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भारत में मेडिकल एजुकेशन सिस्टम और बुनियादी ढांचे की प्रगति - Medical Education System - MEDICAL EDUCATION SYSTEM

Medical Education System Of India: हाल के दिनों में सबसे महत्वपूर्ण विधायी सुधारों में से एक 2019 में नेशनल मेडिकल कमीशन (NMC) अधिनियम था. यह अधिनियम क्वालिटी और सस्ती मेडिकल एजुकेशन तक पहुंच में सुधार करता, जिससे देश के सभी हिस्सों में पर्याप्त और हाई क्वालिटी मेडिकल प्रोफेसनल्स की उपलब्धता सुनिश्चित होती.

भारत में मेडिकल एजुकेशन सिस्टम और बुनियादी ढांचे की प्रगति
भारत में मेडिकल एजुकेशनसिस्टम और बुनियादी ढांचे की प्रगति (IANS)

By ETV Bharat Hindi Team

Published : Aug 14, 2024, 7:59 PM IST

नई दिल्ली:भारत में मेडिकल ऐजूकेशन सिस्टम और इसके बुनियादी ढांचे में पिछले कुछ दशकों में उल्लेखनीय बदलाव आया है. 2023-24 में देश में 702 मेडिकल कॉलेज हैं, जो 2013-14 में 387 से 81 प्रतिशत अधिक है. इसी तरह, ग्रेजुएशन कोर्स (MBBS) के लिए सीटों की संख्या 2013-14 में 51348 से लगभग 110 फीसदी बढ़कर 2023-24 में 1,08,990 हो गई, जबकि पोस्ट ग्रेजुएशन सीटों की संख्या 2013-14 से 2023-24 तक लगभग 118 फीसदी बढ़कर 31185 से 68073 हो गई.

भारत में आधुनिक चिकित्सा शिक्षा के विकास में महत्वपूर्ण परिवर्तन और विधायी परिवर्तन हुए हैं. यह देश की अपनी आबादी को हाई क्वालिटी हेल्थ सर्विस प्रदान करने और ग्लोबल स्टैंडर्ड के अनुरूप होने की खोज को दर्शाता है. अंग्रेजों ने भारतीय उपमहाद्वीप में वेस्टर्न स्टाइल की मेडिसन शुरू की, जिसके कारण कलकत्ता मेडिकल कॉलेज (1835) और मद्रास मेडिकल कॉलेज (1835) जैसे संस्थानों की स्थापना हुई. चिकित्सा पद्धति को रेगूलेट करने के लिए, लाइसेंसिएट ऑफ मेडिकल प्रैक्टिस (LMP) की शुरुआत की गई, जिसके बाद 1958 में मेडिकल रजिस्ट्रेशन एक्ट बनाया गया.

इंडियन मेडिकल काउंसिल एक्ट
1916 में इंडियन मेडिकल काउंसिल एक्ट लागू किया गया, जिसके बाद 1933 में मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (MCI) की स्थापना हुई. MCI को मेडिकल ऐजूकेशन स्टैंडर्ड की देखरेख और विनियमन, कोर्स को परिभाषित करने और देश भर में चिकित्सा पद्धति की गुणवत्ता सुनिश्चित करने का काम सौंपा गया था. यह भारत में मेडिकल ऐजूकेशन को स्टैंडर्डाइजिंग और औपचारिक बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम था.

स्वतंत्रता के बाद विस्तार
इस अवधि में पूरे भारत में कई मेडिकल कॉलेज और विश्वविद्यालय स्थापित किए गए, जिसका उद्देश्य स्वास्थ्य सेवा पेशेवरों का एक बड़ा समूह तैयार करना था. इस दौरान 1956 में एम्स अधिनियम के तहत ऑल इंडिया इंस्टिटियूट ऑफ मेडिकल साइंसेज की स्थापना की गई. इस अवधि के दौरान MCI ने मेडिकल प्रोफेशन के लिए शैक्षिक और नैतिक स्टैंडर्ड को निर्धारित करते हुए इन चिकित्सा संस्थानों को विनियमित करने और मान्यता देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.

नेशनल मेडिकल कमीशन एक्ट 2019
हाल के दिनों में सबसे महत्वपूर्ण विधायी सुधारों में से एक 2019 में नेशनल मेडिकल कमीशन एक्ट अधिनियम पेश किया गया. इस अधिनियम ने एमसीआई की जगह ली, जिससे चिकित्सा शिक्षा और प्रैक्टिस रेगूलेशन में एक नए युग की शुरुआत हुई. एनएमसी अधिनियम के प्रमुख उद्देश्य एक ऐसी चिकित्सा शिक्षा प्रणाली प्रदान करना है, जो गुणवत्तापूर्ण और सस्ती चिकित्सा शिक्षा तक पहुंच में सुधार करे, देश के सभी हिस्सों में पर्याप्त और उच्च गुणवत्ता वाले चिकित्सा पेशेवरों की उपलब्धता सुनिश्चित करे. साथ ही समान और यूनिवर्सल हेल्थकेयर को बढ़ावा दे, जो सामुदायिक स्वास्थ्य दृष्टिकोण को प्रोत्साहित करे और चिकित्सा पेशेवरों की सेवाओं को सभी नागरिकों के लिए सुलभ बनाए.

भारत में वर्तमान चिकित्सा शिक्षा प्रणाली और चुनौतियां
भारत दुनिया की सबसे बड़ी चिकित्सा शिक्षा प्रणालियों में से एक है. स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के अनुसार, देश में 702 मेडिकल कॉलेज हैं. हालांकि, भारत में चिकित्सा शिक्षा की गुणवत्ता में व्यापक रूप से भिन्नता है, और इस प्रणाली को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जिनमें से सबसे प्रमुख है मेडिकल कॉलेजों का असमान वितरण.

भारत में मेडिकल कॉलेज शहरी क्षेत्रों में केंद्रित हैं, जो ग्रामीण क्षेत्रों में एक शून्यता पैदा करता है. इस प्रकार, ग्रामीण क्षेत्रों में मेडिकल कॉलेजों का निर्माण ग्रामीण क्षेत्रों में चिकित्सा शिक्षा तक पहुंच की कमी की समस्या को हल कर सकता है. एक अन्य महत्वपूर्ण चुनौती भारत में चिकित्सा अनुसंधान के लिए पर्याप्त धन की अनुपलब्धता है और मेडिकल कॉलेजों में एक रिसर्च इको सिस्टम बनाने की तत्काल आवश्यकता है. इसके लिए चिकित्सा विज्ञान में लेटेस्ट प्रोग्रेस के साथ कोर्स को निरंतर अपग्रेड करने की आवश्यकता है.

मेडिकल इंफ्रास्ट्रक्चर पर संसदीय समिति का दृष्टिकोण
राष्ट्रीय परीक्षा बोर्ड (NBE) के अनुसार NEET PG 2023 के लिए कुल 2,08,898 उम्मीदवार उपस्थित हुए, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा प्रस्तुत आंकड़ों के अनुसार देश में 68073 पोस्ट ग्रेजुएट सीट्स हैं. स्थिति को ध्यान में रखते हुए स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण पर संसदीय समिति ने कहा कि हमारे देश में यूजी और पीजी दोनों में चिकित्सा सीटों के संबंध में वर्तमान स्थिति एक गंभीर मुद्दा है, जिस पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है.

राज्यसभा सांसद भुवनेसर कलिता की अध्यक्षता वाली समिति ने कहा कि यूजी में लगभग 2 मिलियन इच्छुक मेडिकल छात्रों की वार्षिक आमद और केवल 1/20 गुना उपलब्ध सीटों के साथ, मांग सीटों की उपलब्धता से कहीं अधिक है. इसी तरह पीजी स्तर पर उपलब्ध सीटों की संख्या मांग से कहीं कम है," समिति चिकित्सा शिक्षा की गुणवत्ता को अपने उच्चतम मानक पर बनाए रखते हुए इस चुनौती को संबोधित करने की तात्कालिकता को स्वीकार करती है. इस मुद्दे को प्रभावी ढंग से संबोधित करने के लिए, कई उपाय किए जा सकते हैं.

समिति ने कहा, "सबसे पहले ग्रेजुएशन और पोस्ट ग्रेजुएशन दोनों कोर्स में मेडिकल सीटों में उल्लेखनीय वृद्धि करने की आवश्यकता है. सरकार की मौजूदा योजना, जो जिला या रेफरल अस्पतालों से जुड़े नए मेडिकल कॉलेजों की स्थापना पर केंद्रित है, इस लक्ष्य को प्राप्त करने में सहायक हो सकती है."

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