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कौन हैं इंजीनियर रशीद ? जिनकी अंतरिम जमानत से कश्मीर में मची है राजनीतिक हलचल ? जानें - Jammu Kashmir Assembly Election - JAMMU KASHMIR ASSEMBLY ELECTION

Who is Engineer Rashid: दिल्ली की एक अदालत ने कश्मीरी सांसद इंजीनियर रशीद को जमानत दे दी है. वह टेरर फंडिंग मामले में 2019 से जेल में बंद थे. उनका असली नाम अब्दुल रशीद शेख है.

इंजीनियर रशीद
इंजीनियर रशीद (ANI)

By ETV Bharat Hindi Team

Published : Sep 12, 2024, 1:27 PM IST

नई दिल्ली:कश्मीरी सांसद इंजीनियर रशीद बुधवार 11 सितंबर को तिहाड़ जेल से बाहर आए. दिल्ली की एक अदालत ने उन्हें आतंकी फंडिंग मामले में 2 अक्टूबर तक अंतरिम जमानत दी है. इसके साथ ही रशीद अब जम्मू-कश्मीर में होने वाले विधानसभा चुनावों में प्रचार कर सकेंगे.

बता दें कि केंद्र शासित प्रदेश में तीन चरणों में विधानसभा चुनाव होने हैं, जो एक अक्टूबर को समाप्त होंगे और इसके नतीजे आठ अक्टूबर को घोषित किए जाएंगे. चुनाव में उनकी पार्टी अवामी इत्तेहाद पार्टी (AIP) भी भाग ले रही है.

रशीद की अवामी इत्तेहाद पार्टी ने विधानसभा चुनाव में 34 उम्मीदवार उतारे हैं. उनके छोटे भाई खुर्शीद अहमद शेख भी उत्तरी कश्मीर के कुपवाड़ा जिले की लंगेट सीट से उम्मीदवार हैं. विधानसभा चुनाव प्रचार में राशिद के उतरने से विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी को बड़ी बढ़त मिलने की उम्मीद है.

कौन हैं इंजीनियर रशीद?
इंजीनियर रशीद का असली नाम अब्दुल रशीद शेख है. वह टेरर फंडिंग मामले में 2019 से जेल में बंद थे. रशीद लंगेट सीट से दो बार विधायक रह चुके हैं. फिलहाल वह त्तरी कश्मीर की बारामूला सीट से सांसद हैं. वह अलगाववादी नेता रहे हैं.

लोकसभा चुनाव में उमर अब्दुल्ला को दी मात
57 साल के रशीद लोकसभा चुनाव 2024 के दौरान उस समय चर्चा में आए थे, जब उन्होंने उत्तरी कश्मीर की बारामूला सीट पर जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला को दो लाख से अधिक मतों से हराया था.

रशीद की जीत चौंकाने वाली थी, क्योंकि उन्होंने तिहाड़ जेल से चुनाव लड़ा था, जहां वे पिछले पांच सालों से गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (UAPA) के तहत आरोपों का सामना कर रहे हैं. राशिद ने एक स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा था और विधानसभा चुनावों के विपरीत उन्हें लोकसभा चुनावों के दौरान प्रचार करने की अनुमति नहीं मिली थी.

अलगाववादी से मुख्यधारा के बने राजनेता
2008 में मुख्यधारा की राजनीति में शामिल होने से पहले, वह मारे गए हुर्रियत नेता और जेकेपीसी के संस्थापक अब्दुल गनी लोन, सज्जाद लोन के पिता के करीबी थे. वह 1978 में अब्दुल गनी लोन द्वारा स्थापित पीपुल्स कॉन्फ्रेंस में शामिल हुए थे.

गौरतलब है कि पीपुल्स कॉन्फ्रेंस उस समय अलगाववादी राजनीतिक खेमे का हिस्सा थी. हालांकि, बाद में रशीद ने अलगाववादी राजनीति से किनारा कर लिया और सिविल इंजीनियर के रूप में सरकारी सेवा में शामिल हो गए. रशीद ने 2008 में कुपवाड़ा जिले की लंगेट विधानसभा सीट से चुनाव जीतकर मुख्यधारा की राजनीति में औपचारिक प्रवेश किया और 2014 के विधानसभा चुनाव में भी उन्होंने इसी सीट से जीत दर्ज की.

बाद में उन्होंने अवामी इत्तेहाद पार्टी की स्थापना की, जिसे अभी तक भारतीय चुनाव आयोग (ECI) ने राजनीतिक दल के रूप में मान्यता नहीं दी है. रशीद ने 2019 के संसदीय चुनावों में बारामुल्ला से भी चुनाव लड़ा था, लेकिन हार गए थे. तब नेशनल कॉन्फ्रेंस के अकबर लोन ने यह सीट जीती थी.

आम आदमी की छवि
रशीद आम आदमी की छवि रखने और ऐसे मुद्दे उठाने के लिए जाने जाते हैं जो आम लोगों के जुड़े होते हैं. अक्सर पठानी सूट और फिरन- कश्मीरी ऊनी गाउन पहने हुए दिखाई देने वाले रशीद ने चुनावों के दौरान युवाओं के बीच अपनी खास जगह बनाई.

2019 में आतंकी फंडिंग मामले में गिरफ्तारी
अगस्त 2019 में अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के तुरंत बाद रशीद को राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) ने आतंकी फंडिंग के एक मामले में गिरफ्तार किया था. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार रशीद पर 2017 में अलगाववादी नेताओं के खिलाफ हवाला के जरिए धन प्राप्त करने और इकट्ठा करने के मामले में आपराधिक साजिश का आरोप है, हालांकि, मामले में रशीद का नाम शुरू में नहीं था.

18 जनवरी, 2018 को दायर एजेंसी की पहली चार्जशीट में 12 आरोपियों में उसका नाम नहीं था. हालांकि, बाद की जांच में रशीद का नाम सामने आया. उसे 9 अगस्त, 2019 को गिरफ्तार किया गया था. 4 अक्टूबर 2019 को दायर एक सप्लीनेंट्री चार्जशीट में एनआईए ने राशिद और जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट के प्रमुख यासीन मलिक सहित पांच लोगों को नामजद किया था.

जमानत मिलने के समय पर सवाल
जम्मू-कश्मीर के मुख्यधारा के राजनेताओं ने रशीद की जमानत के समय पर सवाल उठाए हैं. नेशनलस कॉन्फ्रेंस और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) दोनों ने गड़बड़ी की आशंका जताई है और दावा किया है कि बीजेपी का एआईपी और अन्य छोटी पार्टियों के साथ कुछ न तुछ समझौता है.

पीडीपी प्रमुख और पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने सोमवार को पूछा था कि एआईपी को इतने सारे उम्मीदवार उतारने के लिए संसाधन कहां से मिल रहे हैं.

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