ETV Bharat / opinion

श्रीलंका के संसदीय चुनावों में युवाओं की लहर के लिए तैयार रहें - SRI LANKAN PARLIAMENTARY ELECTIONS

श्रीलंका के पूर्व राजनयिक सुगीश्वर सेनाधीरा ने आगामी संसदीय चुनावों में एनपीपी गठबंधन को बहुमत मिलने की संभावना को लेकर ईटीवी भारत से बात की.

श्रीलंका के संसदीय चुनावों में युवाओं की लहर के लिए तैयार रहें
श्रीलंका के संसदीय चुनावों में युवाओं की लहर के लिए तैयार रहें (सांकेतिक तस्वीर)
author img

By Aroonim Bhuyan

Published : Nov 13, 2024, 1:17 PM IST

नई दिल्ली: श्रीलंका में 14 नवंबर को संसदीय चुनाव होने जा रहे हैं, ऐसे में युवा शक्ति में वृद्धि और पुराने नेताओं के पीछे हटने की उम्मीद है. साथ ही द्वीपीय देश आर्थिक संकट से भी बाहर निकलने की कोशिश कर रहा है. यह डेवलपमेंट इस साल सितंबर में नेशनल पीपुल्स पावर (NPP) गठबंधन के नेता अनुरा कुमारा दिसानायके के राष्ट्रपति चुने जाने के बाद हो रहा है.

एक अनुभवी राजनेता होने के बावजूद 55 साल के दिसानायके हाल ही में श्रीलंका पहले निर्वाचित राष्ट्रपति बने थे. एनपीपी गठबंधन वैचारिक रूप से वामपंथी लोकलुभावन और मजदूर वर्ग केंद्रित है. एनपीपी का नेतृत्व दिसानायके की जनता विमुक्ति पेरामुना (JVP) कर रही है.

श्रीलंका के राजनीतिक परिदृश्य पर पारंपरिक रूप से राजनीतिक एलाइट का वर्चस्व रहा है, जिसमें स्थापित पारिवारिक वंश और पुराने राजनीतिक व्यक्ति महत्वपूर्ण प्रभाव रखते हैं. यह पावर स्ट्रैक्चर दशकों से काफी हद तक निर्बाध थी, जो पुराने, आजमाए हुए नेतृत्व पर ध्यान केंद्रित करके बनी रही.

हालांकि, भ्रष्टाचार, भाई-भतीजावाद और आर्थिक कुप्रबंधन जैसे मुद्दों ने कई नागरिकों, विशेष रूप से युवा श्रीलंकाई लोगों को निराश किया है, जो स्थापित राजनीतिक वर्ग से अलग-थलग महसूस करते हैं.

2019 ईस्टर संडे बम विस्फोट और कोविड-19 महामारी ने निराशा को और बढ़ा दिया, शासन में गहरी जड़ें जमाए हुए कमजोरियों को उजागर किया और जवाबदेही, पारदर्शिता और अभिनव नेतृत्व के लिए एक नई पुकार को प्रज्वलित किया.

वर्ष 2022 में श्रीलंका में आए आर्थिक संकट ने बढ़ती महंगाई, आवश्यक वस्तुओं की कमी और अभूतपूर्व मुद्रा डीवैल्यूएशन शामिल है, डेली लाइफ को प्रभावित किया. इसने युवा श्रीलंकाई लोगों को सत्ता में बैठे लोगों से जवाब मांगने के लिए प्रेरित किया.

इसी के मद्देनजर आगामी संसदीय चुनावों में एनपीपी गठबंधन के नेतृत्व में युवा शक्ति के उभार की उम्मीद है. इस साल के श्रीलंकाई संसदीय चुनावों का महत्व इसलिए भी बढ़ गया है, क्योंकि नौवें कार्यकारी राष्ट्रपति के रूप में चुने गए दिसानायके ने श्रीलंका में कार्यकारी राष्ट्रपति प्रणाली को समाप्त करने और संसद की प्रधानता को बहाल करने का वादा किया है.

नेशनल पीपुल्स पावर (NPP) गठबंधन, जिसका प्रतिनिधित्व करते हुए दिसानायके राष्ट्रपति बने हैं, उसके राष्ट्रपति चुनाव घोषणापत्र के अनुसार कार्यकारी राष्ट्रपति पद को समाप्त कर दिया जाएगा और संसद बिना किसी कार्यकारी शक्तियों के देश के राष्ट्रपति की नियुक्ति करेगी.

एनपीपी घोषणापत्र में यह भी कहा गया है कि एक नया संविधान तैयार किया जाएगा और इसे आवश्यक परिवर्तनों के साथ, अगर कोई हो, तो सार्वजनिक चर्चा के बाद जनमत संग्रह के माध्यम से उसे पारित किया जाएगा. इस संबंध में ईटीवी भारत ने पूर्व श्रीलंकाई राजनयिक सुगीश्वर सेनाधीरा से बात की. सेनाधीरा चार पूर्व राष्ट्रपतियों और एक प्रधानमंत्री के मीडिया सलाहकार रह चुके हैं.

सवाल: ऐसी धारणा है कि इस साल के संसदीय चुनावों में युवा शक्ति में वृद्धि होगी. ऐसा क्यों है?

जवाब: पिछले सात दशकों में हमारी संसद में हमने ज़्यादातर 50 से 70 साल की आयु के नेताओं को सत्ता में बैठे देखा है. हालांकि, इस बार पिछली संसद के 58 सदस्यों ने चुनाव लड़ने से मना कर दिया है. इस बार, ज़्यादातर सीटें एनपीपी गठबंधन के पास जाने की उम्मीद है क्योंकि उनके पास युवा पीढ़ी है. लोग संरचनात्मक बदलाव के लिए जा रहे हैं.

सवाल: पूर्व राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे, महिंदा राजपक्षे और गोतबाया राजपक्षे इस साल के संसदीय चुनावों में खड़े नहीं हो रहे हैं. हालांकि, विक्रमसिंघे ने लोगों से अपील की है कि अगर देश को वित्तीय संकट से बाहर निकालना है तो अनुभवी राजनेताओं को वोट दें. आपकी क्या राय है?

जवाब: विक्रमसिंघे के बयान में थोड़ी सच्चाई है. युवा पीढ़ी को पुरानी पीढ़ी से मार्गदर्शन की आवश्यकता है, लेकिन पुरानी पीढ़ी कुछ नहीं कर पाई. विक्रमसिंघे ने श्रीलंका को वित्तीय संकट से उबरने में काफी हद तक मदद की, लेकिन हम अभी भी समस्याओं का सामना कर रहे हैं.

सवाल: तो, आपको क्या लगता है कि आगामी संसदीय चुनावों में किस पार्टी को बहुमत मिलेगा?

जवाब: हमारी संसद में बहुमत का आंकड़ा 130 है. एनपीपी गठबंधन को अपनी युवा शक्ति के आधार पर 100 से अधिक सीटें जीतकर बहुमत के करीब पहुंचने की उम्मीद है.

सवाल: एनपीपी के एक नेता, जो राष्ट्रपति दिसानायके के मंत्रिमंडल में मंत्री भी हैं उन्होंने कहा है कि गठबंधन तमिल और मुस्लिम समुदायों के प्रतिनिधियों को शामिल करके बहुमत प्राप्त करने पर भी राष्ट्रीय एकता सरकार बनाने के लिए तैयार रहेगा. क्या आपको लगता है कि ऐसा होने की संभावना है?

उत्तर: इस बारे में परस्पर विरोधी रिपोर्टें आई हैं. यह देखना बाकी है कि केंद्र में सत्ता का कोई बंटवारा होगा या नहीं.

सवाल: पिछली संसद में विपक्ष के नेता साजिथ प्रेमदासा, जो समागी जन बालवेगया (SJB) पार्टी के हैं. इस साल के राष्ट्रपति चुनाव में दिसानायके से हार गए. अब प्रेमदासा फिर से संसदीय चुनाव में खड़े हैं और प्रधानमंत्री बनने की उम्मीद कर रहे हैं. आप एसजेबी की संभावनाओं को कैसे देखते हैं?

जवाब: एसजेबी एक प्रमुख विपक्षी दल हो सकता है. पार्टी को लगभग 50 सीटें मिलेंगी.

सवाल: पूर्व राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे के बेटे नमल राजपक्षे, जो श्रीलंका पोडुजना पेरामुना (SLPP) पार्टी से हैं. उन्होंने भी राष्ट्रपति चुनाव लड़ा था, लेकिन वे चौथे स्थान पर रहे. संसदीय चुनावों में एसएलपीपी की संभावनाओं को आप कैसे देखते हैं?

जवाब: इस बार एसएलपीपी कोई बड़ी दावेदार नहीं है.

सवाल: अपने राष्ट्रपति चुनाव घोषणापत्र में दिसानायके ने श्रीलंका में कार्यकारी राष्ट्रपति पद को समाप्त करने का वादा किया था. आपको क्या लगता है कि अगर एनपीपी गठबंधन संसद में बहुमत हासिल कर लेता है तो ऐसा होने की संभावना है?

जवाब: सत्ता में आने से पहले हर राष्ट्रपति ने ऐसा कहा था, लेकिन सत्ता में आने के बाद ऐसा नहीं हुआ. ऐसा करने के लिए आपको संसद में दो-तिहाई बहुमत और राष्ट्रीय जनमत संग्रह की भी आवश्यकता होती है. 1977 में (जब कार्यकारी राष्ट्रपति पद की शुरुआत हुई थी), तत्कालीन राष्ट्रपति जेआर जयवर्धने, जिनके पास 5/6 बहुमत था. उन्होंने संसद से संविधान सभा के रूप में बैठने और एक नया संविधान तैयार करने और उसे पारित करने के लिए कहा था. नए संविधान के तहत, इस तरह के कदम के लिए दो-तिहाई बहुमत की आवश्यकता है. साथ ही, मौलिक परिवर्तनों के लिए राष्ट्रीय जनमत संग्रह की भी आवश्यकता है.

यह भी पढ़ें- रूसी पंतसीर मिसाइल सिस्टम: रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भर भारत को बढ़ावा

नई दिल्ली: श्रीलंका में 14 नवंबर को संसदीय चुनाव होने जा रहे हैं, ऐसे में युवा शक्ति में वृद्धि और पुराने नेताओं के पीछे हटने की उम्मीद है. साथ ही द्वीपीय देश आर्थिक संकट से भी बाहर निकलने की कोशिश कर रहा है. यह डेवलपमेंट इस साल सितंबर में नेशनल पीपुल्स पावर (NPP) गठबंधन के नेता अनुरा कुमारा दिसानायके के राष्ट्रपति चुने जाने के बाद हो रहा है.

एक अनुभवी राजनेता होने के बावजूद 55 साल के दिसानायके हाल ही में श्रीलंका पहले निर्वाचित राष्ट्रपति बने थे. एनपीपी गठबंधन वैचारिक रूप से वामपंथी लोकलुभावन और मजदूर वर्ग केंद्रित है. एनपीपी का नेतृत्व दिसानायके की जनता विमुक्ति पेरामुना (JVP) कर रही है.

श्रीलंका के राजनीतिक परिदृश्य पर पारंपरिक रूप से राजनीतिक एलाइट का वर्चस्व रहा है, जिसमें स्थापित पारिवारिक वंश और पुराने राजनीतिक व्यक्ति महत्वपूर्ण प्रभाव रखते हैं. यह पावर स्ट्रैक्चर दशकों से काफी हद तक निर्बाध थी, जो पुराने, आजमाए हुए नेतृत्व पर ध्यान केंद्रित करके बनी रही.

हालांकि, भ्रष्टाचार, भाई-भतीजावाद और आर्थिक कुप्रबंधन जैसे मुद्दों ने कई नागरिकों, विशेष रूप से युवा श्रीलंकाई लोगों को निराश किया है, जो स्थापित राजनीतिक वर्ग से अलग-थलग महसूस करते हैं.

2019 ईस्टर संडे बम विस्फोट और कोविड-19 महामारी ने निराशा को और बढ़ा दिया, शासन में गहरी जड़ें जमाए हुए कमजोरियों को उजागर किया और जवाबदेही, पारदर्शिता और अभिनव नेतृत्व के लिए एक नई पुकार को प्रज्वलित किया.

वर्ष 2022 में श्रीलंका में आए आर्थिक संकट ने बढ़ती महंगाई, आवश्यक वस्तुओं की कमी और अभूतपूर्व मुद्रा डीवैल्यूएशन शामिल है, डेली लाइफ को प्रभावित किया. इसने युवा श्रीलंकाई लोगों को सत्ता में बैठे लोगों से जवाब मांगने के लिए प्रेरित किया.

इसी के मद्देनजर आगामी संसदीय चुनावों में एनपीपी गठबंधन के नेतृत्व में युवा शक्ति के उभार की उम्मीद है. इस साल के श्रीलंकाई संसदीय चुनावों का महत्व इसलिए भी बढ़ गया है, क्योंकि नौवें कार्यकारी राष्ट्रपति के रूप में चुने गए दिसानायके ने श्रीलंका में कार्यकारी राष्ट्रपति प्रणाली को समाप्त करने और संसद की प्रधानता को बहाल करने का वादा किया है.

नेशनल पीपुल्स पावर (NPP) गठबंधन, जिसका प्रतिनिधित्व करते हुए दिसानायके राष्ट्रपति बने हैं, उसके राष्ट्रपति चुनाव घोषणापत्र के अनुसार कार्यकारी राष्ट्रपति पद को समाप्त कर दिया जाएगा और संसद बिना किसी कार्यकारी शक्तियों के देश के राष्ट्रपति की नियुक्ति करेगी.

एनपीपी घोषणापत्र में यह भी कहा गया है कि एक नया संविधान तैयार किया जाएगा और इसे आवश्यक परिवर्तनों के साथ, अगर कोई हो, तो सार्वजनिक चर्चा के बाद जनमत संग्रह के माध्यम से उसे पारित किया जाएगा. इस संबंध में ईटीवी भारत ने पूर्व श्रीलंकाई राजनयिक सुगीश्वर सेनाधीरा से बात की. सेनाधीरा चार पूर्व राष्ट्रपतियों और एक प्रधानमंत्री के मीडिया सलाहकार रह चुके हैं.

सवाल: ऐसी धारणा है कि इस साल के संसदीय चुनावों में युवा शक्ति में वृद्धि होगी. ऐसा क्यों है?

जवाब: पिछले सात दशकों में हमारी संसद में हमने ज़्यादातर 50 से 70 साल की आयु के नेताओं को सत्ता में बैठे देखा है. हालांकि, इस बार पिछली संसद के 58 सदस्यों ने चुनाव लड़ने से मना कर दिया है. इस बार, ज़्यादातर सीटें एनपीपी गठबंधन के पास जाने की उम्मीद है क्योंकि उनके पास युवा पीढ़ी है. लोग संरचनात्मक बदलाव के लिए जा रहे हैं.

सवाल: पूर्व राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे, महिंदा राजपक्षे और गोतबाया राजपक्षे इस साल के संसदीय चुनावों में खड़े नहीं हो रहे हैं. हालांकि, विक्रमसिंघे ने लोगों से अपील की है कि अगर देश को वित्तीय संकट से बाहर निकालना है तो अनुभवी राजनेताओं को वोट दें. आपकी क्या राय है?

जवाब: विक्रमसिंघे के बयान में थोड़ी सच्चाई है. युवा पीढ़ी को पुरानी पीढ़ी से मार्गदर्शन की आवश्यकता है, लेकिन पुरानी पीढ़ी कुछ नहीं कर पाई. विक्रमसिंघे ने श्रीलंका को वित्तीय संकट से उबरने में काफी हद तक मदद की, लेकिन हम अभी भी समस्याओं का सामना कर रहे हैं.

सवाल: तो, आपको क्या लगता है कि आगामी संसदीय चुनावों में किस पार्टी को बहुमत मिलेगा?

जवाब: हमारी संसद में बहुमत का आंकड़ा 130 है. एनपीपी गठबंधन को अपनी युवा शक्ति के आधार पर 100 से अधिक सीटें जीतकर बहुमत के करीब पहुंचने की उम्मीद है.

सवाल: एनपीपी के एक नेता, जो राष्ट्रपति दिसानायके के मंत्रिमंडल में मंत्री भी हैं उन्होंने कहा है कि गठबंधन तमिल और मुस्लिम समुदायों के प्रतिनिधियों को शामिल करके बहुमत प्राप्त करने पर भी राष्ट्रीय एकता सरकार बनाने के लिए तैयार रहेगा. क्या आपको लगता है कि ऐसा होने की संभावना है?

उत्तर: इस बारे में परस्पर विरोधी रिपोर्टें आई हैं. यह देखना बाकी है कि केंद्र में सत्ता का कोई बंटवारा होगा या नहीं.

सवाल: पिछली संसद में विपक्ष के नेता साजिथ प्रेमदासा, जो समागी जन बालवेगया (SJB) पार्टी के हैं. इस साल के राष्ट्रपति चुनाव में दिसानायके से हार गए. अब प्रेमदासा फिर से संसदीय चुनाव में खड़े हैं और प्रधानमंत्री बनने की उम्मीद कर रहे हैं. आप एसजेबी की संभावनाओं को कैसे देखते हैं?

जवाब: एसजेबी एक प्रमुख विपक्षी दल हो सकता है. पार्टी को लगभग 50 सीटें मिलेंगी.

सवाल: पूर्व राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे के बेटे नमल राजपक्षे, जो श्रीलंका पोडुजना पेरामुना (SLPP) पार्टी से हैं. उन्होंने भी राष्ट्रपति चुनाव लड़ा था, लेकिन वे चौथे स्थान पर रहे. संसदीय चुनावों में एसएलपीपी की संभावनाओं को आप कैसे देखते हैं?

जवाब: इस बार एसएलपीपी कोई बड़ी दावेदार नहीं है.

सवाल: अपने राष्ट्रपति चुनाव घोषणापत्र में दिसानायके ने श्रीलंका में कार्यकारी राष्ट्रपति पद को समाप्त करने का वादा किया था. आपको क्या लगता है कि अगर एनपीपी गठबंधन संसद में बहुमत हासिल कर लेता है तो ऐसा होने की संभावना है?

जवाब: सत्ता में आने से पहले हर राष्ट्रपति ने ऐसा कहा था, लेकिन सत्ता में आने के बाद ऐसा नहीं हुआ. ऐसा करने के लिए आपको संसद में दो-तिहाई बहुमत और राष्ट्रीय जनमत संग्रह की भी आवश्यकता होती है. 1977 में (जब कार्यकारी राष्ट्रपति पद की शुरुआत हुई थी), तत्कालीन राष्ट्रपति जेआर जयवर्धने, जिनके पास 5/6 बहुमत था. उन्होंने संसद से संविधान सभा के रूप में बैठने और एक नया संविधान तैयार करने और उसे पारित करने के लिए कहा था. नए संविधान के तहत, इस तरह के कदम के लिए दो-तिहाई बहुमत की आवश्यकता है. साथ ही, मौलिक परिवर्तनों के लिए राष्ट्रीय जनमत संग्रह की भी आवश्यकता है.

यह भी पढ़ें- रूसी पंतसीर मिसाइल सिस्टम: रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भर भारत को बढ़ावा

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.