 3:39 PM IST
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