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By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : 4 hours ago

Updated : 2 hours ago

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दिल्ली की श्री देवोत्थान सेवा समिति ने 4,128 लावारिस अस्थियां गंगा में की विसर्जित, पाकिस्तान से भी लाए अस्थियां - four thousand ashes immersed Ganga

Uttarakhand Latest News, Haridwar Latest News: श्री देवोत्थान सेवा समिति ने शनिवार 28 सितंबर को 4,128 लावारिस अस्थियां गंगा में विसर्जित की. इस दौरान कुछ अस्थियां पाकिस्तान से भी भेजी गई थी. श्री देवोत्थान सेवा समिति बीते 23 सालों से ये काम कर रही है. संस्था अभीतक 1.50 लाख से ज्यादा लावारिस अस्थियों को गंगा में विसर्जित कर मुक्ति दिला चुकी है.

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लावारिस अस्थियां गंगा में की विसर्जित (ETV Bharat)

हरिद्वार: सनातन धर्म में मनुष्य के अंतिम संस्कार के बाद जब तक उसकी अस्थियों को गंगा में न प्रवाहित किया जाए, तब तक उसकी मुक्ति नहीं मानी जाती है, लेकिन कई ऐसे लोग हैं, जिनका कोई नहीं होता है और अंतिम संस्कार के बाद उनकी अस्थियां शमशान घाटों पर लावारिश छोड़ दी जाती हैं. हालांकि इस तरह की अस्थियों को गंगा में विसर्जित करने का बीड़ा दिल्ली की श्री देवोत्थान सेवा समिति में उठाया है. इस संस्था ने शनिवार 28 सितंबर को हरिद्वार में 4,128 लावारिस लोगों की अस्थियां विसर्जित की.

श्री देवोत्थान सेवा समिति के महामंत्री विजय शर्मा ने बताया कि उनकी संस्था पिछले 23 सालों से इस काम को कर रही है. महामंत्री विजय शर्मा के अनुसार उनकी संस्था बीते 23 सालों में एक लाख 65 हजार 289 लावारिस अस्थियों को हरिद्वार गंगा में विसर्जित कर चुकी है. श्री देवोत्थान सेवा समिति पूरे देश में ये काम करती है.

दिल्ली की श्री देवोत्थान सेवा समिति ने 4,128 लावारिस अस्थियां गंगा में की विसर्जित (ETV Bharat)

महामंत्री विजय शर्मा ने बताया कि शनिवार 28 सितंबर को भी श्री देवोत्थान सेवा समिति ने पूरे देश में एकत्र की गई करीब 4,128 लोगों की अस्थियों को पूरे विधि विधान के साथ कनखल स्थित सती घाट पर गंगा मे प्रवाहित किया गया. इन अस्थि कलशों को लेकर लोगों का काफिला दिल्ली से कल रवाना हुआ था, जो आज सोमवार सुबह हरिद्वार पहुंचा था.

श्री देवोत्थान समिति के अध्यक्ष अनिल नरेंद्र का कहना है कि इस साल 4,128 अस्थियां लेकर आए हैं. उनकी संस्था बीते 23 सालों से ये काम कर रही है. उनका मूल उद्देश्य आज की युवा पीढ़ी को सनातन धर्म का सांस्कृतिक और पौराणिक मूल्य की याद दिलाना है.

अध्यक्ष अनिल नरेंद्र कुछ किस्सों का जिक्र करते हुए बताते हैं कि जब वो श्मशान घाटों पर अस्थियां इकट्ठा करते हैं, वो उन्हें कुछ ऐसे लोगों की अस्थियां भी मिलती है, जो बहुत ही संपन्न लोग थे, लेकिन उनके बच्चों ने अपने माता-पिता की अस्थियों को विसर्जित करने की जरूरत नहीं समझी. इसीलिए वो न सिर्फ अस्थियों को गंगा में विसर्जित कर रहे है, बल्कि युवाओं को अपने धर्म की मान्यता के प्रति जागरूक भी कर रहे हैं.

अध्यक्ष अनिल नरेंद्र ने बताया कि शास्त्रों में तीन प्रकार के ऋण लिखे हैं. देव ऋण, ऋषि ऋण और पितृ ऋण. आज हम आप सभी लोग अपने पितरों की वजह से इस स्थान पर पहुंचे हैं. इसमें सबसे बड़ा योगदान पितरों का है. श्राद्ध पक्ष में पितृ पृथ्वी के सबसे करीब होते हैं. इस समय उनकी सेवा करना मतलब उनका प्रति श्रद्धा कर उनका आर्शीवाद लेना होता है. पितरों के आशीर्वाद के बगैर कोई काम नहीं होता है.

श्री देवोत्थान समिति के महामंत्री विजय शर्मा का कहना है कि उनकी संस्था पाकिस्तान से भी अस्थियां लेकर आई है. काफी युवा उनके साथ जुड़े हुए हैं. विजय शर्मा बताते हैं कि पहले लोग इस काम को करने में डरते थे, लेकिन बाद में उन्हें लोगों का साथ मिलता चला गया है, जिससे उनकी हिम्मत बढ़ती चली गई.

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