मधुबनी :'पढ़ेगा इंडिया, तभी तो बढ़ेगा इंडिया', 'स्कूल चलें हम', 'बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ', 'शिक्षा का अलख जगाना है, नया भारत बनाना है', ऐसे न जाने कितने स्लोगन बोले और लिखे जाते हैं. सरकार पढ़ाई पर जोर देने की बात कहकर पीठ भी थपथपाती है, पर इसकी जमीनी हकीकत क्या है, आइये इससे हम आपको रू-ब-रू करवाते हैं.
शिक्षा का बुरा हाल :बिहार में एक जिला है मधुबनी. इसे मिथिलांचल का दिल कहा जाता है. मिथिलांचल को ज्ञान की भूमि भी कहा जाता है. जहां विद्यापति से लेकर नागार्जुन जैसे विभूति ने जन्म लिया. हालांकि इस ज्ञान की भूमि पर बच्चों को किस हालात में ज्ञान दिया जा रहा है, जरा उसे भी देख लीजिए.
शिक्षा का बजट कहां जाता है ? : जिला मुख्यालय से 37 किलोमीटर दूर हरना पंचायत का उत्क्रमित मध्य विद्यालय (उर्दू) है. यह स्कूल अंधराठाढ़ी प्रखंड में आता है. यहां की स्थिति देखकर आप सिर पकड़ लेंगे. सोचेंगे, जो नीतीश कुमार कहते हैं कि ''बिहार में सबसे बड़ा बजट शिक्षा पर खर्च होता है'' वह आखिर जाता कहां है?
कब्र के आसपास बैठकर पढ़ाई करते हैं बच्चे :दरअसल, यह विद्यालय बदहाल स्थिति में है. यहां के छात्र-छात्रा कब्रिस्तान में कब्र के पास बैठकर पढ़ते हैं. यहां तक कि मिड डे मील (मध्याह्न भोजन) भी कब्रिस्तान में कब्र के पास बैठ कर बच्चे खाते हैं. यह व्यवस्था एक-दो दिनों से नहीं, बल्कि 18 वर्षों से चली आ रही है.
''कब्रिस्तान ही नहीं कुछ बच्चे तो डर कर सड़कों पर भोजन करते हैं, तो कुछ मस्जिद व ईदगाह के मुख्य द्वार पर बैठकर मध्याह्न भोजन करते हैं. हमलोगों को पढ़ाने में काफी परेशानी होती है.''- अंजू यादव, शिक्षिका
कभी 400 पढ़ते थे, आज सिर्फ 295 :जानकारी के अनुसार, स्कूल काफी काफी पुराना है. जवाहर रोजगार योजना के तहत तीन दशक पहले स्कूल का निर्माण हुआ था. इसमें ग्रामीणों का सहसयोग था. वर्ष 2006 में यह विद्यालय प्राइमरी से मिडिल स्कूल बन गया. प्राइमरी के समय में भी दो कमरा था और मिडिल स्कूल के बाद भी दो कमरे में ही स्कूल चल रहा है. कभी यहां 400 से ज्यादा छात्र-छात्राएं नामांकित थे, मगर दिक्कत के कारण नामांकित छात्रों की संख्या घटकर अब 295 हो गई है.
दो कमरों में क्या-क्या है ? : स्कूल में दो कमरे है, एक कमरे में किचन और मिड डे मिल का सामान और स्टोर है. रूम के बचे हुए जगह में क्लास चलता है. दूसरे कमरे में कार्यालय, शिक्षकों के बैठने की जगह के बाद जो जगह बचता है उसमें वर्ग संचालन किया जाता है.
यहां कब्रिस्तान में लगती है क्लास : अब आपको बताते हैं, आखिर 8 कक्षा तक के छात्र दो कमरों वाले स्कूल में पढ़ते कैसे हैं? वर्ग एक के छात्र सड़क पर बैठकर पढ़ते हैं. वर्ग 2 और 3 के छात्र कब्रिस्तान में पेड़ के नीचे पढ़ते हैं. वर्ग 4 के छात्र मस्जिद, ईदगाह के गेट पर पढ़ते हैं. वर्ग 5 और 6 एक कमरे के स्टोर रूम के बाद बचे हुए जगह में पढ़ते हैं. जबकि वर्ग 7 और 8 के छात्र दूसरे रूम में छोटे-छोटे बचे हुए जगह में किचन के सामानों के बीच बैठकर पढ़ते हैं.
सैकड़ों शव हैं यहां दफन : अंग्रेजों के जमाने का यह कब्रगाह है. यहां आसपास के आठ गावों के लोगों के शवों को दफन किया जाता है. अबतक इस कब्रगाह में सैकड़ों शवों को दफनाया जा चुका है. इसी की जमीन पर स्कूल भी संचालित हो रहा है.
क्यों नहीं हुई कब्रिस्तान की घेराबंदी ? :बता दें कि साल 2019 में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने विधानसभा में कहा था कि कब्रिस्तानों की चारदीवारी के लिए सरकार ने सर्वेक्षण कराया है, जिसके आधार पर 8064 कब्रिस्तानों की चारदीवारी कराई जा रही है. कितने कब्रिस्तानों की चारदीवारी कराई गई, इसका भी मुख्यमंत्री ने आंकड़ा दिया था. लेकिन बिहार के मधुबनी की तस्वीर देख लीजिए, यहां कब्रिस्तान के अंदर बच्चों की क्लास चल रही है.