रांची: एक पुरानी कहावत है कि सीधे व्यक्ति से इतना मत बोलो कि वह पूरी तरह टेढ़ा हो जाए, यह कहावत कोल्हान के भोले-भाले ग्रामीणों पर बिल्कुल सटीक बैठती है. पुलिस को दुश्मन बताकर हथियार के बल पर क्रांति लाने की झूठी भाषा बोलकर नक्सलियों ने दशकों तक ग्रामीणों का शोषण किया, लेकिन अब ग्रामीण नक्सलियों के शोषण से तंग आकर उनका शिकार करने निकल पड़े हैं. नतीजतन नक्सली संगठनों में भय का माहौल है.
ग्रामीणों ने शुरू किया अभियान
झारखंड का कोल्हान एकमात्र ऐसा इलाका है, जहां नक्सली संगठन भाकपा माओवादी और पीएलएफआई आज भी सक्रिय हैं. दोनों संगठनों की मौजूदगी से अगर सबसे ज्यादा कोई परेशान है तो वह हैं भोले-भाले ग्रामीण. कोल्हान के जंगलों और बीहड़ों में रहने वाले ग्रामीण वहां के नक्सलियों से परेशान हैं. इलाके में पुलिस का नक्सली ऑपरेशन जारी है, लेकिन अब ग्रामीण भी नक्सलियों का शिकार करने निकल पड़े हैं. धनुष-बाण और पारंपरिक हथियारों से लैस होकर ग्रामीण नक्सलियों की तलाश कर रहे हैं और पकड़े जाते ही उन्हें भरी पंचायत में मौत की सजा दे रहे हैं.
कानून हाथ में न लेने की पुलिस की अपील
झारखंड के डीजीपी अनुराग गुप्ता ने बताया कि अब तक मिली रिपोर्ट के अनुसार ग्रामीणों ने तीन नक्सलियों की हत्या की है. डीजीपी अनुराग गुप्ता ने कहा कि कानून हाथ में लेना कोई स्थायी समाधान नहीं है, आगे चलकर यह रास्ता और भी बुरा हो सकता है, पुलिस कोल्हान से नक्सलियों के सफाए के लिए प्रयासरत है.
दो दर्जन से ज्यादा ग्रामीणों की हुई है मौत
कोल्हान क्षेत्र में नक्सलियों के खिलाफ ग्रामीणों का आक्रोश बेवजह नहीं है. आज भी कोल्हान के 50 से अधिक गांवों के ग्रामीण अपनी आजीविका के लिए जंगलों और पहाड़ों पर निर्भर हैं. लेकिन नक्सलियों ने उन जंगलों में इतने बम लगा दिए हैं कि अब न केवल ग्रामीण बल्कि उनके जानवर भी उनके शिकार होने लगे हैं. पिछले दो वर्षों में कोल्हान में दो दर्जन से अधिक ग्रामीण बमों से मारे गए या अपंग हो गए हैं. इसके अलावा नक्सलियों ने मुखबिरी के शक में कई ग्रामीणों की हत्या कर दी.
नतीजतन, ग्रामीणों में नक्सलियों के प्रति नफरत की भावना पैदा हो गई है. पहले से ही भाकपा माओवादियों के अत्याचारों से पीड़ित ग्रामीणों पर अचानक इस महीने पीएलएफआई ने भी कहर बरपाना शुरू कर दिया, जिसके बाद ग्रामीणों ने नक्सलियों का शिकार करने का फैसला किया.
इस लड़ाई में पीस रहे बेबस ग्रामीण
दरअसल, नक्सलियों ने खुद को बचाने के लिए कोल्हान इलाके में आईईडी बमों का ऐसा चक्रव्यूह रचा है कि झारखंड पुलिस अब तक उसे भेद नहीं पाई है. नतीजतन, कोल्हान में लगातार हो रहे आईईडी बमों से ग्रामीणों की जान जाने लगी है, उनके जानवर भी विस्फोटों में मारे जाने लगे हैं. ग्रामीणों की मौत का आंकड़ा रुकने की बजाय, हर दिन बढ़ता ही गया. जहां ग्रामीणों का जंगलों में जाना मजबूरी है, वहीं सुरक्षा बलों का भी नक्सलियों के खात्मे के लिए जंगलों में उतरना बेहद जरूरी.
ऐसे में ग्रामीण और सुरक्षा बल दोनों ही आईईडी बमों का सामना कर रहे हैं. आंकड़े बेहद चौंकाने वाले हैं. पिछले डेढ़ साल में नक्सलियों द्वारा लगाए गए आईईडी बमों के विस्फोट से हमारे 20 जवान घायल हो चुके हैं. लेकिन ग्रामीणों की स्थिति इससे भी बदतर है. नक्सलियों द्वारा लगाए गए आईईडी बमों के विस्फोट के कारण अब तक एक दर्जन से अधिक ग्रामीणों की जान जा चुकी है, जबकि कई अपंग हो गए हैं.