नई दिल्ली: इतिहास के हर कालखंड में हमारी मातृभूमि में ऐसे वीर बेटे-बेटियां पैदा हुए हैं, जिन्होंने अपनी प्रतिभा के बल पर भारत की भावना को अभिव्यक्त किया है. इनमें से कुछ सप्तर्षि नक्षत्र के सितारों की तरह रहे हैं. वे हमें मार्ग पर आगे बढ़ाते रहते हैं. भगवान बिरसा मुंडा राष्ट्र के पथ को रोशन करने वाले नक्षत्र के सबसे चमकीले सितारों में से एक थे.
जब राष्ट्र आधुनिक भारत के इतिहास में इस प्रतिष्ठित व्यक्ति की 150वीं जयंती के वर्षभर चलने वाले समारोह की शुरुआत कर रहा है, तो मैं उनकी पुण्य स्मृति को नमन करता हूं. यहां मैं यह भी याद करता हूं कि कैसे बचपन में भगवान बिरसा मुंडा की गाथाएं सुनकर मुझे और मेरे दोस्तों को अपनी विरासत पर बहुत गर्व महसूस होता था.
आज के झारखंड के उलिहातु का यह बालक मात्र 25 साल की छोटी सी उम्र में ही औपनिवेशिक शोषण के विरुद्ध जन-प्रतिरोध का नायक बन गया. जब ब्रिटिश अधिकारी और स्थानीय जमींदार आदिवासी समुदायों का शोषण कर रहे थे, उनकी जमीनें हड़प रहे थे और उन पर अत्याचार कर रहे थे, तब भगवान बिरसा इस सामाजिक और आर्थिक अन्याय के विरुद्ध उठ खड़े हुए और लोगों को उनके अधिकारों के लिए लड़ने के लिए प्रेरित किया.
'धरती आबा' (पृथ्वी के पिता) के नाम से प्रसिद्ध भगवान बिरसा ने 1890 के दशक के अंत में ब्रिटिश उत्पीड़न के विरुद्ध 'उलगुलान' या मुंडा विद्रोह की शुरुआत की. उलगुलान, निश्चित रूप से विद्रोह से कहीं अधिक था. यह न्याय और सांस्कृतिक पहचान दोनों के लिए लड़ाई थी. भगवान बिरसा मुंडा एक तरफ आदिवासी लोगों को बिना किसी हस्तक्षेप के अपनी जमीन पर स्वामित्व और खेती करने के अधिकार को एक साथ लाए, तो दूसरी तरफ आदिवासी रीति-रिवाजों और सामाजिक मूल्यों के भी महत्व दिया. महात्मा गांधी की तरह, उनका संघर्ष न्याय और सत्य की खोज से प्रेरित था.
बीमारों की सेवा करना उनके लिए जुनून था. उन्हें एक चिकित्सक के रूप में प्रशिक्षित किया गया था और घटनाओं की एक सीरीज ने लोगों को यह विश्वास दिलाया कि भगवान ने उन्हें हीलिंग टच का उपहार दिया है. उन्होंने लोगों से आग्रह किया कि जो कोई भी बीमार हो उसे उनके पास लाएं और अगर यह संभव नहीं है तो मैं खुद बीमारों से मिलने आऊंगा.
वह गांव-गांव घूमे, बीमारों से मिले और अपने कौशल और अपने उपचारात्मक स्पर्श से असंख्य लोगों को ठीक किया. उनके बलिदान की गाथा भारत के आदिवासी समुदायों के महान क्रांतिकारियों के इतिहास की महत्वपूर्ण कड़ी में से एक है. उनके संघर्ष इस भूमि की अनूठी परंपरा को रेखांकित करते हैं, जहां कोई भी समुदाय कभी मुख्यधारा से अलग नहीं होता. वनवासी, जो आज अनुसूचित जनजातियों की श्रेणी में आते हैं, हमेशा से राष्ट्रीय सामूहिकता का हिस्सा रहे हैं.
एक समय था जब भगवान बिरसा मुंडा और अन्य लोगों का नाम इतिहास के 'गुमनाम नायकों' में लिया जाता था. हालांकि, हाल के दिनों में उनके पराक्रम और बलिदान को सही मायने में सराहा जाने लगा है. 'आजादी का अमृत महोत्सव' के दौरान, हमने भारत की संस्कृति और उपलब्धियों के गौरवशाली इतिहास का जश्न मनाया, जिससे लोगों, विशेषकर युवाओं को महान देशभक्तों के वीरतापूर्ण योगदान के बारे में अधिक जानने में मदद मिली, जिनके बारे में पहले कम ही लोग जानते थे.
इतिहास के साथ इस नए जुड़ाव को तब बढ़ावा मिला जब सरकार ने 2021 में आदिवासी स्वतंत्रता सेनानियों के योगदान को याद करने के लिए भगवान बिरसा मुंडा की जयंती, 15 नवंबर को जनजातीय गौरव दिवस के रूप में मनाने का फैसला किया. भगवान बिरसा मुंडा की विरासत का स्मरणोत्सव लंबे समय से उपेक्षित आदिवासी इतिहास को भारत के इतिहास के केंद्र में रखता है.
यह इतिहास आज और भी अधिक प्रासंगिक हैं, क्योंकि यह आधुनिक दुनिया को प्रकृति के साथ सामंजस्य बिठाने और इको सिस्टम को संरक्षित करने के महत्वपूर्ण सबक सिखाते हैं. मुझे अच्छी तरह याद है कि जब मैं बच्ची थी, तो मैं अपने पिता को ईंधन के लिए इस्तेमाल की जाने वाली सूखी लकड़ियों को काटने के लिए भी माफी मांगते हुए देखती थी. आम तौर पर आदिवासी समाज संतुष्ट होते हैं क्योंकि वे व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाओं की तुलना में सामूहिक अच्छाई को अधिक महत्व देते हैं.
मानव जाति के बेहतर भविष्य के लिए आदिवासी समाज की इस विशिष्ट विशेषता को पोषित करने की आवश्यकता है. यही कारण है कि पिछले दशक के दौरान सरकार ने भारत के सामाजिक-सांस्कृतिक ताने-बाने में आदिवासी समुदायों के महत्व को उचित मान्यता देने के लिए व्यापक प्रयास शुरू किए हैं. इसने कल्याण को नारों से परे और जमीन पर ले जाने के उद्देश्य से कई कार्यक्रमों और योजनाओं की घोषणा की है.
आदिवासी विकास और कल्याण के लिए अधिक समग्र दृष्टिकोण के लिए, लगभग 63,000 आदिवासी गांवों में सामाजिक बुनियादी ढांचे की कमी को पूरा करने के लिए पिछले महीने धरती आबा जनजातीय ग्राम उत्कर्ष अभियान शुरू किया गया था. इसके अलावा, प्रधानमंत्री जनजाति आदिवासी न्याय महा अभियान (पीएम-जनमन) कल्याणकारी पहलों को और अधिक प्रभावी बनाने के लिए 11 महत्वपूर्ण हस्तक्षेपों पर केंद्रित है.
मेरा मानना है कि एसटी समुदायों के सर्वांगीण विकास के लिए अथक प्रयास करना ही भगवान बिरसा मुंडा और आदिवासी क्षेत्रों के अन्य स्वतंत्रता सेनानियों को राष्ट्र की ओर से दी जाने वाली सच्ची श्रद्धांजलि है. मेरे लिए यह अत्यंत संतोष की बात है कि राष्ट्रपति भवन ने भी एसटी समुदायों तक पहुंचने के लिए नई पहल की है.
राष्ट्रपति भवन संग्रहालय में जनजातीय दर्पण नामक गैलरी का उद्घाटन करना मेरा सौभाग्य था, जो राष्ट्र निर्माण में आदिवासी समुदायों की समृद्ध कला, संस्कृति और योगदान की झलक प्रदान करती है. अगस्त में राज्यपालों के सम्मेलन के दौरान मुझे आदिवासी कल्याण के लिए संसाधनों के बेहतर उपयोग की आवश्यकता पर जोर देने का अवसर मिला.
मेरे लिए यह एक विनम्र अनुभव था, जब मुझे 75 विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूहों (PVTG) के प्रतिनिधियों के साथ विस्तृत बातचीत करने का मौका मिला, जिन्हें राष्ट्रपति भवन आने का निमंत्रण मिला था. उन्होंने मेरे साथ अपने सुख-दुख साझा किए. अगर कोई एक उपलब्धि है, जिस पर मुझे गर्व है, तो वह यह है कि हमारे आदिवासी भाई-बहन मुझे सर्वोच्च संवैधानिक पद पर आसीन होते हुए हम सभी के लिए एक अभूतपूर्व मान्यता के रूप में देखते हैं.
भगवान बिरसा मुंडा की 150वीं जयंती मनाते हुए, हम इस भावना का जश्न मना रहे हैं, जिसे निश्चित रूप से हम सभी साझा करते हैं. मेरा मानना है कि भगवान बिरसा मुंडा के आदर्श न केवल आदिवासी समुदायों के युवाओं के लिए बल्कि देश के हर हिस्से में सभी समुदायों के युवाओं के लिए गर्व और प्रेरणा का स्रोत हैं. उनकी आकांक्षाएं - स्वतंत्रता, न्याय, पहचान और सम्मान - हर युवा की आकांक्षाएं हैं.
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