भोपाल : डायबिटीज को नियंत्रित करने के लिए शरबती गेहूं की काली किस्म अचूक उपाय हो सकती है. इस गेहूं का काला रंग भले ही आपको पसंद न आए, लेकिन इसके कई तत्व आपको डायबिटीज समेत कई बीमारियों से बचा सकते हैं. इस काले गेहूं को मध्य प्रदेश के मालवा क्षेत्र में भी उगाया जा रहा है. अपने औषधीय गुणों की बदौलत यह काफी डिमांड में भी है और किसानों को मालामाल भी कर रहा है. कई रिसर्च में पाया गया है कि डायबिटीज के रोगियों के लिए काले गेंहू की रोटियां रामबाण साबित हो रही हैं.
डायबिटीज में रामबाण है काला गेहूं
आयुर्वेदाचार्य डॉ. शशांक झा कहते हैं, '' लंबे समय तक सिर्फ गेहूं की रोटियां खाना आगे चलकर नुकसानदायक माना जाता है, क्योंकि प्लेन गेहूं में ग्लूटिन पाया जाता है. इसकी वजह से लंबे समय बाद यह बॉडी में इंसुलिन बनाने में बाधा पैदा करता है. इसलिए आयुर्वेद में मोटे अनाज को प्राथमिकता दी जाती है. खासतौर से जौ की रोटी और अन्य मोटे अनाज को बेहद फायदेमंद माना जाता है. इसी तरह अब काले गेहूं का उत्पादन बढ़ रहा है. इसमें एंथोसायनिन की मात्रा अधिक होती है जो ब्लड शुगर से लेकर कई रोगों को दूर रखता है. दरअसल, काले गेहूं में एंथोसायनिन नाम का पिगमेंट होता है, जिसकी वजह से इसका रंग काला होता है. एंथोसायनिन की वजह से ही इसकी पौष्टिकता बढ़ जाती है.''
डायबिटीज के अलावा कई रोगों से बचाव
डायटीशियन डॉ. अमिता सिंह कहती हैं, '' मिलेट्स या श्रीअन्न की तरह काले गेहूं को भी खाने में उपयोग किया जाना फायदेमंद साबित होता है. इसे रोटी, दलिया के रूप में खाया जा सकता है. इसे सामान्य गेहूं के मुकाबले फायदेमंद माना जाता है. मोटे अनाजों में फाइबर की मात्रा अधिक होती है, जो हमारे पाचन तंत्र को बेहतर रखती है. इनमें आयरन और कैल्शियम की मात्रा भरपूत होती है. मोटे अनाज के सेवन से शरीर में कोलोस्ट्रोल की मात्रा नियंत्रित रहती है. रागी और ज्वार डायबिटीज के रोगियों के लिए बेहतर उपयोगी है. ये शरीर में कार्बोहाइड्रेट की अवशोषण की गति को धीमा करते हैं. इन सभी अनाजों में ग्लाइसेमिक इंडेक्स कम होता है, जो बताता है कि खाया गया भोजन कितनी जल्दी खून में शुगर की मात्रा को बढ़ाता है.
कृषि वैज्ञानिक काले गेहूं को नहीं मानते विशेष
जबलपुर जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय के रिटायर्ड फार्म डायरेक्टर डॉ. आर. एस. शुक्ला का कहना है "काला गेहूं भले ही चलन में आ गया हो लेकिन इसमें वैज्ञानिक रूप से ऐसा कोई अतिरिक्त तत्व नहीं है जिन्हें विशेष कहा जा सके. जिस तरह गेहूं में लाल पीली वैरायटी होती है इस तरह यह काला गेहूं भी है डॉ. आर एस शुक्ला का कहना है कि "मध्य प्रदेश में इसकी फसल नोटिफाई भी नहीं है बेशक यह गेहूं चलन में आ गया है लेकिन इसका पौष्टिकता से कोई लेना-देना नहीं है सिर्फ इसका रंग काला है."
उज्जैन-इंदौर में होता है प्रोडक्शन, मंडी की जगह निजी तौर पर होती खरीद
मध्य प्रदेश में काले गेहूं की उपज को लेकर गेहूं अनुसंधान केंद्र के पूर्व निदेशक एवं वरिष्ठ कृषि विज्ञानी एस वी साईप्रसाद बताते हैं कि "कुछ साल पहले यह गेहूं करनाल में विकसित कर रिलीज किया गया था जिसे वैरायटी के रूप में रिलीज करने के पहले गेहूं अनुसंधान केंद्र ने जांच के लिए रखा था. सुखद बात यह है काले गेहूं में इल्ली नहीं हुई, फिलहाल यह गेहूं विदिशा के अलावा उज्जैन और इंदौर रीजन के कुछ किसान उगा रहे हैं जो मंडी में तो नहीं लेकिन निजी तौर पर बेचा जाता है. हालांकि इस गेहूं की न्यूट्रिशन वैल्यू भी मध्य प्रदेश के अन्य इलाकों में बोए जाने वाले गेहूं जैसी ही है. हालांकि आजकल इसे पौष्टिक बताकर अधिक कीमत में बेचा जाता है." बाजार में काला गेहूं 8000 रुपये क्विंटल तक बिकता है.
Read more - आपको अंधा बना सकती है ये बीमारी, वक्त पर कराएं जांच, जानिये कैसे आंखों की रोशनी छीन लेता है यह मर्ज |
मध्यप्रदेश में बढ़ रही काले गेहूं की डिमांड
डायबिटीज नियंत्रित करने के साथ-साथ कई स्वास्थ्य लाभ होने की वजह से मध्य प्रदेश में भी काले गेहूं की डिमांड बढ़ रही है. डिमांड बढ़ने के साथ इसके उत्पादन की ओर भी किसानों का रुझान देखने मिल रहा है. मध्यप्रदेश के मालवांचल में कई किसान काले गेहूं का उत्पादन कर रहे हैं. धार जिले के किसान विपिन चौहान ने बताया कि वे पिछले चार साल से काले गेहूं की खेती कर रहे हैं. अब इसकी डिमांड बढ़ने लगी है, इसलिए वे सामान्य गेहूं की जगह केवल काले गेहूं की ही खेती कर रहे हैं.