नई दिल्ली : 15वां वित्त आयोग टैक्स की राशि का जिस फॉर्मूले पर वितरण कर रहा है, उसको लेकर कुछ राज्यों ने आवाज उठाई है, खासकर दक्षिण भारत के राज्यों ने. 15वें वित्त आयोग के अनुसार जिनकी जितनी आबादी, उनका उतना टैक्स में हिस्सा. इस फॉर्मूले को लेकर तमिलनाडु, केरल, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और कर्नाटक ने आवाज उठाई है. उनका कहना है कि उन्होंने आबादी पर नियंत्रण लगाया है, लिहाजा उन्हें इसका पुरस्कार मिलना चाहिए, न कि इसके बदले उन्हें टैक्स में कम राशि वितरित की जानी चाहिए. आइए इस पर एक नजर डालते हैं.
वित्त आयोग क्या है
वित्त आयोग एक संवैधानिक संस्था है, जिसका मुख्य कार्य केंद्र और राज्यों के बीच राजस्व संसाधनों के आवंटन से जुड़ा है. इसकी स्थापना संविधान के अनुच्छेद 280 के तहत की गई है. मूलतः इसे केंद्र और राज्यों के बीच वित्तीय संबंधों को परिभाषित करने के लिए बनाया गया था. इसका गठन 1951 में हुआ था.
सेस पर बहस - सेस यानी उपकर को लेकर हमेशा बहस होती रही है. सेस पर केंद्र की अधिक निर्भरता के काण राज्यों को पैसे कम हस्तांतरित होते हैं. यह बहस भी काफी पुराना है. हालांकि, 2024 लोकसभा चुनाव के मद्देनजर एक बार फिर से इस विषय पर बहस छिड़ चुकी है.
विवाद के दो प्रमुख बिंदु - पहला - 15 वें वित्त आयोग की अनुशंसाओं के आधार पर तुलना करें, तो पिछले कुछ वर्षो में यह राशि कम लगती है. दूसरा बिंदु है- दक्षिण के उन राज्यों, जिन्होंने वित्तीय अनुशासन का पालन किया है, पर उनकी आबादी कम है, तो उन्हें इसका नुकसान क्यों उठाना पड़ता है. इसके ठीक विपरीत उत्तर भारत के राज्यों को आबादी अधिक होने की वजह से अधिक फायदा मिलता है.
15 वां वित्त आयोग- कर हस्तांतरण से तात्पर्य केंद्र द्वारा राज्यों को केंद्रीय करों और ड्यूटी के वितरण से है. राज्य इस आवंटित धनराशि को विकास, कल्याण और प्राथमिकता-क्षेत्र की परियोजनाओं और योजनाओं पर खर्च करता है. वर्तमान में, 15वें वित्त आयोग की सिफारिश के अनुसार, केंद्र के विभाज्य कर पूल (डिविजिबल टैक्स पूल) का 41 प्रतिशत 14 किश्तों में दिया जा रहा है. यह 2021-22 से 2025-26 की पांच साल की अवधि को कवर कर रहा है.
रिजर्व बैंक का स्टेटमेंट- हालांकि, वित्तीय वर्ष 2025 में इसे 35.5 प्रतिशत करने की योजना है. रिजर्व बैंक ने स्टेट फाइनेंस के नवीनतम रिपोर्ट में कहा है- उपकर और अधिभार में वृद्धि के कारण, 15वें वित्त पैनल द्वारा अनुशंसित कर हस्तांतरण में 10 प्रतिशत अंक की वृद्धि के बावजूद, विभाज्य पूल 2011-12 में सकल कर राजस्व के 88.6 प्रतिशत से घटकर 2021-22 में 78.9 प्रतिशत हो गया है. आरबीआई ने सुझाव दिया, क्योंकि वास्तविक कर हस्तांतरण केंद्र द्वारा लगाए गए उपकरों और अधिभारों पर निर्भर करता है, इसलिए राज्यों को अपनी वित्तीय क्षमता बढ़ाने और हस्तांतरण पर निर्भरता कम करने की आवश्यकता है.
उत्तर वर्सेस दक्षिण - दक्षिण के राज्यों ने 2020 से पहले भी इस मुद्दे को उठाया था. उस समय 15 वित्त आयोग ने अपनी रिपोर्ट सौंपी थी. इसने 2011 के सेंसस को आधार बनाया था. इस आधार पर ही टैक्स हस्तांतरण की राशि निश्चित की गई थी. लेकिन इसने उस फैक्टर को भी जोड़ा था, जिसमें जनसंख्या को नियंत्रित करने वाले राज्यों को रिवार्ड देने की बात कही गई थी.
यह पहले के वित्त आयोग की अनुशंसा से अलग था. जिसने 1971 और 2011 की जनगणनाओं के संयोजन को इक्वालाइजेशन सूत्र में मैक्रो-संकेतक के रूप में इस्तेमाल किया था. एनके सिंह के नेतृत्व वाले आयोग ने 2011 की जनगणना को पूरी तरह से, हस्तांतरण के पैटर्न को तय करने के मानदंडों में से एक के रूप में, मौजूदा जनसंख्या स्तरों के प्रति अधिक संवेदनशील बनाने के लिए किया था.
इसका अर्थ यह हुआ कि यदि आपके राज्य की आबादी अधिक है, तो आपको केंद्र से जरूरतों को पूरा करने के लिए अधिक राशि वितरित की जाएगी. इसको लेकर ही उत्तर वर्सेस दक्षिण बहस की शुरुआत हो गई. यूपी और बिहार की आबादी 1971 के बाद से तेजी से बढ़ी है. जाहिर है, उन्हें केंद्र के पूल से अधिक राशि वितरित हो जाती है. उदाहरण स्वरूप- यूपी की आबादी 2001-11 के बीच 20 फीसदी बढ़ी, जबिक कर्नाटक की आबादी 15.6 फीसदी बढ़ी.