पटनाःप्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को मन की बात में एक पत्रकार भीम सिंह भावेश का जिक्र किया. पीएम ने कहा कि 'परमार्थ परमो धर्मः' बिहार के भीम सिंह भावेश मुसहर समाज के उत्थान के लिए काम कर रहे हैं. उनकी कहानी प्रेरणा देने वाली है. पीएम ने इनके बारे में काफी चर्चा की है. मन की बात कार्यक्रम के बाद सब हैरान हैं कि आखिर में ये शख्स कौन है, जिसका पीएम भी मुरीद हो गए.
भोजपुर के रहने वाले हैं भीम सिंह भावेशः दरअसल, भीम सिंह भावेश भोजपुर के रहने वाले हैं. पेशे से पत्रकार सह लेखक हैं. भावेश मुसहर समाज के उत्थान के लिए काम कर रहे हैं. भीम सिंह भावेश भोजपुर में रहकर मुसहर जाति के लोगों में जागरूकता फैलाते हैं. उनकी पढ़ाई और अच्छी जीवन शैली के लिए काम करते हैं. उल्लेखनीय काम को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मन की बात में उनकी चर्चा की.
मुसहर समाज की हालत दयनीय: बिहार में मुसहर समाज की हालत दयनीय है. ऐसे में सवाल उठता है कि खुद को दलित का नेता कहने वाले जीतन राम मांझी क्या कर रहे हैं? क्योंकि पूर्व सीएम जीतन राम मांझी भी मुसहर समाज से आते हैं. जिस समाज का व्यक्ति इतना बड़ा नेता है, उस समाज की स्थिति ऐसी क्यों है? आपको बता दें कि माउंटन मैन दशरथ मांझी भी मुसहर समाज के थे. जिन्होंने पहाड़ तोड़कर रास्ता बनाने के लिए अपनी पूरी जीवन बिता दी.
शिक्षा की कमीः समझने की जरूरत है कि आजादी के 75 साल बाद भी मुसहर जाति की स्थिति ऐसी क्यों है? शिक्षा के क्षेत्र में मुसहर जाति की स्थिति इतनी खराब है कि पूरे बिहार में केवल 1379 छात्र आईटीआई से डिप्लोमा किया है. 17. 20 प्रतिशत की आबादी में केवल 0.03% ही पढ़े लिखे हैं. काफी कम लोगों ने स्नातक और स्नातकोत्तर की पढ़ाई की है.
क्या कहते हैं विशेषज्ञः अनुसूचित जाति जनजाति में तीसरी सबसे बड़ी आबादी मुसहर की है. करीब 40 लाख 35 हजार 787 आबादी है बावजूद यह हाल है. मुख्य धारा से कोसों दूर हैं. ईटीवी भारत ने इस सवाल का जवाब जानने के लिए मुसहर के बीच में काम करने वाली पद्मश्री सुधा वर्गीज से खास बातचीत की. उन्होंने जो बताया वह काफी चौंकाने वाला है. सुधा वर्गीज पटना के आसपास के इलाकों में मुसहर जाति के बीच में शिक्षा और उनके रहन-सहन पर जागरूकता अभियान चलाती हैं.
आर्थिक स्थिति काफी खराबःसुधा वर्गीज बताती हैं कि पिछड़ेपन की सबसे बड़ी वजह आर्थिक स्थिति है. इनके पास 1 इंच भी जमीन नहीं है. मुसहर जाति खेतिहर मजदूर बनकर रह गए. इन्हें साल में 3 महीने ही दूसरों के खेत में काम मिलता है. इनके पास कोई भी स्किल्ड नहीं है कि बाहर जाकर कुछ काम कर सके. मुसहर जाति से होने के कारण कई लोग काम भी नहीं देते हैं. सुधा बताती हैं कि कभी-कभी तो इनके यहां खाना नहीं बनता है. एक वक्त का खाना भी जुटाना मुश्किल हो जाता है.
"सामाजिक रूप से इनका बहिष्कार होता रहा है. कोई भी इनके साथ बैठकर बातचीत नहीं करते हैं. कोई इनके साथ इंटरेक्शन नहीं होता है. मजदूरी करवाते भी हैं तो उस हिसाब से रुपए नहीं देते. सोशली इंटरेक्शन और स्वीकार्यता नहीं है. शिक्षा की भी कमी है. कोई स्किल नहीं होने से बाहर काम नहीं मिल पाता है. दूसरे के खेतों में काम कर घर चलाते हैं वो भी मात्र तीन महीने ही काम मिलते हैं." -सुधा वर्गीज, समाजसेवी
'सरकार का दोहरा रवैया': सुधा वर्गीज ने तो इसको लेकर सरकार को भी दोषी ठहराया. कहा कि शिक्षा के क्षेत्र में सरकार का दोहरा रवैया है. आंगनबाड़ी केंद्र में भी मुसहर जाति के बच्चों का एडमिशन नहीं होता है. छोटे-छोटे बच्चे मछली पकड़ते हैं. वे बताती हैं कि लोगों को जागरूक किया जा रहा है. उन्होंने इसपर काम किया है. माता पिता को जागरूक कर रहे हैं ताकि वे बच्चों को इनके पास भेंजे.