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नौजवान नक्सल कैडरों का संगठन से हुआ मोह भंग, माओवाद का आखिरी किला भी ध्वस्त होने के कगार पर - Young Naxal cadre desperate - YOUNG NAXAL CADRE DESPERATE

Naxalite surrender. झारखंड में सक्रिय नक्सली संगठनों से नौजवान कैडरों का मोह भंग हो रहा है. इसका ताजा उदाहरण कोल्हान में हुए एक साथ 15 नक्सली कैडरों का आत्मसमर्पण है. आत्मसमर्पण करने वाले नक्सली कैडरों ने यह दावा किया है कि कल तक संगठन के लिए जान देने का जज्बा रखने वाले युवा अब संगठन से हताश हो चुके है और धीरे धीरे सभी मुख्यधारा में लौटने की जुगत में हैं.

Young Naxal cadre desperate
Young Naxal cadre desperate

By ETV Bharat Jharkhand Team

Published : Apr 12, 2024, 7:51 PM IST

नौजवान नक्सल कैडरों का संगठन से मोह भंग

रांची: झारखंड के कोल्हान और सारंडा में सक्रिय 15 नक्सली कैडरों के एक साथ आत्मसमपर्ण से भाकपा माओवादियों को एक बहुत बड़ा झटका लगा है. हम यह भी कह सकते हैं कि इससे झारखंड में सक्रिय भाकपा माओवादियों का हेडक्वाटर तबाह होने के कागार पर पहुंच गया है. कोल्हान के सारंडा को माओवादियों का हेडक्वार्टर कहा जाता था. यहां कभी सैकड़ों की संख्या में नक्सली रहा करते थे, यहां तक कि माओवादियो का शीर्ष नेतृत्व भी इसी इलाके में रहकर पूरे झारखंड में नक्सली वारदातों को मॉनिटर करते थे. लेकिन अब हालात बदल गए हैं.

पुलिस के सामने सरेंडर करने वाले नक्सली

कोल्हान और सारंडा इलाके में सिर्फ चार नक्सली नेताओं के अलावा कुल 50 के करीब ही नक्सल कैडर बच गए हैं. इसके पीछे की सबसे बड़ी वजह है युवाओं का नक्सली संगठनों से मोह भंग होना. भाकपा माओवादियों के पास के पास युवा कैडरों की घोर कमी हो गई है. झारखंड पुलिस के आईजी अभियान अमोल वेणुकान्त होमकर ने बताया कि एक साथ 15 नक्सली कैडरों का आत्मसमपर्ण पूरे झारखंड पुलिस के लिए एक बहुत बड़ी सफलता है.

कैसे हो रहा युवाओं का नक्सलवाद से मोहभंग

आईजी अभियान के अनुसार कोल्हान और सारंडा में अपने आप को बचाने के लिए नक्सली नेता ग्रामीणों को ही लगातार निशाना बनाते आए हैं. केवल कोल्हान में ही पिछले डेढ़ साल में नक्सलियों के द्वारा लगाए गए आईईडी की वजह से 10 से ज्यादा निर्दोष ग्रामीण मारे गए. कई अपाहिज हो गए. वहीं जिन मवेशियों की वजह से ग्रामीणों का रोजी रोजगार चलता है उनमें से भी कई आईईडी ब्लास्ट के शिकार हो गए.

पुलिस के सामने सरेंडर करने वाले नक्सली

नतीजा धीरे-धीरे ग्रामीणों का नक्सली संगठनों से मोह भंग होने लगा जब ग्रामीणों का मोह भंग हुआ तो वैसे नक्सली कैडर जो ग्रामीण इलाके से निकल कर नक्सलियों के बहकावे में आकर संगठन से जुड़ गए थे उन्हें भी नक्सलियों की हकीकत समझ आने लगी, उसी का नतीजा है कि गुरुवार को एक साथ 15 युवा नक्सली कैडरों ने पुलिस के सामने हथियार डाल दिए.

सरेंडर करने वाले भाकपा माओवादी के नक्सलियों के नाम

  1. प्रधान कोड़ा उर्फ देवेन कोड़ा (45)
  2. चंद्रमोहन उर्फ चंद्रो अंगारिया उर्फ रोशन (29)
  3. पगला गोप उर्फ घासीराम गोप (49)
  4. विजय बोयपाई उर्फ अमन बोयपाई (23)
  5. गंगा राम पुरती उर्फ मोटरा पुरती (19)
  6. बोयो कोड़ा (46)
  7. जोगेन कोड़ा (44)
  8. पेलोंग कोड़ा उर्फ नीशा कोड़ा (19)
  9. सोनू चांपिया (19)
  10. रामजा पुरती उर्फ डुगूद पुरती (49)
  11. सोहन सिंह हेम्ब्रम उर्फ सीनू (24)
  12. डोरन चांपिया उर्फ गोलमाय (23)
  13. सुशील उर्फ मोगा चांपिया (50)
  14. मनी चांपिया (40)

हताश हैं आत्मसमपर्ण करने वाले युवा नक्सली

गौरतलब है कि गुरुवार को चाईबासा में एक साथ 15 नक्सलियों ने आत्मसमर्पण कर दिया था. आत्मसमर्पण करने वाला एक नक्सली तो मात्र 16 साल का है, जबकि 6 नक्सली कैडर 18 साल से लेकर 25 साल के बीच के हैं. आईजी अभियान के अनुसार समर्पण करने वाले सभी नक्सली कैडर संगठन में रह कर हतास हो गए थे. दरअसल वह देख रहे थे कि बड़े नक्सली नेताओं के बच्चे कभी भी जंगल में भटकने तक नहीं आते हैं उन्हें यह सूचना मिली थी कि वह सभी बड़े-बड़े स्कूलों में पढ़ाई करते हैं और शानो शौकत की जिंदगी जीते हैं.

पुलिस के सामने सरेंडर करने वाले नक्सली

वहीं दूसरी तरफ नक्सली कैडरों का परिवार दो समय के रोटी के लिए भी तरश रहे हैं. जिन इलाकों में नक्सलियों का प्रभाव युवा कैडरों की वजह से है वहां न स्कूल है और न ही अस्पताल. आईजी अभियान के अनुसार जब नक्सल प्रभावित ग्रामीणों तक सुरक्षाबलों का प्रभाव पहुंचा तब गांव वालों को नक्सली संगठनों की हकीकत पता चला, जिसके बाद धीरे-धीरे सभी युवाओं का संगठन से मोह भंग होने शुरू हुआ.

नक्सल विरोधी अभियान में लगे जवान
कानूनी सलाह के साथ साथ रोजगार भी दिलाएगी पुलिस

आईजी अभियान अमोल होमकर के अनुसार आत्मसमर्पण करने वाले नक्सली चाहे किसी भी वजह से नक्सलवाद के रास्ते पर गए हो लेकिन अब वह मुख्य धारा में लौट आए हैं. इसलिए उनके जीवन को बेहतर बनाने की जिम्मेदारी अब सिर्फ पुलिस की है. आत्मसमर्पण करने वाले नक्सलियों को कुछ दिनों तक कानूनी कार्रवाई से गुजरना होगा, जिसमें हर तरह की सहायता पुलिस के द्वारा उन्हें दी जाएगी. जब उनके मामले खत्म हो जाएंगे तब उनकी रोजगार की व्यवस्था भी पुलिस के द्वारा ही की जाएगी ताकि वह एक इज्जत की जिंदगी जी सके.

नक्सल विरोधी अभियान में लगे जवान
कमजोर हुआ नक्सल संगठन

दो वर्ष पूर्व तक झारखंड में नक्सलियों के लिए चार सबसे सुरक्षित ठिकाने माने जाते थे, जिनमें बूढ़ा पहाड़, पारसनाथ, झुमरा और सारंडा शामिल है. लेकिन पुलिस के द्वारा ऑपरेशन डबल बुल और आपरेशन ऑक्टोपस चला कर उनके सबसे सुरक्षित ठिकाने बूढ़ा पहाड़, बुल बुल जंगल, पारसनाथ और झुमरा से उन्हें पूरी तरह खदेड़ दिया जा चुका है. अब बारी सारंडा की है, सारंडा में भी नक्सलियों की स्थिति बेहद खराब हो चुकी है ऐसे में अब पुलिस भी सारंडा में अंतिम वार की तैयारी में है.

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