पटना: हाजीपुर से एलजेपीआर सांसदचिराग पासवानकैबिनेट मंत्री बने हैं. राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने उनको पद और गोपनीयता की शपथ दिलाई. इस मौके पर उनकी मां और परिवार के अन्य सदस्य मौजूद थे. चिराग तीसरी बार सांसद बने हैं. 2024 के लोकसभा चुनाव में उनकी पार्टी एलजेपीआर को 5 सीटों पर जीत मिली है.
कौन हैं चिराग पासवान:हाजीपुर लोकसभा (सुरक्षित) सीट से सांसद चिराग पासवान बिहार के दिग्गज दलित नेता रामविलास पासवान के इकलौते पुत्र हैं. पिता की विरासत को बढ़ाते हुए चिराग ने राजनीति में अपना कदम रखा. 2014 में उन्होंने राजनीति की शुरुआत की और लगातार दो बार 2014 और 2019 में वह बिहार के जमुई (सुरक्षित) सीट से सांसद चुने गए. हालांकि 2024 लोकसभा चुनाव में वह अपने पिता की परंपरागत सीट हाजीपुर से चुनाव जीत कर सदन पहुंचे हैं.
दिल्ली में पढ़े हैं चिराग: चिराग पासवान का जन्म 31 अक्टूबर 1982 को दिल्ली में हुआ था. उन्होंने अपनी पूरी पढ़ाई दिल्ली में ही पूरी की है. उन्होंने साल 2003 में नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ ओपन स्कूलिंग से 10वीं और 12वीं की शिक्षा हासिल की. कंप्यूटर साइंस से बीटेक की डिग्री ले रखी है. उन्होंने फैशन डिजाइनिंग का भी कोर्स किया है. इंजीनियरिंग की डिग्री लेने वाले चिराग फिल्मों में अपना करियर बनाना चाहते थे. उन्होंने कंगना रनौत के साथ 2011 में फिल्म 'मिले ना मिले हम' से फिल्मी करियर की शुरुआत की, लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली.
चिराग पासवान की राजनीति में एंट्री:फिल्मी करियर छोड़कर उन्होंने सियासत में कदम बढ़ाया. जब चिराग पासवान राजनीति में सक्रिय होने लगे थे तो रामविलास पासवान पर परिवारवाद को बढ़ावा देने का आरोप लगा, क्योंकि रामविलास पासवान के दो भाई (पशुपति पारस और रामचंद्र पासवान) पहले से ही राजनीति में सक्रिय थे. चिराग पासवान के बारे में रामविलास पासवान अक्सर पत्रकारों से बातचीत करते हुए कहते थे कि यदि शेर का बेटा होगा तो सभी बाधा को दूर करते हुए आगे बढ़ेगा और यदि गीदड़ साबित होगा तो रास्ता छोड़कर निकल जाएगा. चिराग अपने पिता की उम्मीद पर खरे उतरे हैं.
2014 में लड़ा पहला चुनाव: 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले चिराग पासवान राजनीति में सक्रिय हो गए थे. उन्होंने ही अपने पिता रामविलास पासवान को बीजेपी के साथ गठबंधन करने की सलाह दी. चिराग पासवान 2014 में जमुई सीट से लोक जनशक्ति पार्टी के लिए चुनाव लड़ा. इस चुनाव में उनकी जीत हुई थी और वह पहली बार सांसद बने. फिर 2019 में भी उन्होंने अपनी जमुई सीट पर दोबारा जीत दर्ज की.
लोक जनशक्ति पार्टी में टूट: वर्ष 2020 चिराग पासवान के लिए सबसे संकट वाला समय रहा. उनके पिता रामविलास पासवान का निधन 2020 में हो गया. उनके निधन के बाद चिराग पासवान के लिए मुसीबत एक साथ आई. चिराग पासवान का उनके चाचा पशुपति कुमार पारस के साथ मतभेद शुरू हुआ. 14 जून 2021 को पारस ने चिराग की जगह खुद को लोकसभा नेता के रूप में घोषित कर दिया था. 6 सांसदों वाली लोजपा में पारस 5 सांसदों के साथ अलग हो गए. लोक जनशक्ति पार्टी दो गुटों में बंट गई. पारस के नेतृत्व में राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी का गठन हुआ, वहीं चिराग के नेतृत्व में लोजपा (रामविलास) अस्तित्व में आई.
मोदी के 'हनुमान' बने रहे चिराग: एलजेपी में टूट के बाद चिराग पासवान अपनी पार्टी में अकेले सांसद बच गए थे. राजनीति के बुरे दौर से गुजर रहे चिराग ने अपने कुछ सहयोगियों के साथ 'बिहार फर्स्ट बिहारी फर्स्ट' को लेकर पूरे बिहार का दौरा किया. बिहार के हर जिले में उन्होंने फिर से अपना संगठन खड़ा किया. रामविलास पासवान के समर्थकों ने भी उनको अपना नेता माना. अपने राजनीति के बुरे दौर में भी चिराग पासवान ने कभी नरेंद्र मोदी का साथ नहीं छोड़ा. जब पशुपति कुमार पारस नरेंद्र मोदी की सरकार में मंत्री बने, उस समय भी चिराग अपने आप को मोदी का 'हनुमान' ही बताते रहे.