शिमला: हिमाचल में इस समय पेंशनर्स मांग उठा रहे हैं कि उनकी पेंशन पहली तारीख को ही खाते में आनी चाहिए, जैसे पहले आया करती थी। वहीं, कर्मचारी वर्ग भी महीने की पहली तारीख को ही वेतन का इंतजार कर रहा है. अगले मंगलवार को पहली तारीख है और खजाने में वेतन-पेंशन जारी करने के लिए 2000 करोड़ रुपए की रकम होना जरूरी है. करीब सवा दो लाख सरकारी कर्मचारियों के वेतन पर हिमाचल में हर महीने 1200 करोड़ रुपए खर्च होते हैं. वहीं, पौने दो लाख पेंशनर्स की पेंशन का भुगतान करने के लिए 800 करोड़ रुपए चाहिए. ऐसे में सवाल है कि क्या इस बार पहली तारीख को खजाने में इतनी रकम होगी या नहीं. कोषागार की वित्तीय स्थिति महीने के आखिरी दिन में स्पष्ट होती है.
हिमाचल के इतिहास में सितंबर महीना ऐसा रहा है, जब कर्मचारियों व पेंशनर्स को पहली तारीख को खाते में उनका वेतन-पेंशन क्रेडिट नहीं हो पाया था. वेतन पांच तारीख को और पेंशन 10 तारीख को आई थी. सीएम सुखविंदर सिंह सुक्खू ने मानसून सेशन के दौरान कहा था कि पहली तारीख को वेतन व पेंशन देने के लिए सरकार को कर्ज लेना पड़ता है, जिसके ब्याज के रूप में 2.80 करोड़ रुपए मासिक चुकाने पड़ते हैं. ऐसे में पहले हफ्ते में कर्ज न लेकर राज्य सरकार इस रकम को बचा रही है. यही कारण है कि राज्य सरकार ने सात सौ करोड़ रुपए का कर्ज लिया जो 12 सितंबर को खजाने में आया था.
जयराम सरकार पर फोड़ा कर्ज की ठीकरा:कांग्रेस सरकार ने हिमाचल के आर्थिक संकट का ठीकरा पूर्व की जयराम सरकार पर फोड़ा है. मानसून सेशन के दौरान सीएम सुखविंदर सिंह सुक्खू ने वित्तीय स्थिति पर चर्चा का जवाब देते हुए कहा था कि रेवेन्यू सरप्लस होने के बावजूद पूर्व सरकार ने कर्मचारियों की डीए की देनदारी नहीं चुकाई. ये सारा बोझ उनकी सरकार पर आया है. सीएम ने कहा था कि वर्ष 2018 से लेकर 2022 तक सरकार रेवेन्यू सरप्लस थी. यही नहीं, इस अवधि में राज्य सरकार को रेवेन्यू डेफिसिट ग्रांट के रूप में 47,128 करोड़ रुपए मिले थे. जीएसटी प्रतिपूर्ति के रूप में भी नौ हजार करोड़ मिले थे. तब पूर्व सरकार को कर्मचारियों की देनदारी की कुछ रकम तो चुकानी चाहिए थी.
कर्ज के सहारे कैसे चलेगी गाड़ी:हिमाचल में आर्थिक हालात ऐसे हैं कि कर्ज के सहारे गाड़ी खींचने से भी बात नहीं बनने वाली है. राज्य की सुखविंदर सिंह सरकार ने 15 दिसंबर 2022 से लेकर 31 जुलाई 2024 तक कुल 21366 करोड़ रुपए का लोन यानी कर्ज लिया है. सरकार ने इस दौरान बेशक 5864 करोड़ रुपए का कर्ज वापिस भी किया है, लेकिन इससे स्थितियां सुधरने वाली नहीं हैं. सरकार ने जीपीएफ के अगेंस्ट पहली जनवरी 2023 से 31 जुलाई 2024 तक की अवधि में भी 2810 करोड़ रुपए का लोन लिया है. ये आंकड़े खुद सरकार की तरफ से विधानसभा के मानसून सेशन में दिए गए थे. अगले साल मार्च महीने में हिमाचल सरकार पर 92 हजार करोड़ रुपए से अधिक के कर्ज का अनुमान है. फिर अगले साल किसी भी समय राज्य के कर्ज का आंकड़ा एक लाख करोड़ रुपए को छू सकता है.
राज्य सरकार के खजाने की बात की जाए तो इसमें पांच तारीख को केंद्र सरकार की तरफ से रेवेन्यू डेफिसिट ग्रांट के तौर पर 520 करोड़ रुपए कोषागार में आते हैं. उसके बाद फिर महीने की दस तारीख के आसपास केंद्रीय करों में हिस्सेदारी के रूप में करीब 740 करोड़ रुपए की रकम आती है. इसके अलावा राज्य के खुद के टैक्स व नॉन टैक्स रेवेन्यू के अधिकतम 1200 करोड़ रुपए का राजस्व आता है. अभी राज्य सरकार की लोन लिमिट 1617 करोड़ रुपए बची है. ये लिमिट दिसंबर 2024 तक की है. कर्मचारियों के वेतन व पेंशनर्स की पेंशन को यदि पहली तारीख को देना हो तो 2000 करोड़ रुपए चाहिए. वहीं, डीए व एरियर की बात तो दूर की कौड़ी है. क्योंकि डीए की किश्त 12 फीसदी पेंडिंग हैं. इसके अलावा संशोधित वेतनमान के एरियर का 9000 करोड़ रुपए चुकाना है.
वरिष्ठ मीडिया कर्मी बलदेव शर्मा कहते हैं, "हिमाचल का आर्थिक संकट गंभीर होता जा रहा है. राज्य सरकार को वित्तीय अनुशासन अपनाने की जरूरत है. नेता प्रतिपक्ष जयराम ठाकुर का कहना है कि हर बात के लिए पिछली सरकार को जिम्मेदार ठहराने से काम नहीं चलेगा. कांग्रेस सरकार को चुनाव पूर्व गारंटियां देने से पहले सोचना चाहिए था. अब हालात ये हो गए हैं कि कर्मचारियों को समय पर वेतन देने के भी लाले पड़ रहे हैं".
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