नई दिल्ली : माता-पिता बनना कई लोगों के लिए एक आशीर्वाद के रूप में आता है, जबकि 20 प्रतिशत से अधिक माताओं के लिए जीवन का नया अध्याय तनाव, चिंता और प्रसवोत्तर अवसाद (पोस्टपॉर्टम डिप्रेशन) पैदा करता है. ऐसी स्थिति में पर्याप्त समर्थन के बिना मां और बच्चे दोनों के लिए घातक हो सकता है. रविवार को मदर्स डे पर डॉक्टरों ने ये जानकारी दी.
बता दें कि हर साल मई के दूसरे रविवार को मदर्स डे मनाया जाता है. प्रसव के बाद अवसाद आम है लेकिन एक इलाज योग्य चिकित्सीय स्थिति है जिसका सामना कई महिलाएं बच्चे के जन्म के बाद करती हैं. हालांकि सटीक कारण की पहचान करना मुश्किल हो सकता है. कई कारक उदासी, चिंता और थकान की इन भावनाओं में योगदान करते हैं.
ये आनुवांशिकी, हार्मोनल परिवर्तन, नींद की कमी, थकान या मां बनने के दबाव के कारण हो सकते हैं. प्रसवोत्तर अवसाद की व्यापकता का समग्र अनुमान प्रसव के दो सप्ताह के भीतर प्रसवोत्तर अवसाद की 22 प्रतिशत रिपोर्टिंग थी.
एक न्यूज एजेंसी से न्यूरोसाइंसेज संस्थान, मेदांता, गुरुग्राम के एसोसिएट डायरेक्टर, मनोचिकित्सा, डॉ. सौरभ मेहरोत्रा ने बताया कि 'माता-पिता बनने की यात्रा जोड़ों को असंख्य चुनौतियों का सामना करती है, जो अक्सर उनकी भावनात्मक भलाई पर गहरा प्रभाव डालती है देर से गर्भधारण से जुड़ी जटिलताएं, आईवीएफ जैसी सहायक गर्भधारण विधियां और समय से पहले प्रसव का बोझ मातृ मानसिक स्वास्थ्य पर भारी पड़ता है.'
अध्ययनों से पता चलता है कि गर्भावस्था के दौरान मातृ मानसिक बीमारी मां और बच्चे दोनों के लिए प्रतिकूल परिणामों से संबंधित होती है, जिसमें समय से पहले प्रसव और खराब न्यूरोडेवलपमेंट शामिल है.
डॉ. सौरभ ने कहा कि 'मेदांता में, हम लगभग 70-80 प्रतिशत माताओं को प्रसवोत्तर ब्लूज से पीड़ित देखते हैं, जिनमें से प्रसवोत्तर अवसाद से पीड़ित 20 प्रतिशत माताएं ऐसी मानसिक स्वास्थ्य चुनौतियों से जूझती हैं, जो संपूर्ण भावनात्मक समर्थन और समग्र देखभाल की महत्वपूर्ण आवश्यकता पर बल देती हैं.