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स्कूल में नहीं.. यहां कब्रिस्तान में होती है बच्चों की पढ़ाई, बिहार की शिक्षा व्यवस्था का हाल देख लीजिए - School In Graveyards - SCHOOL IN GRAVEYARDS

Andharthari Harna Panchayat : जरा सोचिए जिस प्रदेश के बच्चे कब्रगाह के पास मिड डे मील खाएं, पढ़ाई के लिए नीम का पेड़ और सड़क पर जाएं, वहां का भविष्य कैसे उज्ज्वल हो सकता है. ऐसा हम क्यों कह रहे हैं पढ़ें यह स्पेशल रिपोर्ट.

कब्रिस्तान में चलता है स्कूल
कब्रिस्तान में चलता है स्कूल (Etv Bharat)

By ETV Bharat Bihar Team

Published : Aug 22, 2024, 9:12 PM IST

मधुबनी के स्कूल का हाल देखिए. (ETV Bharat)

मधुबनी :'पढ़ेगा इंडिया, तभी तो बढ़ेगा इंडिया', 'स्कूल चलें हम', 'बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ', 'शिक्षा का अलख जगाना है, नया भारत बनाना है', ऐसे न जाने कितने स्लोगन बोले और लिखे जाते हैं. सरकार पढ़ाई पर जोर देने की बात कहकर पीठ भी थपथपाती है, पर इसकी जमीनी हकीकत क्या है, आइये इससे हम आपको रू-ब-रू करवाते हैं.

शिक्षा का बुरा हाल :बिहार में एक जिला है मधुबनी. इसे मिथिलांचल का दिल कहा जाता है. मिथिलांचल को ज्ञान की भूमि भी कहा जाता है. जहां विद्यापति से लेकर नागार्जुन जैसे विभूति ने जन्म लिया. हालांकि इस ज्ञान की भूमि पर बच्चों को किस हालात में ज्ञान दिया जा रहा है, जरा उसे भी देख लीजिए.

नीम के पेड़ के नीचे पढ़ते बच्चे. (ETV Bharat)

शिक्षा का बजट कहां जाता है ? : जिला मुख्यालय से 37 किलोमीटर दूर हरना पंचायत का उत्क्रमित मध्य विद्यालय (उर्दू) है. यह स्कूल अंधराठाढ़ी प्रखंड में आता है. यहां की स्थिति देखकर आप सिर पकड़ लेंगे. सोचेंगे, जो नीतीश कुमार कहते हैं कि ''बिहार में सबसे बड़ा बजट शिक्षा पर खर्च होता है'' वह आखिर जाता कहां है?

कब्र के आसपास बैठकर पढ़ाई करते हैं बच्चे :दरअसल, यह विद्यालय बदहाल स्थिति में है. यहां के छात्र-छात्रा कब्रिस्तान में कब्र के पास बैठकर पढ़ते हैं. यहां तक कि मिड डे मील (मध्याह्न भोजन) भी कब्रिस्तान में कब्र के पास बैठ कर बच्चे खाते हैं. यह व्यवस्था एक-दो दिनों से नहीं, बल्कि 18 वर्षों से चली आ रही है.

ईटीवी भारत GFX. (ETV Bharat)

''कब्रिस्तान ही नहीं कुछ बच्चे तो डर कर सड़कों पर भोजन करते हैं, तो कुछ मस्जिद व ईदगाह के मुख्य द्वार पर बैठकर मध्याह्न भोजन करते हैं. हमलोगों को पढ़ाने में काफी परेशानी होती है.''- अंजू यादव, शिक्षिका

कभी 400 पढ़ते थे, आज सिर्फ 295 :जानकारी के अनुसार, स्कूल काफी काफी पुराना है. जवाहर रोजगार योजना के तहत तीन दशक पहले स्कूल का निर्माण हुआ था. इसमें ग्रामीणों का सहसयोग था. वर्ष 2006 में यह विद्यालय प्राइमरी से मिडिल स्कूल बन गया. प्राइमरी के समय में भी दो कमरा था और मिडिल स्कूल के बाद भी दो कमरे में ही स्कूल चल रहा है. कभी यहां 400 से ज्यादा छात्र-छात्राएं नामांकित थे, मगर दिक्कत के कारण नामांकित छात्रों की संख्या घटकर अब 295 हो गई है.

दो कमरों में क्या-क्या है ? : स्कूल में दो कमरे है, एक कमरे में किचन और मिड डे मिल का सामान और स्टोर है. रूम के बचे हुए जगह में क्लास चलता है. दूसरे कमरे में कार्यालय, शिक्षकों के बैठने की जगह के बाद जो जगह बचता है उसमें वर्ग संचालन किया जाता है.

ईटीवी भारत GFX. (ETV Bharat)

यहां कब्रिस्तान में लगती है क्लास : अब आपको बताते हैं, आखिर 8 कक्षा तक के छात्र दो कमरों वाले स्कूल में पढ़ते कैसे हैं? वर्ग एक के छात्र सड़क पर बैठकर पढ़ते हैं. वर्ग 2 और 3 के छात्र कब्रिस्तान में पेड़ के नीचे पढ़ते हैं. वर्ग 4 के छात्र मस्जिद, ईदगाह के गेट पर पढ़ते हैं. वर्ग 5 और 6 एक कमरे के स्टोर रूम के बाद बचे हुए जगह में पढ़ते हैं. जबकि वर्ग 7 और 8 के छात्र दूसरे रूम में छोटे-छोटे बचे हुए जगह में किचन के सामानों के बीच बैठकर पढ़ते हैं.

सैकड़ों शव हैं यहां दफन : अंग्रेजों के जमाने का यह कब्रगाह है. यहां आसपास के आठ गावों के लोगों के शवों को दफन किया जाता है. अबतक इस कब्रगाह में सैकड़ों शवों को दफनाया जा चुका है. इसी की जमीन पर स्कूल भी संचालित हो रहा है.

ईटीवी भारत GFX. (ETV Bharat)

क्यों नहीं हुई कब्रिस्तान की घेराबंदी ? :बता दें कि साल 2019 में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने विधानसभा में कहा था कि कब्रिस्तानों की चारदीवारी के लिए सरकार ने सर्वेक्षण कराया है, जिसके आधार पर 8064 कब्रिस्तानों की चारदीवारी कराई जा रही है. कितने कब्रिस्तानों की चारदीवारी कराई गई, इसका भी मुख्यमंत्री ने आंकड़ा दिया था. लेकिन बिहार के मधुबनी की तस्वीर देख लीजिए, यहां कब्रिस्तान के अंदर बच्चों की क्लास चल रही है.

स्कूल की जमीन सड़क से 4 फीट नीचे : स्कूल के प्रभारी प्रधानाध्यापक जगन्नाथ पासवान का कहना है कि, स्कूल में सिर्फ 2 कमरे हैं. यहां 1 से 8 कक्षा तक पढ़ाई होती है. वर्तमान में 295 छात्र-छात्राओं का नामांकन है. यहां बच्चों को बैठने में बहुत दिक्कत होती है. स्कूल की जमीन सड़क से 4 फीट नीचे है. बारिश के दिनों में क्लास में पानी चला जाता है.

''बरामदे में मिड डे मील बनाना पड़ता है. बच्चों को पढ़ाने के लिए कब्रिस्तान में नीम के पेड़ के नीचे बैठाना पड़ता है. कब्रिस्तान से सटे रोड पर बच्चे मिड डे मील खाते हैं. अगर बारिश हो गई तो बच्चों को छुट्टी देनी पड़ती है. यहां शौचालय भी नहीं है. तीन महिला शिक्षिका हैं. उन्हें काफी परेशानी होती है. पड़ोस के यहां बाथरूम जाना पड़ता है.''- जगन्नाथ पासवान, प्रभारी प्रधानाध्यापक, उत्क्रमित मध्य विद्यालय

नीम के पेड़ के नीचे पढ़ते बच्चे. (ETV Bharat)

स्कूल के शिक्षक भी होते हैं परेशान : ऐसा नहीं है कि सिर्फ बच्चे परेशान हैं. विद्यालय में नौ शिक्षक-शिक्षिकाएं पदस्थापित हैं. इन्हें भी बैठने में काफी दिक्कतें होती हैं. शिक्षक भी खुले में सड़कों पर और कब्रिस्तान में नीम के पेड़ के नीचे कुर्सी लगाकर बैठते हैं और वही बच्चों को पढ़ाते हैं.

''मस्जिद की जमीन में स्कूल बना हुआ है. दूसरा कोई जमीन अब तक उपलब्ध नहीं है. कुछ दिनों में कब्रिस्तान की घेराबंदी हो जाएगी तो फिर बच्चों को सड़क के अलावा कोई दूसरा जगह नहीं रह जाएगा. 2014-15 में भवन निर्माण के लिए 7 लाख रुपया भी आया था, मगर जमीन की कमी के कारण पैसा वापस हो गया.''- मोहम्मद इसराइल, स्कूल के शिक्षक

दरवाजे पर स्कूल का संचालन : यहां यह बताना भी जरूरी है कि, अंधराठाढ़ी प्रखंड में अल्पसंख्यक समुदाय के लिए मात्र दो मिडिल स्कूल हैं. एक जमैला में और दूसरा हरना गांव में. इसी गांव में एक दूसरा विद्यालय भी है, नया प्राथमिक विद्यालय खोब्रा टोल. जहां जमीन है मगर भवन नहीं बना है. 150 से ज्यादा छात्र पढ़ते हैं, 6 शिक्षक हैं. वर्ष 2006 से ही किसी के निजी दालान पर यह स्कूल अभी तक संचालन हो रहा है.

स्थिति ठीक होने का रहेगा इंतजार :कुल मिलाकर स्थिति को समझें और सहज ही अंदाजा लगाइए, इस हालात में कैसे बढ़ेगा बिहार और कैसे पढ़ेगा बिहा? अब देखना है कब इस विद्यालय की स्थिति सुधर पाती है?

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