सागर। टेलीविजन और सोशल मीडिया पर कई कथा वाचकों को देखा होगा. उनको सुनने हजारों की भीड़ पहुंचती है और कथा को पसंद करने वाले लोग लाखों की संख्या में हैं. इनमें पंडित धीरेंद्र शास्त्री, जया किशोरी जैसे मशहूर कथावाचकों के अलावा और भी बड़े नाम शामिल हैं, लेकिन इन कथावाचकों ने आज तक वह काम नहीं किया है. जो सागर की 23 साल की राजराजेश्वरी देवी ने किया है. महज 6 साल की उम्र से श्रीमद् भागवत कथा और राम कथा का वाचन करती आ रही राज्यराजेश्वरी देवी ने श्रीमद् भागवत पुराण कथा के सभी 18 हजार श्लोकों को संगीतबद्ध किया है. इस काम में उन्हें ढाई साल से ज्यादा समय लगा और आगामी 30 जून को संगीतमय श्रीमद् भागवत पुराण का विमोचन होने जा रहा है. खास बात ये है कि इंटरनेट के माध्यम से जुटाई जानकारी में ऐसा काम किसी दूसरे साधु संत और कथा वाचक ने अभी तक नहीं किया. इस आधार पर राजराजेश्वरी देवी ने गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में भी दावा पेश किया है.
बचपन से मिले सनातनी संस्कार
राजराजेश्वरी देवी ने अन्य कथा वाचकों की तरह भले ही प्रसिद्ध नहीं हैं, लेकिन उन्होंने जो काम कर दिखाया. वह बड़े-बड़े कथावाचकों ने अभी तक नहीं किया है. बचपन से ही श्रीमद् भागवत और राम कथा का वाचन करती आ रही राजराजेश्वरी देवी बताती हैं कि जिस तरह विद्या अध्ययन के लिए बच्चों को पाठशाला भेजा जाता है. वहीं संस्कारों की पाठशाला परिवार होता है. मुझे बचपन से ही धर्म और सनातन संस्कृति से परिपूर्ण परिवार मिला. लगभग 6 साल की पहली बार व्यासपीठ पर बैठकर श्रीमद् भागवत कथा का वाचन किया.
अब तक राजराजेश्वरी देवी श्रीमद् भागवत कथा और रामकथा का करीब 100 बार वाचन कर चुकी हैं. उनका कहना है कि मेरे पिता धर्म श्री संस्कृत महाविद्यालय के प्राचार्य रहे हैं. बचपन से ही संतों की प्रेरणा और धर्ममय वातावरण मुझे घर पर ही मिला. इसी का परिणाम है कि मैंने 6 साल की उम्र से ही कथा का वाचन शुरू कर दिया और लगातार 17 साल से जारी है.
देवभाषा को जन-जन तक पहुंचाने का प्रयास
राजराजेश्वरी देवी कहती हैं कि हर कार्य के पीछे भगवत प्रेरणा ही रहती है. इस काम को करने की ना कोई योजना थी और ना ही कभी दिमाग में आया था. स्वतः अंतः प्रेरणा से मेरे मन में लगा कि ये काम करना चाहिए, क्योंकि संस्कृत को देव भाषा कहा गया है, लेकिन कहीं ना कहीं युवा पीढ़ी हमारी सनातन संस्कृति के पीछे हट रही है. यदि हम अन्य समुदाय को देखें, तो युवा पीढ़ी अपनी भाषा और संस्कृति के प्रति सचेत है. बचपन से ही अपनी भाषा को सीखना शुरू कर देते हैं. लेकिन सनातन धर्म और संस्कृति से हमारे युवा पीढ़ी दूर होती जा रही है. इसका मुख्य कारण यही है कि देव भाषा को जन-जन तक पहुंचाना है और प्रचार करना है. इसी भावनाओं को लेकर मैंने श्रीमद् भागवत पुराण कथा के 18 हजार श्लोकों को संगीतबद्ध किया है.
ढाई साल के कठिन परिश्रम का फल
राजराजेश्वरी देवी का कहना है कि ये काफी कठिन कार्य था. संस्कृत के 18 हजार श्लोकों को लयबद्ध और संगीतबद्ध करना मुश्किल था. कोई उच्चारण पर सवाल खड़े ना कर दे और संस्कृत में श्लोक उच्चारण में कोई गलती ना हो जाए. इन सब बातों का भी ध्यान रखना था. राजराजेश्वरी देवी बताती हैं कि इस काम को करने में मुझे दो से ढाई साल लगे. ओरिजिनल रिकॉर्डिंग तो एक साल में ही पूरी हो गयी, लेकिन जहां पर संशोधन और समीक्षा जरूरी लगी. तकनीकी त्रुटियां के कारण जहां उच्चारण में दोष आया, उसे हमने फिर से बारीकी से सुना और फिर स्टूडियो जाकर सुधार किया. इस संपूर्ण प्रक्रिया में हमें दो से ढाई साल लग गए.