पटनाः बिहार के महत्वपूर्ण लोकसभा सीटों में से एक कटिहार सीमांचल का बड़ा क्षेत्र है. कभी कांग्रेस का गढ़ रहे कटिहार लोकसभा क्षेत्र से फिलहाल जदयू के दुलाल चंद्र गोस्वामी सांसद हैं. इस बार फिर से उन्हें ही टिकट मिला है. करीब ढाई दशक से इस सीट पर एनडीए का दबदबा है. बीजेपी के निखिल चौधरी लगातार तीन बार कटिहार के सांसद रहे हैं. यहां से कांग्रेस ने तारिक अनवर पर दांव लगाया है. तारिक अनवर यहां से पांच बार सांसद रहे हैं. चार बार कांग्रेस से और एक बार एनसीपी से सांसद बने थे. तारिक अनवर की राजनीतिक पृष्ठभूमि को जानते हैं.
कौन हैं तारिक अनवरः तारिक अनवर का जन्म पटना में 16 जनवरी 1951 में हुआ था. कांग्रेस ने 25 साल के तारिक अनवर पर अपना सबसे बड़ा दांव लगाया. 1976 में तारिक अनवर बिहार प्रदेश युवा कांग्रेस के अध्यक्ष बन गए. हालांकि उस समय कांग्रेस में नेताओं की एक बड़ी फेहरिस्त थी. यहीं नहीं 1977 में कांग्रेस ने तारिक अनवर को कटिहार से चुनाव भी लड़ा दिया. हालांकि, जेपी की लहर में तारिक अनवर पहले चुनाव में हार गए. लेकिन, 1980 में तारिक अनवर ने कटिहार से चुनाव लड़ा तो उन्होंने कांग्रेस का झंडा बुलंद कर दिया.
25 साल में बन गए थे यूथ कांग्रेस प्रदेश अध्यक्षःयह वह दौर था जब कांग्रेस में एक संक्रमण काल चल रहा था. एक तरफ कांग्रेस के दिग्गज नेता तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के कार्य और व्यवहार से खुश नहीं थे. इंदिरा गांधी ने अपने लिए अलग गुट तैयार कर लिया था. 1978 में कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष स्वर्ण सिंह ने इंदिरा गांधी को कांग्रेस से बाहर निकाल दिया. तब इंदिरा गांधी ने कांग्रेस आई की स्थापना की. तारिक अनवर उस समय इंदिरा गांधी के सबसे करीबी नेता सीताराम केसरी के नजदीक हुआ करते थे. तब सीताराम केसरी बिहार कांग्रेस के अध्यक्ष थे.
सीताराम केसरी के साथ का मिला फायदाः जब सीताराम केसरी पावर में थे तो तारिक अनवर भी पूरी तरह से कांग्रेस में पावर में थे. तारिक अनवर 1976 से लेकर 1981 तक बिहार कांग्रेस यूथ के अध्यक्ष रहे. जब संजय गांधी की मौत हो गई तब, तारिक अनवर राजीव गांधी के करीब चले गए. उस दौरान तारिक अनवर को यूथ कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया गया. 1982 से लेकर 1985 तक यूथ कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे तब तक तारिक अनवर की कांग्रेस में इतनी पैठ बन चुकी थी कि कहा जाने लगा था कि तारिक अनवर की मर्जी के बिना कांग्रेस में पत्ता भी नहीं हिलता.
मंत्री पद की नहीं ली शपथःपार्टी के सीनियर लीडर और पूर्व विधायक हरखू झा बताते हैं कि तारिक अनवर में नेतृत्व क्षमता काफी ज्यादा थी. इंदिरा गांधी, संजय गांधी, राजीव गांधी प्रभावित थे. हरखू झा एक वाकया याद करते हैं कि भागवत झा आजाद जब मुख्यमंत्री बन रहे थे तो तारिक अनवर को मंत्री परिषद में शामिल होने का ऑफर दिया गया. तारिक अनवर ने उसे इसलिए नहीं स्वीकार किया क्योंकि, उस समय वह कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष थे. एक चर्चा यह भी थी कि तारिक अनवर इसलिए भी मंत्री परिषद में शामिल नहीं हुए क्योंकि उस समय उनका नाम बातौर मुख्यमंत्री पद के लिए चल रहा था.
कांग्रेस के 'दो मियां, एक मीरा':कांग्रेस के एक वरिष्ठ अन्य नेता के मुताबिक एक तरह से सीताराम केसरी, तारिक अनवर के गुरु बन गए थे. 1996 में जब सीताराम केसरी जब कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने तो तारिक अनवर राष्ट्रीय महासचिव बनाए गए. उस समय कांग्रेस में एक कहावत बहुत चलती थी. 'दो मियां, एक मीरा'. मतलब एक तारिक अनवर, दूसरे अहमद पटेल और तीसरी मीरा कुमार थीं. 1998 में तारिक अनवर कटिहार से चौथी बार लोकसभा का चुनाव जीते थे. तभी सीताराम केसरी कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से हटे और इसी दौरान कांग्रेस में तारिक अनवर का ग्राफ भी नीचे गिरने लगा.
कांग्रेस से बगावत कर पार्टी बनायीः हरखू झा बताते हैं कि उस समय शरद पवार, पीए संगमा और तारिक अनवर ने सोनिया गांधी के खिलाफ बगावत शुरू कर दी थी. विदेशी मूल के मामले को उठाकर उन्होंने अपनी एक अलग पार्टी बनाई थी. शरद पवार की अध्यक्षता में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी बनाई गई. जिसमें तारिक अनवर और पीए संगमा शामिल थे. हालांकि उसके बाद से लगातार तीन बार तारिक अनवर कटिहार लोकसभा सीट से हारते गए. निखिल कुमार चौधरी 1999, 2004 और 2009 में कटिहार से सांसद बने.