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आज के सिनेमा पर बोलीं शर्मिला टैगोर- 'अब महिलाओं का किरदार बदल रहा है...' - SHARMILA TAGORE

ईटीवी भारत की पत्रकार सीमा सिन्हा ने एक्ट्रेस शर्मिला टैगोर से खास बातचीत की. उन्होंने अपने और आज के जमाने के सिनेमा की तुलना की.

Sharmila Tagore
शर्मिला टैगोर (PR Handout)

By ETV Bharat Entertainment Team

Published : 6 hours ago

हैदराबाद: दिग्गज अदाकारा शर्मिला टैगोर 14 साल बाद बड़े पर्दे पर वापसी कर रही हैं और वह अपनी पसंद के बारे में खुलकर बात की है. उन्होंने कहा, 'मेरे लिए सामान्य भाभी, मां और दादी की भूमिकाएं नहीं हैं, मैं केवल चरित्र-आधारित भूमिकाएं चुनना पसंद करूंगी.

गुलमोहर (मनोज बाजपेयी के साथ, ओटीटी पर रिलीज, 2022) के बाद, शर्मिला टैगोर टैगोर एक स्लाइस-ऑफ-लाइफ ड्रामा आउटहाउस (डॉ मोहन अगाशे के साथ) में नजर आएंगी. यह एक फैमिली ड्रामा है. यह नाना (डॉ अगाशे), आदिमा (शर्मिला टैगोर) और उनके 'पोते' नील (जिहान होदर) के जीवन की खास झलक दिखाएगी. वे अपने लापता कुत्ते, पाब्लो को खोजने के लिए एक खोज पर निकलते हैं. वे अपने लापता कुत्ते, पाब्लो को खोजने के लिए एक खोज पर निकलते हैं.

ट्रेलर से पता चलता है कि शर्मिला टैगोर एक ग्रैंडमदर हैं जो अपने ग्रैंडसन की देखभाल करती हैं क्योंकि उनके बेटे और बहू दूर रहते हैं. उनकी जिंदगी में अचानक मोड़ तब आता है जब नील का पालतू कुत्ता पाब्लो नाना के घर में रहने लगता है. नाना उनके पड़ोस में रहने वाले एकांतप्रिय बूढ़े व्यक्ति हैं जो व्यक्तिगत चुनौतियों से जूझ रहे हैं.

शर्मिला टैगोर कहती है, 'आउटहाउस (20 दिसंबर को रिलीज) एक बहुत ही सरल कहानी है, यह बहुत ही वास्तविक जीवन पर आधारित है और इसमें कुछ भी ड्रामैटिक नहीं है'. एक्ट्रेस इस ड्रामा को लेकर काफी एक्साइडेट हैं, क्योंकि वह लंबे समय के बाद बड़े पर्दे पर वापसी कर रही हैं. उनकी आखिरी रिलीज 2010 में दीपिका पादुकोण और इमरान खान के साथ 'ब्रेक के बाद' थी.

ओटीटी और सिनेमा के बीच के अंतर के बारे में बात करते हुए शर्मिला टैगोर कहती हैं, 'यह निश्चित रूप से एक अच्छा एहसास है क्योंकि छोटे पर्दे की तुलना में बड़े पर्दे की मांग बहुत ज्यादा है. बेशक, ओटीटी के अपने फायदे हैं क्योंकि हम अपनी सुविधा के अनुसार घर पर फिल्में देख सकते हैं. आप आराम कर सकते हैं, खाने के लिए ब्रेक ले सकते हैं, फिर रुक सकते हैं और फिर किसी और समय देख सकते हैं लेकिन वास्तव में एक ही समय में बहुत से लोगों के साथ फुल हाउस में फिल्म देखना एक अलग अनुभव है. आप एक ही भावना महसूस कर रहे हैं, एक ही समय में प्रतिक्रिया कर रहे हैं. इन सबका एक जबरदस्त भावना है और इसे घर पर इतनी अव्यवस्था के साथ दोहराया नहीं जा सकता.'

उन्होंने आगे कहती हैं, 'मुझे लगता है कि फिल्म देखने का सबसे अच्छा तरीका बड़े पर्दे पर है क्योंकि वहां प्रॉपर साउंड, अच्छा कैमरा वर्क, सिनेमैटोग्राफी का आनंद मिलता है और यहीं पर काम की सच्ची सराहना होती है. जब इतने सारे लोग रिएक्ट करते हैं तो दर्शकों की प्रतिक्रिया बहुत ही दिल को छू लेने वाली होती है. जब वे हंस रहे होते हैं, आनंद ले रहे होते हैं या उसमें खो रहे होते हैं तो यह एक तरह की यूनिवर्सल रिएक्शन होता है. मुझे दर्शकों के साथ फिल्म देखना बहुत पसंद है'.

आउटहाउस (PR Handout)

शर्मिला ने 13 साल की उम्र में 'सत्यजीत रे' की 1959 में रिलीज हुई बंगाली फिल्म अपुर संसार से अपने करियर की शुरुआत की. इसके बाद उन्होंने अनुपमा, आराधना, देवी, अमर प्रेम और मौसम जैसी फिल्मों में लीड एक्ट्रेस की भूमिकाएं निभाई. शर्मिला पिछले दशकों की तुलना में आज सिनेमा में महिलाओं के चित्रण को लेकर बेहद खुश हैं. उन्होंने इंटरव्यू के दौरान दीपिका पादुकोण की 'पीकू' और हाल ही में रिलीज हुई 'क्रू' जैसी फिल्मों का उदाहरण दिया. 'क्रू' में तब्बू, करीना कपूर खान और कृति सेनन मुख्य भूमिका में थीं.

अपने और आज के जमाने की महिलाओं के किरदार के बारे में चर्चा करते हुए शर्मिला कहती है, 'महिलाओं और उनकी भूमिकाएं हमारे समय की तुलना में वास्तव में बेहतर हो गई है. हम हमेशा बहुत रोते थे. हमने केवल रोने वाली भूमिकाएं निभाईं. हमारे समय में पीकू नहीं बन सकती थी क्योंकि कोई भी यह विश्वास नहीं करता था कि एक महिला अपने पिता की देखभाल कर सकती है. वास्तव में, पहले की फिल्मों में काम करने वाली महिलाओं को बुरा माना जाता था'.

वह आगे कहती हैं, 'वर्किंग वुमन के पैसों का स्वागत किया जाता था, लेकिन उस महिला का स्वागत नहीं किया जाता था, उसे गिरी हुई महिला कहा जाता था. मेघे ढाका तारा और मृणाल सेन की कई फिल्में इस मुद्दे से निपटी हैं. पूरा सिनेरियो बदल गया है, जैसे कि 'क्रू' को देखें. तीन महिलाएं मस्ती कर रही हैं, यह देखना बहुत फ्रेश फील कराता है. वे एक प्लेन लैंड करा रही हैं, डकैती कर रही हैं, ये भूमिकाएं हमारे लिए कल्पना से परे थीं. इस तरह से लोग महिलाओं के अफेयर, एक्स्ट्रा मेटेरियल अफेयर्स को स्वीकार कर रहे हैं, यह सब समझ में आता है'.

उन्होंने आगे कहा, '90 के दशक के बाद जब फिल्मों का दरवाजा खुला तो हमने बहुत सारी विदेशी फिल्में, हॉलीवुड फिल्में देखीं, तब हमने दर्शकों में काफी बदलाव देखा. आज के दर्शक बहुत ज्यादा स्वीकार करने वाले हैं. वे नए प्लॉट को स्वीकार करने के लिए बेहतर तरीके से तैयार और खुले हैं. आज के दर्शकों में अलग-अलग तरह की फिल्में देखने की रूचि है. ओटीटी ने इसे काफी हद तक सामान्य बना दिया है'.

आउटहाउस के एक सीन में डॉ. मोहन अगाशे और शर्मिला टैगोर (PR Handout)

शर्मिला टैगोर का फिल्म चुनने का तरीका पिछले कई सालों से एक जैसा ही रहा है, लेकिन वह किरदारों के हिसाब से, उम्र के हिसाब से भूमिकाएं करने के मामले में खास हैं. दिग्गज एक्ट्रेस कहती है, 'बेशक, इस समय मुझे ऐसा किरदार चाहिए जो मुझे सूट करे और ऐसा जो मैंने पहले न किया हो. मां, भाभी या दादी की भूमिकाएं निभाने का कोई मतलब नहीं है. अगर मैं कोई किरदार निभा रही हूं तो निश्चित तौर पर मुझे उसमें दिलचस्पी है. मैंने हाल ही में एक बंगाली फिल्म (पुरातौन) की है और वह भी अलग है, यह डिमेंशिया की शुरुआत है और कैसे कोई बदलता है. यह मां-बेटी की कहानी है. आउटहाउस में वह मौका था और मुझे स्क्रिप्ट बहुत पसंद आई, यह फिल्म एक खूबसूरत याद दिलाती है कि लाइफ में सरप्राइज स्टोर है. चाहे आपकी उम्र कुछ भी हो'.

अपने फिल्म के आकलन करने के बारे में शर्मिला कहती हैं, 'बेशक, मुझे निर्देशक पसंद होना चाहिए, मुझे वे लोग पसंद होने चाहिए जिनके साथ मैं काम कर रही हूं, लेकिन मुख्य कारण स्क्रिप्ट है और आपको निर्देशक और उसकी सोच पर भरोसा होना चाहिए. मैं आमतौर पर चाहती हूं कि निर्देशक कहानी सुनाए, इससे आपको अंदाजा हो जाता है कि वह फिल्म के बारे में क्या महसूस करता है, आप ठहराव को समझते हैं, यह हमेशा एक जोखिम होता है, आपको पता नहीं होता, लेकिन किसी तरह आपको यह एहसास हो जाता है कि यह कैसे काम करेगा, इसी तरह से मैं एक फिल्म का आकलन करती हूं'.

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