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एमपी को मिली फर्स्ट बधिर सिविल इंजीनियर आयुषी, NTPC, कोल इंडिया ने बिछाया रेड कार्पेट

जन्मजात मूक-बधिर आयुषी शर्मा ने पहली कोशिश में झंड़े गाड़ दिए. उनकी प्रतिभा देख कोल इंडिया लिमिटेड और एनटीपीसी ने दिया जॉब ऑफर.

DISABLED ENGINEER AYUSHI SHARMA
सिविल इंजीनियर आयुषी शर्मा (ETV Bharat)

By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : 4 hours ago

इंदौर: ढलान के सहारे तो कोई भी मंजिल पर पहुंच जाता है, लेकिन मंजिलें खुद उन तक पहुंच जाती हैं, जो चढ़ाई चढ़ने का हौसला रखते हैं. ये लाइनें मध्य प्रदेश की पहली बधिर सिविल इंजीनियर आयुषी शर्मा पर बिल्कुल फिट बैठती हैं. आयुषी शर्मा अपने हौसले की बदौलत बधिरता को मात देकर उन हजारों डिसेबल बच्चों और युवाओं के लिए आइकॉन है, जो डिसेबिलिटी के दंश से उबरकर जिंदगी में कोई ना कोई मुकाम हासिल करना चाहते हैं.

एक साधारण परिवार में आयुषी का हुआ जन्म

जन्मजात विकलांगता के बावजूद अपनी योग्यता को हर मोर्चे पर साबित करने वाली आयुषी शर्मा ने ईटीवी भारत के साथ एक खास चिट्ठी साझा की है, जिसमें उसने अपने पूरे जीवन का मर्म और सफलता को अपने शब्दों में बयां किया है. एक साधारण परिवार में जन्मी आयुषी के पिता स्वास्थ्य कार्यकर्ता और माता सहायक शिक्षक हैं. आयुषी जन्म से बहरापन होने के कारण बोल भी नहीं पाती थी. यहां तक कि सामान्य श्रवण यंत्र की सहायता से भी उसे सुनाई नहीं देता था.

जानकारी देती हुईं सिविल इंजीनियर आयुषी शर्मा और उनके पिता मुकेश शर्मा (ETV Bharat)

11 साल की उम्र में हुई थी आयुषी की सर्जरी

बेटी के डिसेबल होने के कारण माता-पिता उसके भविष्य और करियर को लेकर खासा परेशान थे. बधिर बच्चों को अधिकतम 3 से 4 साल की उम्र के बाद कोकलियर इंप्लांट नहीं हो सकते. इसके बावजूद उन्होंने अपनी बेटी के लिए हिम्मत नहीं हारी. उन्होने 11 साल की उम्र में साल 2008 में केईएन हॉस्पिटल मुंबई में आयुषी शर्मा की कोकलियर इंप्लांट सर्जरी कराई. भाग्य से यह सर्जरी सफल हो गई. इसके बाद इंदौर के नोबेल हियरिंग एंड स्पीच थेरेपी सेंटर आयुषी को स्पीच थेरेपी देना शुरू की गई.

बच्ची के लिए मां ने किया स्पीच थेरेपी का कोर्स

स्पीच थेरेपी के कारण धीरे-धीरे आयुषी बोलने लगी. घर में बातचीत और संवाद के साथ बच्ची को आगे बढ़ाने के लिए मां वंदना शर्मा ने भी स्पीच थेरेपी का कोर्स किया. जिन्होंने घर पर बच्ची को बोलना और संवाद करना सिखाया. नतीजतन अपनी 11 वर्ष की उम्र तक ना बोल पाने व ना सुनने वाली बच्ची बोलने लगी. माता-पिता के संकल्प के कारण आयुषी पढ़ाई लिखाई में सामान्य बच्चों से भी होनहार रही. सरकारी स्कूल में पढ़ने के साथ आयुषी ने इंजीनियरिंग का एंट्रेंस एग्जाम दिया तो उसका सिलेक्शन शहर के प्रतिष्ठित एसजीएसआईटीएस कॉलेज में हो गया.

आयुषी ने पहली ही कोशिश में ही मारी थी बाजी

इंजीनियरिंग करते हुए आयुषी ने राष्ट्रीय स्तर की गेट परीक्षा उत्तीर्ण की. इसके बाद आयुषी का सबसे पहले सिलेक्शन केंद्र सरकार के पीएसयू राइट्स में असिस्टेंट मैनेजर सिविल के पद पर हुआ. दूसरी बार आयुषी का सिलेक्शन मध्य प्रदेश रोड डेवलपमेंट कॉरपोरेशन में असिस्टेंट मैनेजर के पद पर हुआ है. फिलहाल आयुषी रोड डेवलपमेंट कॉरपोरेशन इंदौर के डिवीजन ऑफिस में असिस्टेंट मैनेजर टेक्निकल के पद पर कार्यरत हैं.

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आयुषी ने माता-पिता को दिया सफलता का श्रेय

हाल ही में आयुषी को भारत सरकार के कोल इंडिया लिमिटेड और एनटीपीसी में भी नियुक्ति के लिए जॉब ऑफर हुआ है. हालांकि वह इंदौर में सिविल इंजीनियर के रूप में अपने सफल परफॉर्मेंस से संतुष्ट हैं. आयुषी ने बताया, ''मुझे बधिर होने के कारण बहुत संघर्ष करना पड़ा, लेकिन अब जो सफलता मिली है, वह संघर्ष और निराशा से कहीं बढ़कर है.'' आयुषी ने इसका श्रेय अपने माता-पिता और नोबल हियरिंग एंड स्पीच थेरेपी सेंटर के सलज भटनागर व ऑडियोलॉजिस्ट निशा जॉर्ज को देती हैं.

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