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वकील बन हाईकोर्ट पहुंचा 12वीं का छात्र, खुद लड़ी EWS कोटे की लड़ाई, जज बोले-अच्छे वकील बनोगे - MP HIGH COURT NEWS

जबलपुर के 12वीं के छात्र ने हाइकोर्ट में अपने केस की खुद पैरवी की. उसे देख जज ने कहा, ''तुम्हें डॉक्टर नहीं वकील बनना चाहिए.'' पढ़िए जबलपुर से शिव कुमार चौबे की रिपोर्ट.

ATHARVA FOUGHT FOR EWS QUOTA
12वीं पास छात्र ने हाईकोर्ट में खुद लड़ा केस (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Dec 27, 2024, 5:44 PM IST

Updated : Dec 27, 2024, 6:24 PM IST

जबलपुर: मध्य प्रदेश के जबलपुर में रहने वाले 19 वर्षीय अथर्व चतुर्वेदी ने अपने दृढ़ निश्चय, तर्कशक्ति और आत्मविश्वास से एक ऐसा ऐतिहासिक मुकाम हासिल किया, जिसने समाज को सोचने पर मजबूर कर दिया. आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS) के लिए आरक्षण की लड़ाई में उन्होंने न केवल प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों में यह व्यवस्था लागू करवाई, बल्कि न्याय और समानता के प्रति अपने अद्वितीय योगदान से समाज को प्रेरित किया. उनकी इस सफलता ने यह दिखा दिया कि उम्र और अनुभव की कमी को दृढ़ता और साहस के बल पर पार किया जा सकता है.

वकील के बेटे हैं अथर्व चतुर्वेदी
अथर्व चतुर्वेदी जो एक वकील के बेटे हैं, उन्होंने NEET परीक्षा 2024 में 720 में से 530 अंक हासिल किए थे. उन्हें पूरा भरोसा था कि EWS कोटे के तहत उन्हें प्राइवेट मेडिकल कॉलेज में दाखिला मिल जाएगा. हालांकि, काउंसलिंग के आखिरी दौर तक सीट न मिलने पर उन्होंने पाया कि प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों में EWS आरक्षण की व्यवस्था लागू ही नहीं थी. इसके विपरीत, अन्य श्रेणियों जैसे एससी, एसटी और विकलांग वर्ग के लिए आरक्षित सीटें उपलब्ध थीं.

अथर्व ने महसूस किया कि यह न केवल उनके लिए, बल्कि अन्य EWS उम्मीदवारों के लिए भी एक बड़ा अन्याय है. उन्होंने अपने पिता, मनोज चतुर्वेदी से सलाह ली और इस अन्याय के खिलाफ मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में याचिका दायर करने का फैसला किया.

वकील बन हाईकोर्ट पहुंचा 12वीं का छात्र (ETV Bharat)

पिता का मार्गदर्शन और खुद की पहल
शुरुआत में अथर्व के पिता ने उनकी तरफ से पैरवी की, लेकिन पहली सुनवाई में कुछ तकनीकी खामियां रह गईं. उन्होंने गलती से NEET परीक्षा को चुनौती दे दी, जिस पर सरकारी वकील ने आपत्ति जताई. इस घटना के बाद अथर्व ने खुद केस लड़ने का निर्णय लिया. हालांकि, यह निर्णय लेना उनके लिए आसान नहीं था. अथर्व ने न कभी स्कूल स्तर पर वाद-विवाद प्रतियोगिताओं में भाग लिया था और न ही कानून का कोई औपचारिक ज्ञान था. लेकिन उन्होंने इसे अपनी कमजोरी नहीं बनने दिया. अथर्व ने संविधान, कानून की धाराओं, न्यायिक फैसलों और गजट नोटिफिकेशन का गहन अध्ययन किया. उन्होंने कोर्ट की प्रक्रियाओं को समझा और हर पहलू पर पूरी तैयारी की.

न्यायालय में अथर्व का साहसिक प्रदर्शन
दूसरी सुनवाई के दौरान अथर्व कोर्ट रूम में पिछली बेंच पर बैठे थे. उनके पिता ने कोर्ट को बताया कि, ''याचिकाकर्ता खुद पैरवी करना चाहता है. इस पर कुछ जूनियर वकीलों ने मजाक किया कि "अब बच्चे भी कोर्ट में दलील देंगे." लेकिन जब अथर्व ने बहस शुरू की, तो उनकी स्पष्ट और तार्किक दलीलों ने अदालत को प्रभावित किया.

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस सुरेश कुमार कैत और जस्टिस विवेक कुमार जैन ने अथर्व से उनकी उम्र और पृष्ठभूमि के बारे में पूछा. जब उन्होंने बताया कि वह NEET की तैयारी कर रहे हैं, तो जजों ने उनकी कानूनी समझ की सराहना करते हुए कहा, "तुम्हें डॉक्टर नहीं, वकील बनना चाहिए. तुम्हारे लिए ही यह कोर्ट रूम बना है."

37 दिनों का संघर्ष और ऐतिहासिक फैसला
यह केस कुल 37 दिनों तक चला. अथर्व ने अपनी दलीलों में यह तर्क दिया कि प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों में EWS कोटा लागू न होने के कारण उन्हें और अन्य आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के छात्रों को आरक्षण का लाभ नहीं मिल रहा है. उनकी दलीलें संविधान में समानता के अधिकार और सामाजिक न्याय की अवधारणा पर आधारित थीं.

अदालत ने अथर्व के तर्कों को ध्यानपूर्वक सुना और 17 दिसंबर 2024 को ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए राज्य सरकार को निर्देश दिया कि अगले शैक्षणिक सत्र से प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों में EWS कोटा सुनिश्चित किया जाए. यह निर्णय न केवल अथर्व की कानूनी समझ का प्रमाण है, बल्कि सामाजिक न्याय की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम भी है.

अथर्व की प्रतिक्रिया और आगे की योजना
हालांकि, इस फैसले से अथर्व पूरी तरह संतुष्ट नहीं हैं. उनका कहना है कि, "काउंसलिंग में सीट वितरण की त्रुटियों के खिलाफ उनकी मांग को खारिज कर दिया गया. अदालत ने यह माना कि उन्हें 2 जुलाई 2024 को प्रकाशित गजट नोटिफिकेशन की जानकारी होनी चाहिए थी. अथर्व अब इस मामले को सुप्रीम कोर्ट ले जाने की योजना बना रहे हैं. उनका मानना है कि न्याय केवल एक वर्ग के लिए नहीं, बल्कि सभी के लिए होना चाहिए.''

परिवार और समाज की प्रतिक्रिया
अथर्व के पिता, मनोज चतुर्वेदी ने गर्व के साथ कहा कि, "कोर्ट ने यह फैसला उनकी उम्र देखकर नहीं, बल्कि उनके तर्कों और कानूनी समझ के आधार पर दिया.'' उन्होंने बताया कि, ''3 दिसंबर को अंतिम सुनवाई के दौरान जब वे 10 मिनट देर से पहुंचे, तो अथर्व ने अकेले ही केस को संभाल लिया.''

जबलपुर: मध्य प्रदेश के जबलपुर में रहने वाले 19 वर्षीय अथर्व चतुर्वेदी ने अपने दृढ़ निश्चय, तर्कशक्ति और आत्मविश्वास से एक ऐसा ऐतिहासिक मुकाम हासिल किया, जिसने समाज को सोचने पर मजबूर कर दिया. आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS) के लिए आरक्षण की लड़ाई में उन्होंने न केवल प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों में यह व्यवस्था लागू करवाई, बल्कि न्याय और समानता के प्रति अपने अद्वितीय योगदान से समाज को प्रेरित किया. उनकी इस सफलता ने यह दिखा दिया कि उम्र और अनुभव की कमी को दृढ़ता और साहस के बल पर पार किया जा सकता है.

वकील के बेटे हैं अथर्व चतुर्वेदी
अथर्व चतुर्वेदी जो एक वकील के बेटे हैं, उन्होंने NEET परीक्षा 2024 में 720 में से 530 अंक हासिल किए थे. उन्हें पूरा भरोसा था कि EWS कोटे के तहत उन्हें प्राइवेट मेडिकल कॉलेज में दाखिला मिल जाएगा. हालांकि, काउंसलिंग के आखिरी दौर तक सीट न मिलने पर उन्होंने पाया कि प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों में EWS आरक्षण की व्यवस्था लागू ही नहीं थी. इसके विपरीत, अन्य श्रेणियों जैसे एससी, एसटी और विकलांग वर्ग के लिए आरक्षित सीटें उपलब्ध थीं.

अथर्व ने महसूस किया कि यह न केवल उनके लिए, बल्कि अन्य EWS उम्मीदवारों के लिए भी एक बड़ा अन्याय है. उन्होंने अपने पिता, मनोज चतुर्वेदी से सलाह ली और इस अन्याय के खिलाफ मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में याचिका दायर करने का फैसला किया.

वकील बन हाईकोर्ट पहुंचा 12वीं का छात्र (ETV Bharat)

पिता का मार्गदर्शन और खुद की पहल
शुरुआत में अथर्व के पिता ने उनकी तरफ से पैरवी की, लेकिन पहली सुनवाई में कुछ तकनीकी खामियां रह गईं. उन्होंने गलती से NEET परीक्षा को चुनौती दे दी, जिस पर सरकारी वकील ने आपत्ति जताई. इस घटना के बाद अथर्व ने खुद केस लड़ने का निर्णय लिया. हालांकि, यह निर्णय लेना उनके लिए आसान नहीं था. अथर्व ने न कभी स्कूल स्तर पर वाद-विवाद प्रतियोगिताओं में भाग लिया था और न ही कानून का कोई औपचारिक ज्ञान था. लेकिन उन्होंने इसे अपनी कमजोरी नहीं बनने दिया. अथर्व ने संविधान, कानून की धाराओं, न्यायिक फैसलों और गजट नोटिफिकेशन का गहन अध्ययन किया. उन्होंने कोर्ट की प्रक्रियाओं को समझा और हर पहलू पर पूरी तैयारी की.

न्यायालय में अथर्व का साहसिक प्रदर्शन
दूसरी सुनवाई के दौरान अथर्व कोर्ट रूम में पिछली बेंच पर बैठे थे. उनके पिता ने कोर्ट को बताया कि, ''याचिकाकर्ता खुद पैरवी करना चाहता है. इस पर कुछ जूनियर वकीलों ने मजाक किया कि "अब बच्चे भी कोर्ट में दलील देंगे." लेकिन जब अथर्व ने बहस शुरू की, तो उनकी स्पष्ट और तार्किक दलीलों ने अदालत को प्रभावित किया.

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस सुरेश कुमार कैत और जस्टिस विवेक कुमार जैन ने अथर्व से उनकी उम्र और पृष्ठभूमि के बारे में पूछा. जब उन्होंने बताया कि वह NEET की तैयारी कर रहे हैं, तो जजों ने उनकी कानूनी समझ की सराहना करते हुए कहा, "तुम्हें डॉक्टर नहीं, वकील बनना चाहिए. तुम्हारे लिए ही यह कोर्ट रूम बना है."

37 दिनों का संघर्ष और ऐतिहासिक फैसला
यह केस कुल 37 दिनों तक चला. अथर्व ने अपनी दलीलों में यह तर्क दिया कि प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों में EWS कोटा लागू न होने के कारण उन्हें और अन्य आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के छात्रों को आरक्षण का लाभ नहीं मिल रहा है. उनकी दलीलें संविधान में समानता के अधिकार और सामाजिक न्याय की अवधारणा पर आधारित थीं.

अदालत ने अथर्व के तर्कों को ध्यानपूर्वक सुना और 17 दिसंबर 2024 को ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए राज्य सरकार को निर्देश दिया कि अगले शैक्षणिक सत्र से प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों में EWS कोटा सुनिश्चित किया जाए. यह निर्णय न केवल अथर्व की कानूनी समझ का प्रमाण है, बल्कि सामाजिक न्याय की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम भी है.

अथर्व की प्रतिक्रिया और आगे की योजना
हालांकि, इस फैसले से अथर्व पूरी तरह संतुष्ट नहीं हैं. उनका कहना है कि, "काउंसलिंग में सीट वितरण की त्रुटियों के खिलाफ उनकी मांग को खारिज कर दिया गया. अदालत ने यह माना कि उन्हें 2 जुलाई 2024 को प्रकाशित गजट नोटिफिकेशन की जानकारी होनी चाहिए थी. अथर्व अब इस मामले को सुप्रीम कोर्ट ले जाने की योजना बना रहे हैं. उनका मानना है कि न्याय केवल एक वर्ग के लिए नहीं, बल्कि सभी के लिए होना चाहिए.''

परिवार और समाज की प्रतिक्रिया
अथर्व के पिता, मनोज चतुर्वेदी ने गर्व के साथ कहा कि, "कोर्ट ने यह फैसला उनकी उम्र देखकर नहीं, बल्कि उनके तर्कों और कानूनी समझ के आधार पर दिया.'' उन्होंने बताया कि, ''3 दिसंबर को अंतिम सुनवाई के दौरान जब वे 10 मिनट देर से पहुंचे, तो अथर्व ने अकेले ही केस को संभाल लिया.''

Last Updated : Dec 27, 2024, 6:24 PM IST
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