जयपुर: मुझे इम्तियाज ही कहिए. इम्तियाज जी सुनना ऐसा लगता है जैसे किसी और का नाम हो. एक फिल्म मेकर को नफरत की जाए या पत्थर मारा जाए, ये उसी के नाम से होना चाहिए. ये कहना है बॉलीवुड फिल्म निर्देशक इम्तियाज अली का. जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में पहुंचे इम्तियाज अली ने ये भी कहा कि इंडिपेंडेंट सेल्फ सस्टेनिंग वूमेन को प्रेजेंट कर उन्होंने कुछ नया नहीं किया है और ये सब उन्होंने अपनी जिंदगी में देखा. उन्हें ज्यादा इंटरेस्टिंग हमेशा औरतें ही लगी हैं, क्योंकि जब वो कुछ करने पर आती हैं, तो उनका दिमाग पहले चलता है और सही चलता है. उन्होंने अपनी मां को देखकर ये सीखा है.
जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल पहुंचे निर्देशक इम्तियाज अली ने फिल्म, संगीत और उनके बनने की प्रक्रिया पर खुलकर बातचीत की. उन्होंने बताया कि फिल्में देखने का शौक हर हिंदुस्तानी नागरिक को होता है. वो पैदा होता है, तो उसको ये इंटरेस्ट पहले से ही होता है. उनके साथ भी ऐसा ही था. बेनिफिट ये था कि उनके रिलेटिव सिनेमा हॉल में ही थे और जहां वो 10 मिनट 15 मिनट रुका करते थे. ये दौर तब का था जब वो हाफ पेंट पहना करते थे. तब मौका मिलने पर प्रोजेक्शन रूम में चले जाया करते थे.
उस वक्त वो फेसिनेटिंग लगता था और आज जब उसके बारे में सोचते हैं तो और भी ज्यादा फेसिनेटिंग लगता है. उन्होंने हमेशा से सिनेमा का माहौल देखा है और हमेशा से इसका हिस्सा बनना चाहते थे. इसलिए उन्होंने पहले थिएटर किया, फिर टेलीविजन और फिर फिल्म लाइन का हिस्सा बन गया. जो भी फिल्मों में आना चाहते हैं, यदि वो थिएटर कर ले तो ये एक अच्छा माध्यम हो सकता है, जिसके जरिए सिनेमा की बहुत सारी चीजों को समझ सकते हैं.
उन्होंने कहा कि ऐसा नहीं है कि पहले मूवीस में स्ट्रांग वूमेन नहीं हुआ करती थी. उस वक्त भी महिलाओं को अपनी फ्रीडम हुआ करती थी, जितनी उस वक्त के मर्दों को हुआ करती थी. यदि कोई आपको कहता है कि औरत पीछे रहने वाली चीज है, इस बात को मानना नहीं चाहिए. इंडिपेंडेंट सेल्फ सस्टेनिंग वूमेन को प्रेजेंट कर उन्होंने कुछ नया नहीं किया है और ये सब उन्होंने अपनी जिंदगी में देखा. उन्हें ज्यादा इंटरेस्टिंग हमेशा औरतें ही लगी हैं, क्योंकि जब वो कुछ करने पर आती हैं तो उनका दिमाग पहले चलता है और सही चलता है. उन्होंने अपनी मां को देखकर ये सीखा है.