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Places Of Worship Act से संबंधित नई याचिकाएं दायर किए जाने पर सुप्रीम कोर्ट नाराज - SUPREME COURT

1991 के पूजा स्थल कानून की वैधता से संबंधित कई नई याचिकाएं दायर होने पर सुप्रीम कोर्ट ने नाराजगी जतायी.

Supreme Court
सुप्रीम कोर्ट. (IANS)
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Feb 17, 2025, 1:23 PM IST

नई दिल्लीः सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 की वैधता से संबंधित एक मामले में कई नई याचिकाएं दायर होने पर नाराजगी व्यक्त की. दिन की कार्यवाही के आरंभ में वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह ने सुनवाई के लिए एक नई याचिका का उल्लेख किया, जिस पर प्रधान न्यायाधीश ने कहा "याचिकाएं दायर करने की एक सीमा होती है. बहुत सारे अंतरिम आवेदन दायर किए गए हैं. हम शायद इस पर विचार न कर पाएं." अब अप्रैल के पहले सप्ताह में इस पर सुनवाई होगी.

शीर्ष अदालत ने 12 दिसंबर 2024 के अपने आदेश के जरिए विभिन्न हिंदू पक्षों द्वारा दायर लगभग 18 मुकदमों में कार्यवाही को प्रभावी रूप से रोक दिया था, जिसमें वाराणसी में ज्ञानवापी, मथुरा में शाही ईदगाह मस्जिद और संभल में शाही जामा मस्जिद सहित 10 मस्जिदों के मूल धार्मिक चरित्र का पता लगाने के लिए सर्वेक्षण की मांग की गई थी. यहां हुई झड़प में चार लोग मारे गए थे. इसके बाद न्यायालय ने सभी याचिकाओं को 17 फरवरी को प्रभावी सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया था.

12 दिसंबर के बाद, कई याचिकाएं दायर की गई. जिनमें एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी, समाजवादी पार्टी नेता और कैराना सांसद इकरा चौधरी और कांग्रेस पार्टी शामिल हैं, जो 1991 के कानून के प्रभावी कार्यान्वयन की मांग कर रही हैं. यूपी के कैराना से लोकसभा सांसद चौधरी ने 14 फरवरी को मस्जिदों और दरगाहों को निशाना बनाकर कानूनी कार्रवाई की बढ़ती प्रवृत्ति पर अंकुश लगाने की मांग की थी. शीर्ष अदालत ने पहले ओवैसी की इसी तरह की प्रार्थना वाली एक अलग याचिका पर विचार करने पर सहमति जताई थी.

हिंदू संगठन अखिल भारतीय संत समिति ने 1991 के कानून के प्रावधानों की वैधता के खिलाफ दायर मामलों में हस्तक्षेप करने की मांग करते हुए शीर्ष अदालत का रुख किया था. इससे पहले, पीठ छह याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें वकील अश्विनी उपाध्याय द्वारा दायर की गई मुख्य याचिका भी शामिल थी. जिसमें 1991 के कानून के विभिन्न प्रावधानों को चुनौती दी गई थी. यह कानून किसी भी पूजा स्थल के धार्मिक परिवर्तन पर रोक लगाता है तथा किसी भी पूजा स्थल के धार्मिक चरित्र को उसी रूप में बनाए रखने का प्रावधान करता है जैसा वह 15 अगस्त, 1947 को था.

हालांकि, अयोध्या में राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद से संबंधित विवाद को इसके दायरे से बाहर रखा गया. जमीयत उलेमा-ए-हिंद जैसे मुस्लिम संगठन सांप्रदायिक सद्भाव बनाए रखने और मस्जिदों की वर्तमान स्थिति को बनाए रखने के लिए 1991 के कानून का सख्ती से क्रियान्वयन चाहते हैं, जिन पर हिंदुओं ने इस आधार पर कब्जा करने की मांग की थी कि आक्रमणकारियों द्वारा ध्वस्त किए जाने से पहले वे मंदिर थे.

दूसरी ओर, उपाध्याय जैसे याचिकाकर्ताओं ने अधिनियम की धारा 2, 3 और 4 को रद्द करने की मांग की है. इन कारणों में यह भी तर्क था कि ये प्रावधान किसी व्यक्ति या धार्मिक समूह के पूजा स्थल को पुनः प्राप्त करने के लिए न्यायिक उपचार के अधिकार को छीन लेते हैं. पीठ ने कहा था प्राथमिक मुद्दा 1991 के कानून की धारा 3 और 4 से संबंधित है. धारा 3 पूजा स्थलों के धर्मांतरण पर रोक से संबंधित है, जबकि धारा 4 कुछ पूजा स्थलों के धार्मिक चरित्र की घोषणा और न्यायालयों के अधिकार क्षेत्र पर रोक आदि से संबंधित है.

ज्ञानवापी मस्जिद प्रबंधन समिति ने अपनी हस्तक्षेप याचिका में 1991 के कानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली कई लंबित याचिकाओं का विरोध किया. मस्जिद समिति ने पिछले कुछ वर्षों में विभिन्न मस्जिदों और दरगाहों के संबंध में किए गए विवादास्पद दावों की एक सूची दी है, जिनमें मथुरा की शाही ईदगाह मस्जिद, दिल्ली के कुतुब मीनार के पास कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद, मध्य प्रदेश की कमाल मौला मस्जिद और अन्य शामिल हैं. इसलिए, इसने कहा कि अधिनियम को चुनौती देने वाली याचिकाएं इन धार्मिक स्थलों के खिलाफ मुकदमा चलाने की सुविधा प्रदान करने के शरारतपूर्ण इरादे से दायर की गई थीं, जिन्हें वर्तमान में 1991 का अधिनियम संरक्षित करता है.

इसे भी पढ़ेंः वर्शिप एक्ट की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई, सुुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से मांगा जवाब

इसे भी पढ़ेंः पूजा स्थल अधिनियम 1991 लागू करने की मांग, सुप्रीम कोर्ट ओवैसी की याचिका पर सुनवाई को तैयार

नई दिल्लीः सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 की वैधता से संबंधित एक मामले में कई नई याचिकाएं दायर होने पर नाराजगी व्यक्त की. दिन की कार्यवाही के आरंभ में वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह ने सुनवाई के लिए एक नई याचिका का उल्लेख किया, जिस पर प्रधान न्यायाधीश ने कहा "याचिकाएं दायर करने की एक सीमा होती है. बहुत सारे अंतरिम आवेदन दायर किए गए हैं. हम शायद इस पर विचार न कर पाएं." अब अप्रैल के पहले सप्ताह में इस पर सुनवाई होगी.

शीर्ष अदालत ने 12 दिसंबर 2024 के अपने आदेश के जरिए विभिन्न हिंदू पक्षों द्वारा दायर लगभग 18 मुकदमों में कार्यवाही को प्रभावी रूप से रोक दिया था, जिसमें वाराणसी में ज्ञानवापी, मथुरा में शाही ईदगाह मस्जिद और संभल में शाही जामा मस्जिद सहित 10 मस्जिदों के मूल धार्मिक चरित्र का पता लगाने के लिए सर्वेक्षण की मांग की गई थी. यहां हुई झड़प में चार लोग मारे गए थे. इसके बाद न्यायालय ने सभी याचिकाओं को 17 फरवरी को प्रभावी सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया था.

12 दिसंबर के बाद, कई याचिकाएं दायर की गई. जिनमें एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी, समाजवादी पार्टी नेता और कैराना सांसद इकरा चौधरी और कांग्रेस पार्टी शामिल हैं, जो 1991 के कानून के प्रभावी कार्यान्वयन की मांग कर रही हैं. यूपी के कैराना से लोकसभा सांसद चौधरी ने 14 फरवरी को मस्जिदों और दरगाहों को निशाना बनाकर कानूनी कार्रवाई की बढ़ती प्रवृत्ति पर अंकुश लगाने की मांग की थी. शीर्ष अदालत ने पहले ओवैसी की इसी तरह की प्रार्थना वाली एक अलग याचिका पर विचार करने पर सहमति जताई थी.

हिंदू संगठन अखिल भारतीय संत समिति ने 1991 के कानून के प्रावधानों की वैधता के खिलाफ दायर मामलों में हस्तक्षेप करने की मांग करते हुए शीर्ष अदालत का रुख किया था. इससे पहले, पीठ छह याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें वकील अश्विनी उपाध्याय द्वारा दायर की गई मुख्य याचिका भी शामिल थी. जिसमें 1991 के कानून के विभिन्न प्रावधानों को चुनौती दी गई थी. यह कानून किसी भी पूजा स्थल के धार्मिक परिवर्तन पर रोक लगाता है तथा किसी भी पूजा स्थल के धार्मिक चरित्र को उसी रूप में बनाए रखने का प्रावधान करता है जैसा वह 15 अगस्त, 1947 को था.

हालांकि, अयोध्या में राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद से संबंधित विवाद को इसके दायरे से बाहर रखा गया. जमीयत उलेमा-ए-हिंद जैसे मुस्लिम संगठन सांप्रदायिक सद्भाव बनाए रखने और मस्जिदों की वर्तमान स्थिति को बनाए रखने के लिए 1991 के कानून का सख्ती से क्रियान्वयन चाहते हैं, जिन पर हिंदुओं ने इस आधार पर कब्जा करने की मांग की थी कि आक्रमणकारियों द्वारा ध्वस्त किए जाने से पहले वे मंदिर थे.

दूसरी ओर, उपाध्याय जैसे याचिकाकर्ताओं ने अधिनियम की धारा 2, 3 और 4 को रद्द करने की मांग की है. इन कारणों में यह भी तर्क था कि ये प्रावधान किसी व्यक्ति या धार्मिक समूह के पूजा स्थल को पुनः प्राप्त करने के लिए न्यायिक उपचार के अधिकार को छीन लेते हैं. पीठ ने कहा था प्राथमिक मुद्दा 1991 के कानून की धारा 3 और 4 से संबंधित है. धारा 3 पूजा स्थलों के धर्मांतरण पर रोक से संबंधित है, जबकि धारा 4 कुछ पूजा स्थलों के धार्मिक चरित्र की घोषणा और न्यायालयों के अधिकार क्षेत्र पर रोक आदि से संबंधित है.

ज्ञानवापी मस्जिद प्रबंधन समिति ने अपनी हस्तक्षेप याचिका में 1991 के कानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली कई लंबित याचिकाओं का विरोध किया. मस्जिद समिति ने पिछले कुछ वर्षों में विभिन्न मस्जिदों और दरगाहों के संबंध में किए गए विवादास्पद दावों की एक सूची दी है, जिनमें मथुरा की शाही ईदगाह मस्जिद, दिल्ली के कुतुब मीनार के पास कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद, मध्य प्रदेश की कमाल मौला मस्जिद और अन्य शामिल हैं. इसलिए, इसने कहा कि अधिनियम को चुनौती देने वाली याचिकाएं इन धार्मिक स्थलों के खिलाफ मुकदमा चलाने की सुविधा प्रदान करने के शरारतपूर्ण इरादे से दायर की गई थीं, जिन्हें वर्तमान में 1991 का अधिनियम संरक्षित करता है.

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