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मुसहर के उत्थान के लिए काम करने वाले भावेश की PM ने की तारीफ, सवाल बरकरार- मुसहर जाति का उत्थान क्यों नहीं हुआ? - Narendra Modi

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को मन की बात 110वां संस्करण को संबोधित किया. इस दौरान उन्होंने एक व्यक्ति भीम सिंह भावेश की चर्चा की. जो मुसहर समाज के उत्थान के लिए काम कर रहे हैं. पीएम मोदी इनके मुरीद हो गए. पढ़ें पूरी खबर.

बिहार में मुसहर समाज की स्थिति
बिहार में मुसहर समाज की स्थिति

By ETV Bharat Bihar Team

Published : Feb 26, 2024, 8:21 PM IST

Updated : Feb 26, 2024, 8:33 PM IST

पटनाःप्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को मन की बात में एक पत्रकार भीम सिंह भावेश का जिक्र किया. पीएम ने कहा कि 'परमार्थ परमो धर्मः' बिहार के भीम सिंह भावेश मुसहर समाज के उत्थान के लिए काम कर रहे हैं. उनकी कहानी प्रेरणा देने वाली है. पीएम ने इनके बारे में काफी चर्चा की है. मन की बात कार्यक्रम के बाद सब हैरान हैं कि आखिर में ये शख्स कौन है, जिसका पीएम भी मुरीद हो गए.

भोजपुर के रहने वाले हैं भीम सिंह भावेशः दरअसल, भीम सिंह भावेश भोजपुर के रहने वाले हैं. पेशे से पत्रकार सह लेखक हैं. भावेश मुसहर समाज के उत्थान के लिए काम कर रहे हैं. भीम सिंह भावेश भोजपुर में रहकर मुसहर जाति के लोगों में जागरूकता फैलाते हैं. उनकी पढ़ाई और अच्छी जीवन शैली के लिए काम करते हैं. उल्लेखनीय काम को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मन की बात में उनकी चर्चा की.

मुसहर समाज की हालत दयनीय: बिहार में मुसहर समाज की हालत दयनीय है. ऐसे में सवाल उठता है कि खुद को दलित का नेता कहने वाले जीतन राम मांझी क्या कर रहे हैं? क्योंकि पूर्व सीएम जीतन राम मांझी भी मुसहर समाज से आते हैं. जिस समाज का व्यक्ति इतना बड़ा नेता है, उस समाज की स्थिति ऐसी क्यों है? आपको बता दें कि माउंटन मैन दशरथ मांझी भी मुसहर समाज के थे. जिन्होंने पहाड़ तोड़कर रास्ता बनाने के लिए अपनी पूरी जीवन बिता दी.

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शिक्षा की कमीः समझने की जरूरत है कि आजादी के 75 साल बाद भी मुसहर जाति की स्थिति ऐसी क्यों है? शिक्षा के क्षेत्र में मुसहर जाति की स्थिति इतनी खराब है कि पूरे बिहार में केवल 1379 छात्र आईटीआई से डिप्लोमा किया है. 17. 20 प्रतिशत की आबादी में केवल 0.03% ही पढ़े लिखे हैं. काफी कम लोगों ने स्नातक और स्नातकोत्तर की पढ़ाई की है.

क्या कहते हैं विशेषज्ञः अनुसूचित जाति जनजाति में तीसरी सबसे बड़ी आबादी मुसहर की है. करीब 40 लाख 35 हजार 787 आबादी है बावजूद यह हाल है. मुख्य धारा से कोसों दूर हैं. ईटीवी भारत ने इस सवाल का जवाब जानने के लिए मुसहर के बीच में काम करने वाली पद्मश्री सुधा वर्गीज से खास बातचीत की. उन्होंने जो बताया वह काफी चौंकाने वाला है. सुधा वर्गीज पटना के आसपास के इलाकों में मुसहर जाति के बीच में शिक्षा और उनके रहन-सहन पर जागरूकता अभियान चलाती हैं.

आर्थिक स्थिति काफी खराबःसुधा वर्गीज बताती हैं कि पिछड़ेपन की सबसे बड़ी वजह आर्थिक स्थिति है. इनके पास 1 इंच भी जमीन नहीं है. मुसहर जाति खेतिहर मजदूर बनकर रह गए. इन्हें साल में 3 महीने ही दूसरों के खेत में काम मिलता है. इनके पास कोई भी स्किल्ड नहीं है कि बाहर जाकर कुछ काम कर सके. मुसहर जाति से होने के कारण कई लोग काम भी नहीं देते हैं. सुधा बताती हैं कि कभी-कभी तो इनके यहां खाना नहीं बनता है. एक वक्त का खाना भी जुटाना मुश्किल हो जाता है.

"सामाजिक रूप से इनका बहिष्कार होता रहा है. कोई भी इनके साथ बैठकर बातचीत नहीं करते हैं. कोई इनके साथ इंटरेक्शन नहीं होता है. मजदूरी करवाते भी हैं तो उस हिसाब से रुपए नहीं देते. सोशली इंटरेक्शन और स्वीकार्यता नहीं है. शिक्षा की भी कमी है. कोई स्किल नहीं होने से बाहर काम नहीं मिल पाता है. दूसरे के खेतों में काम कर घर चलाते हैं वो भी मात्र तीन महीने ही काम मिलते हैं." -सुधा वर्गीज, समाजसेवी

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'सरकार का दोहरा रवैया': सुधा वर्गीज ने तो इसको लेकर सरकार को भी दोषी ठहराया. कहा कि शिक्षा के क्षेत्र में सरकार का दोहरा रवैया है. आंगनबाड़ी केंद्र में भी मुसहर जाति के बच्चों का एडमिशन नहीं होता है. छोटे-छोटे बच्चे मछली पकड़ते हैं. वे बताती हैं कि लोगों को जागरूक किया जा रहा है. उन्होंने इसपर काम किया है. माता पिता को जागरूक कर रहे हैं ताकि वे बच्चों को इनके पास भेंजे.

3000 बच्चों को पढ़ाती हैं सुधा वर्गीजः सुधा वर्गीज ने कहा कि हमने आनंद शिक्षा केंद्र खोला है, जिसमें छोटे-छोटे बच्चों को पढ़ाते हैं. यहां मुसहर जाति के बच्चे भी आकर पढ़ते हैं. लेकिन संघर्ष है, क्योंकि उन्हें पता नहीं है कि पढ़ाई क्या है. उन्होंने कहा कि मैं 3000 बच्चों को पढ़ाती हूं. बच्चियों को पढ़ा रही थी तो उनकी मांओं ने कहा कि लड़कों को भी पढ़ाइए. खुले आसमान के नीचे पढ़ाते हैं. बिहार में कोई भी वालंटियर काम नहीं करते हैं. हम शिक्षक को पैसा देते हैं तो वे लोग पढ़ाते हैं. सभी का सरकारी स्कूल में नामांकन भी कराया है. कहा कि जब पढ़ेंगे नहीं तब तक कोई बदलाव नहीं होगा.

'रोजगार की जरूरत': सुधा बताती हैं कि उनकी संस्थान से जमीन लीज पर लेकर 10 महिलाओं ने खेती शुरू की थी. 2016 से इस कार्यक्रम को मैंने शुरू किया था. आज 3000 से ज्यादा महिलाएं खेती करती हैं. महिलाओं ने इसको लेकर तारीफ भी की. कहा कि अब मेरे बच्चे भूख से नहीं रोते हैं. महिलाएं खेती करना चाहती है लेकिन उनके पास पैसा नहीं है. लीज के लिए 20-25 हजार रुपए लगते हैं. इन्हे यदि रोजगार मिले तो ये उत्थान कर सकती है.

सरकार को ध्यान देने की जरूरतः सरकार योजनाओं में सुधार करें. अपना उदाहरण देते हुए बताया कि जिस तरह से मैं पढ़ाती हूं क्या सरकारी स्कूल में मुसहर जाति के बच्चों को नहीं पढ़ाया जा सकता है. उन्हें योजनाओं के साथ नहीं जोड़ा जा सकता है. मन लगाकर कमिटमेंट के साथ यदि सरकार काम करें तो उनकी जीवन शैली सुधर सकती है. उन्होंने कहा कि इसके साथ काफी काम किया जा सकता है. काफी स्पेस है काम करने का. लेकिन, सरकार उनके साथ काम नहीं करती है इंटरेक्ट नहीं करती है.

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Last Updated : Feb 26, 2024, 8:33 PM IST

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