Datoon Medicinal Value as Toothpick: शहडोल जिला आदिवासी बहुल जिला है. यहां आज भी जो पुराने लोग हैं, उनमें से कई ऐसे हैं, जिनकी सुबह दातून करने के साथ ही होती है. बिना दातून के उनके मुख साफ नहीं होते हैं. आज के इस आधुनिक युग में लोग भले ही ब्रश और पेस्ट का इस्तेमाल कर रहे हैं, लेकिन कई बुजुर्ग आज भी ऐसे हैं. जो दातून से ही दातों को साफ करते हैं और स्वस्थ रहते हैं. आखिर दातून सेहत के लिए कितना फायदेमंद है. किस पौधे का दातून किस मर्ज के लिए काम आता है. हर दिन दातून करना क्यों जरूरी है, जानते हैं आयुर्वेद डॉक्टर अंकित नामदेव से.
दांत साफ करने दातून क्यों है जरूरी ?
आयुर्वेद डॉक्टर अंकित नामदेव बताते हैं की मानव दिनचर्या में दातून का जो योगदान है. वो अभिन्न है, एक दौर ऐसा भी था, जब बिना दातून के किसी के दिन की शुरुआत ही नहीं हुआ करती थी. मुख धावन या ओरल हाइजीन के लिए पहले के लोग दातून इस्तेमाल किया करते थे. आम तौर पर ये माना जाता है की दातून सिर्फ और सिर्फ मुख धावन के लिए होता है, लेकिन ऐसा है नहीं, जब हम सुबह उठते हैं तो हमारा शरीर कफ के प्रकोप में होता है. कफ के प्रकोप में होने के कारण जब हम दातून करते हैं तो एक तरह से कफ का बिलियन करते हैं.
प्रकृति के हिसाब से चयन करें दातून
हर व्यक्ति की प्रकृति अलग-अलग होती है. इस तरह से दातून का चयन भी प्रकृति अनुसार देश अनुसार काल अनुसार रितु अनुसार व्यय अनुसार करना चाहिए, कोई भी जो दातुन होती है, कोई ना कोई औषधि की होती है और उस औषधि का शरीर में ऐसा प्रभाव होना चाहिए, जो मुख तो साफ करें ही साथ आपके शरीर को निरोगी भी बनाए. उदाहरण के लिए आयुर्वेद में मुख्यतः तीन तरह की प्रकृति बोली गई है. वैसे प्रकृति द्वंदज होती है. वात, पित्त ,कफ इसमें कोई एक प्रमुख होता है, उसके साथ में वात पित्त हो सकती है.
इस तरह से शरीर की प्रकृति निर्भर करती है, उदाहरण के लिए एक कफ प्रधान प्रकृति के व्यक्ति को ऐसी दातून करनी चाहिए, जो की कड़वी हो या तीखी हो या कसैली हो. एक वात प्रधान प्रकृति के व्यक्ति को एक ऐसा दातून करना चाहिए, जो की या तो मधुर हो या उसका रस अम्ल हो. एक पित्त प्रधान प्रकृति के व्यक्ति को ऐसी दातून करनी चाहिए, जो या तो जो तिक्त हो या तो कसैली हो या मधुर हो. इस तरह से वात पित्त कफ के डिफ्रेंसिएशन से दातून का रस भी निर्धारित होता है. उदाहरण के लिए वात प्रकृति व्यक्ति को महुआ की दातून ज्यादा सूट करेगी. पित्त प्रकृति वाले को करंज का या नीम का दातून सूट करेगा. कफ प्रकृति वाले को बबूल का दातून ज्यादा सूट करेगा.
दातून कई मर्ज़ों से बचाता है
शहडोल के आयुर्वेद डॉक्टर अंकित नामदेव बताते हैं की केवल दातून करने से कई रोगों से बचा जा सकता है. मुख्य तौर पर मुख के रोग और कई मेटाबॉलिक डिसीज, उदाहरण के लिए मान लीजिए किसी को थायराइड की प्रॉब्लम है, हाइपोथायरायडिज्म है तो उसकी दातून जो होनी चाहिए कड़वी तीखी या कसैली होनी चाहिए, क्योंकि एक तो उसको कफ प्रधान रोग है. कफ वाला व्यक्ति समय पर जब वह दातून करेगा तो इससे उसको फायदा होगा. इसी तरह से शरीर में अगर किसी के अत्यधिक गर्मी रहती है. पित्त प्रकृति का व्यक्ति है, शरीर में गर्मी रहती है, शरीर में जलन रहती है, तो ऐसी कंडीशन में उसको तिक्त रस की औषधि से जैसे आपका नीम की दातून करनी चाहिए. जिससे उसको फायदा होगा.