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16वां वित्त आयोग : टैक्स बंटवारे पर आ सकता है नया फॉर्मूला

Sharing Tax Revenues : 16वें वित्त आयोग की अध्यक्षता अरविंद पनगढ़िया कर रहे हैं. उन्हें अक्टूबर 2025 तक अपनी रिपोर्ट सौंपनी है. उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती टैक्स बंटवारे पर नया फॉर्मूला देना है. दक्षिण के राज्यों का आरोप है कि उत्तर भारत के राज्यों को डिविजिबल पूल से टैक्स की अधिक राशि दी जाती है. 15वें वित्त आयोग जिसकी अध्यक्षता एनके सिंह ने की है, उनके फॉर्मूले के अनुसार जिनकी आबादी अधिक है, उन्हें टैक्स की अधिक राशि दी जा रही है. पेश है वरिष्ठ पत्रकार एस सरकार का एक विश्लेषण.

Arvind Pangadiya, PM Modi
अरविंद पनगढ़िया, पीएम मोदी

By ETV Bharat Hindi Team

Published : Feb 12, 2024, 7:52 PM IST

नई दिल्ली : 15वां वित्त आयोग टैक्स की राशि का जिस फॉर्मूले पर वितरण कर रहा है, उसको लेकर कुछ राज्यों ने आवाज उठाई है, खासकर दक्षिण भारत के राज्यों ने. 15वें वित्त आयोग के अनुसार जिनकी जितनी आबादी, उनका उतना टैक्स में हिस्सा. इस फॉर्मूले को लेकर तमिलनाडु, केरल, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और कर्नाटक ने आवाज उठाई है. उनका कहना है कि उन्होंने आबादी पर नियंत्रण लगाया है, लिहाजा उन्हें इसका पुरस्कार मिलना चाहिए, न कि इसके बदले उन्हें टैक्स में कम राशि वितरित की जानी चाहिए. आइए इस पर एक नजर डालते हैं.

वित्त आयोग क्या है

वित्त आयोग एक संवैधानिक संस्था है, जिसका मुख्य कार्य केंद्र और राज्यों के बीच राजस्व संसाधनों के आवंटन से जुड़ा है. इसकी स्थापना संविधान के अनुच्छेद 280 के तहत की गई है. मूलतः इसे केंद्र और राज्यों के बीच वित्तीय संबंधों को परिभाषित करने के लिए बनाया गया था. इसका गठन 1951 में हुआ था.

सेस पर बहस - सेस यानी उपकर को लेकर हमेशा बहस होती रही है. सेस पर केंद्र की अधिक निर्भरता के काण राज्यों को पैसे कम हस्तांतरित होते हैं. यह बहस भी काफी पुराना है. हालांकि, 2024 लोकसभा चुनाव के मद्देनजर एक बार फिर से इस विषय पर बहस छिड़ चुकी है.

विवाद के दो प्रमुख बिंदु - पहला - 15 वें वित्त आयोग की अनुशंसाओं के आधार पर तुलना करें, तो पिछले कुछ वर्षो में यह राशि कम लगती है. दूसरा बिंदु है- दक्षिण के उन राज्यों, जिन्होंने वित्तीय अनुशासन का पालन किया है, पर उनकी आबादी कम है, तो उन्हें इसका नुकसान क्यों उठाना पड़ता है. इसके ठीक विपरीत उत्तर भारत के राज्यों को आबादी अधिक होने की वजह से अधिक फायदा मिलता है.

15 वां वित्त आयोग- कर हस्तांतरण से तात्पर्य केंद्र द्वारा राज्यों को केंद्रीय करों और ड्यूटी के वितरण से है. राज्य इस आवंटित धनराशि को विकास, कल्याण और प्राथमिकता-क्षेत्र की परियोजनाओं और योजनाओं पर खर्च करता है. वर्तमान में, 15वें वित्त आयोग की सिफारिश के अनुसार, केंद्र के विभाज्य कर पूल (डिविजिबल टैक्स पूल) का 41 प्रतिशत 14 किश्तों में दिया जा रहा है. यह 2021-22 से 2025-26 की पांच साल की अवधि को कवर कर रहा है.

रिजर्व बैंक का स्टेटमेंट- हालांकि, वित्तीय वर्ष 2025 में इसे 35.5 प्रतिशत करने की योजना है. रिजर्व बैंक ने स्टेट फाइनेंस के नवीनतम रिपोर्ट में कहा है- उपकर और अधिभार में वृद्धि के कारण, 15वें वित्त पैनल द्वारा अनुशंसित कर हस्तांतरण में 10 प्रतिशत अंक की वृद्धि के बावजूद, विभाज्य पूल 2011-12 में सकल कर राजस्व के 88.6 प्रतिशत से घटकर 2021-22 में 78.9 प्रतिशत हो गया है. आरबीआई ने सुझाव दिया, क्योंकि वास्तविक कर हस्तांतरण केंद्र द्वारा लगाए गए उपकरों और अधिभारों पर निर्भर करता है, इसलिए राज्यों को अपनी वित्तीय क्षमता बढ़ाने और हस्तांतरण पर निर्भरता कम करने की आवश्यकता है.

उत्तर वर्सेस दक्षिण - दक्षिण के राज्यों ने 2020 से पहले भी इस मुद्दे को उठाया था. उस समय 15 वित्त आयोग ने अपनी रिपोर्ट सौंपी थी. इसने 2011 के सेंसस को आधार बनाया था. इस आधार पर ही टैक्स हस्तांतरण की राशि निश्चित की गई थी. लेकिन इसने उस फैक्टर को भी जोड़ा था, जिसमें जनसंख्या को नियंत्रित करने वाले राज्यों को रिवार्ड देने की बात कही गई थी.

यह पहले के वित्त आयोग की अनुशंसा से अलग था. जिसने 1971 और 2011 की जनगणनाओं के संयोजन को इक्वालाइजेशन सूत्र में मैक्रो-संकेतक के रूप में इस्तेमाल किया था. एनके सिंह के नेतृत्व वाले आयोग ने 2011 की जनगणना को पूरी तरह से, हस्तांतरण के पैटर्न को तय करने के मानदंडों में से एक के रूप में, मौजूदा जनसंख्या स्तरों के प्रति अधिक संवेदनशील बनाने के लिए किया था.

इसका अर्थ यह हुआ कि यदि आपके राज्य की आबादी अधिक है, तो आपको केंद्र से जरूरतों को पूरा करने के लिए अधिक राशि वितरित की जाएगी. इसको लेकर ही उत्तर वर्सेस दक्षिण बहस की शुरुआत हो गई. यूपी और बिहार की आबादी 1971 के बाद से तेजी से बढ़ी है. जाहिर है, उन्हें केंद्र के पूल से अधिक राशि वितरित हो जाती है. उदाहरण स्वरूप- यूपी की आबादी 2001-11 के बीच 20 फीसदी बढ़ी, जबिक कर्नाटक की आबादी 15.6 फीसदी बढ़ी.

अगर वित्त आयोग 1971 के सेंसस का प्रयोग करता है, तो स्थिति अलग होगी. क्योंकि उस समय इन दोनों राज्यों में जनसंख्या वृद्धि दर में अंतर कम था. उत्तर प्रदेश में 1971-1981 के बीच 25 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि देखी गई, जबकि कर्नाटक में 26 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि देखी गई. 2001 और 2011 के बीच तमिलनाडु की जनसंख्या में 15 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि हुई, जबकि बिहार में 25 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि देखी गई.

2024-25 के बजट अनुमान के अनुसार जनसंख्या में इस अंतर का प्रभाव स्पष्ट प्रतीत होता है. सभी पांच दक्षिणी राज्यों - आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु, तेलंगाना और केरल को अगले वित्तीय वर्ष के लिए हस्तांतरण के लिए कुल आवंटित राशि के हिस्से के रूप में 15.8 प्रतिशत मिलेगा, जबकि अकेले बिहार और उत्तर प्रदेश को 28 फीसदी तक मिलेगा.

2024-25 के बजट में, केंद्र ने 'तेजी से जनसंख्या वृद्धि और जनसांख्यिकीय परिवर्तनों से उत्पन्न होने वाली चुनौतियों पर व्यापक विचार' के लिए एक उच्चाधिकार प्राप्त समिति बनाने की घोषणा की है. अभी तक यह नहीं पता है कि इसका वित्त आयोगों द्वारा उपयोग किए जाने वाले मैट्रिक्स पर कोई प्रभाव पड़ेगा या नहीं. 15वें वित्त आयोग ने अपनी रिपोर्ट में स्वीकार किया है, कि अधिकांश कम प्रति व्यक्ति आय वाले राज्य अधिक आबादी वाले राज्य हैं.

इसलिए, इस पैमाने पर बेहतर प्रदर्शन करने वाले कई दक्षिणी राज्यों को कम प्रति व्यक्ति आय वाले राज्यों की तुलना में कम हिस्सा मिलेगा. वित्त आयोग ने इसके अलावा इनकम डिस्टेंस मानदंड को भी शामिल किया है.

क्योंकि दो इंडिकेटर्स का प्रयोग किया गया है, लिहाजा- दोनों ही पैमानों - जनसंख्या और विकास- पर अधिक आबादी और कम विकास वाले राज्यों को अधिक पैसा दिया जाएगा. दक्षिण के राज्य इसे ही मुद्दा बना रहे हैं. उनका कहना है कि उन्होंने जनसंख्या पर नियंत्रण लगाया, तो इसका फायदा मिलने के बजाए उन्हें नुकसान उठाना पड़ रहा है.

वर्तमान वित्तीय वर्ष में केंद्र ने जनवरी 2024 तक 8.20 लाख करोड़ की राशि को 12 इंस्टॉलमेंट में जारी किया है. पूरे वित्तीय साल में कुल राशि 11.04 लाख करोड़ दिया जाना है. अगले साल इसे बढ़ाकर 12.20 लाख करोड़ करने का फैसला किया है. यह जीडीपी का तीन फीसदी है.

कुछ राज्यों ने जीएसटी के विषय को लेकर भी नाखुशी जाहिर की है. कुछ राज्यों ने आरोप लगाया है कि उनका अपने राजस्व पर नियंत्रण कम हो रहा है, जुलाई 2017 में जीएसटी के लागू होने से कर दरों में बदलाव करने और राजस्व बढ़ाने की उनकी क्षमता और कम हो गई है.

अब आगे क्या होगा -एक वरिष्ठ नौकरशाह ने कहा कि क्योंकि इसका निर्णय वित्त आयोग करता है, लिहाजा केंद्र के हस्तक्षेप के लिए यहां पर बहुत अधिक स्कोप नहीं है. इसलिए 16वां वित्त आयोग इस विषय का निवारण कर सकता है. चूंकि राज्य सामान्य सरकारी व्यय के 60 प्रतिशत से अधिक के लिए जिम्मेदार हैं, इसलिए उपकर और अधिभार के साथ केंद्रीय करों में राज्यों की अनुशंसित हिस्सेदारी से कम 16वें वित्त आयोग के समक्ष एक महत्वपूर्ण मुद्दा रहेगा.

ऐसा लगता है कि अरविंद पनगढ़ियाके सामने एक कठिन चुनौती होगी, क्योंकि वह उस पैनल का नेतृत्व कर रहे हैं जो 1 अप्रैल, 2026 से शुरू होने वाली पांच साल की अवधि के लिए केंद्र और राज्यों के बीच कर राजस्व के बंटवारे का नया फॉर्मूला तय करेगा.

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