पटना: बिहार में लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर हलचल बढ़ने लगी है. चुनाव आयोग की तैयारी भी जोर-शोर से चल रही है, तो दूसरी तरफ पार्टियों की ओर से भी अपनी तैयारी चल रही है. जहां, बीजेपी बूथ फतह करने पर जोर दे रही हैं. जदयू ने भी अपने नेताओं, कार्यकर्ताओं को जनता के बीच जाने के लिए कह दिया है. तेजस्वी यादव तो चुनावी घोषणा से पहले ही मैदान में उतर चुके हैं. लेकिन पिछले कुछ चुनाव की वोटिंग पैटर्न को देखें तो बिहार के शहरी इलाकों से अधिक, ग्रामीण इलाकों में वोटिंग हुई है और चुनाव आयोग के लिए यह बड़ी चुनौती है.
बिहार की सबसे बड़ी पार्टी: 40 लोकसभा सीटों को साधने के लिए सभी पार्टी अपनी-अपनी रणनीति बनाने में लगी हैं. बिहार में बीजेपी सदस्यों के मामले में सबसे बड़ी पार्टी है. बीजेपी के पास 1 करोड़ 24 लाख सदस्य बिहार में हैं. आरजेडी दूसरी बड़ी पार्टी है, जिसके सदस्यों की संख्या 98 लाख 64203 है. वहीं, जदयू की ओर से जो सदस्यता अभियान चलाया गया उसमें 70 लाख से अधिक सदस्य बनने का दावा किया गया, जो 2019 के मुकाबले 30 लाख अधिक है. 2022 में सभी दलों की ओर से सदस्यता अभियान चलाया गया था. कांग्रेस की ओर से भी 25 लाख से अधिक सदस्य बनाए जाने की बात कही जा रही है तो, वहीं लोजपा की ओर से भी दोनों गुट मिला दें तो 50 लाख सदस्य बनाने का दावा किया जा रहा है. हम और वामपंथी दल भी लाखों की संख्या में सदस्य बनाने की बात कर रहे हैं.
बिहार में शहरी और ग्रामीण वोट प्रतिशत: सभी पार्टियां सदस्यता अभियान चलाती हैं और प्रचार भी करती हैं. जनता को रिझाने की पूरी कोशिश करते हैं. चुनाव आयोग की तरफ से भी जागरूकता अभियान चलाया जाता है. लेकिन उसके बावजूद बिहार में 2019 और 2020 के चुनाव पर नजर डालें तो ग्रामीण इलाकों में जहां वोट प्रतिशत बढ़ रहा है. वहीं शहरी इलाकों में वोट प्रतिशत घट रहा है. पटना जिला के सभी विधानसभा क्षेत्र को देखें तो यह स्पष्ट हो जाएगा चुनाव आयोग के आंकड़े के अनुसार 2019 लोकसभा चुनाव में 51% वोट डाले गए थे. 2020 में हुए विधानसभा चुनाव में 51.12% लोगों ने वोट डाला था. कई शहरी इलाकों में 35% तो कहीं 36% तक वोट पड़े थे.
शहरों में वोटिंग प्रतिशत में उदासीनता: यह आंकड़ा पटना जिले का है, लेकिन अन्य शहरी इलाकों की स्थिति भी कमोबेश यही है. शहरी इलाकों में वोटिंग के प्रति उदासीनता पिछले चुनाव में साफ़ देखने को मिला है. राजनीतिक विशेषज्ञ प्रेम रंजन भारती का कहना है कि ''इसका एकमात्र कारण है कि ग्रामीण क्षेत्रों में वोटिंग के प्रति लोगों में उत्साह रहता है. लेकिन शहर जहां पढ़े हुए लोग अधिक हैं, वोटिंग के प्रति उत्साह नहीं रहता है.''