वेदर जनरेटर टेक्नोलॉजी पर नहीं हो पाया काम (वीडियो- ईटीवी भारत) देहरादून (उत्तराखंड):प्राकृतिक धरोहरों के भरपूर हिमालयी राज्य उत्तराखंड हर साल गर्मियों के मौसम में वनाग्नि से दो चार होता हैं. हर साल लाखों टन जंगल और वन संपदा वनाग्नि की चपेट में आकर खाक हो जाती है. इस साल अभी तक 1,038 आग की घटनाएं घट चुकी हैं. जिसमें 1,385 हेक्टेयर जंगल जलकर खाक हो चुके हैं. इन घटनाओं से अब तक 5 लोगों की मौत भी हो चुकी है, कई लोग झुलसे भी हैं, लेकिन साल दर साल बढ़ती वनाग्नि के समाधान के लिए ठोस कदम अभी तक नहीं निकाला जा सका है.
उत्तराखंड में वनाग्नि (फोटो- ईटीवी भारत) उत्तराखंड की दो बड़ी आपदाओं का एक समाधान:उत्तराखंड के जंगलों को आग से होने वाले नुकसान से बचाने के लिए दुनिया की सबसे नवीनतम तकनीक वेदर जनरेटर टेक्नोलॉजी (Weather Generator Technology) है. जिसे बिना किसी दुष्प्रभाव के अमल में लाई जा सकती है. इस टेक्नोलॉजी के माध्यम से आयन जनरेटर मॉड्यूल स्थापित कर कई किलोमीटर दूर से बादलों को ट्रैवल करवा कर टारगेट एरिया में बारिश करवाई जाती है. इस टेक्नोलॉजी के माध्यम से केवल फॉरेस्ट फायर में ही नहीं बल्कि, उत्तराखंड की एक और सबसे बड़ी समस्या बादल फटने की स्थिति में भी इस टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल कर ऐसी घटनाओं को टाला जा सकता है.
सरकार की ओर से गठित समिति (फोटो सोर्स- उत्तराखंड आपदा प्रबंधन विभाग) क्या है वेदर जनरेटर टेक्नोलॉजी?वेदर जनरेटर टेक्नोलॉजी के तहत इलेक्ट्रोमैग्नेटिक मैग्नेटिक चार्जड पार्टिकल्स को वायुमंडल में छोड़कर नेगेटिव आयन के जरिए कई हजारों किलोमीटर दूर से बादलों को लाया जाता है. जिसे किसी विशेष क्षेत्र या चिन्हित जगह पर बारिश करवाई जाती है. इस टेक्नोलॉजी के जरिए किसी जगह पर सघन यानी घने बादल होने की स्थिति में वहां से बादलों को हटाया भी जा सकता है. जिससे बादल फटने की घटना को टाला जा सकता है.
वेदर जनरेटर टेक्नोलॉजी पर समिति की रिपोर्ट (फोटो सोर्स- उत्तराखंड अंतरिक्ष उपयोग केंद्र) दरअसल, इसके तहत वायुमंडल में इलेक्ट्रोमैग्नेटिक चार्जड पार्टिकल छोड़ने के बाद आसपास के बादलों को टारगेट एरिया पर ले जाकर एक निश्चित स्थान पर बारिश करवाई जाती है. इतना ही नहीं, इस टेक्नोलॉजी के माध्यम से केवल फॉरेस्ट फायर और बादल फटने की घटना ही नहीं, बल्कि प्रदूषण नियंत्रण समेत कई अन्य समस्याओं का भी समाधान किया जा सकता है.
समिति की रिपोर्ट (फोटो सोर्स- उत्तराखंड अंतरिक्ष उपयोग केंद्र) टेक्नोलॉजी तो अप्रूव हुई, लेकिन फाइलों में दब गई:उत्तराखंड में वनाग्नि और बादल फटने से होने वाली घटनाएं पुरानी है, जो समय के साथ उत्तराखंड के लिए भयावह हो रही है. लिहाजा, वनाग्नि और बादल फटने की घटनाओं से निपटने के लिए सरकार ने वेदर जनरेटर टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल को लेकर पहल की थी. साल 2021 में आपदा प्रबंधन विभाग ने आपदा से जुड़े अलग-अलग संस्थानों के 8 विशेषज्ञों की एक टीम गठित की. जिसमें मौसम विभाग, वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान देहरादून, उत्तराखंड स्पेस एप्लीकेशन सेंटर, आपदा प्रबंधन समेत कई तकनीकी संस्थानों के वैज्ञानिक शामिल थे.
बादल फटने की घटना (फोटो- ईटीवी भारत ग्राफिक्स) उस समय उत्तराखंड स्पेस एप्लीकेशन सेंटर (Uttarakhand Space Application Centre) के तत्कालीन डायरेक्टर डॉक्टर एमपीएस बिष्ट ने इस समिति का नेतृत्व किया था. ईटीवी से बातचीत में डॉक्टर एमपीएस बिष्ट ने बताया कि इस टेक्नोलॉजी पर शासन स्तर पर कई महीनों तक विचार विमर्श किया गया. उसके बाद इसका एक सफल डेमोंसट्रेशन भी किया गया था. इसको लेकर के तैयार हुई रिपोर्ट फाइलों में दब गई, जिसके बाद सरकार ने इस पर कुछ भी कार्रवाई नहीं की.
श्रीनगर में बारिश (फोटो- ईटीवी भारत) विभाग ने दिया ये जवाब:आपदा प्रबंधन सचिव इन रंजीत कुमार सिन्हा का कहना है कि यह उनके आपदा प्रबंधन विभाग में आने से पहले का विषय है, लेकिन यह काफी अच्छी टेक्नोलॉजी है. इसके जरिए उत्तराखंड की दो बड़ी समस्या वनाग्नि (Forest Fire) और बादल (Cloudburst) का एक साथ समाधान किया जा सकता है. उन्होंने बताया कि उत्तराखंड में इन दोनों समस्याओं को लेकर खुद सीएम धामी भी बेहद गंभीर हैं.
सीएम पुष्कर धामी ने निर्देश दिए हैं कि कृत्रिम बारिश (Artificial Rain) जैसे विकल्पों पर सोचा जाना चाहिए. उन्होंने बताया कि विभाग क्लाउड सीडिंग (Cloud Seeding) नाम की कृत्रिम बारिश टेक्नोलॉजी पर विचार कर रहा है. जल्द ही इस दिशा में विभाग रणनीति तैयार करेगा. हालांकि, क्लाउड सीडिंग के जरिए बारिश करवाने की प्रक्रिया में केमिकल छिड़काव का इस्तेमाल किया जाता है, जिस पर पर्यावरण से जुड़े लोग सवाल उठा रहे हैं.
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