जबलपुर। नई ड्रोन नीति में इतने कड़े प्रावधान बनाए गए हैं कि केवल बड़े उद्योगपति ही भारत में ड्रोन बना सकेंगे और इनके इस्तेमाल को लेकर भी कड़े कानून बनाए गए हैं. भारत में कोई भी आयातित ड्रोन का इस्तेमाल नहीं कर सकता. जबलपुर के अभिनव सिंह ठाकुर ने मध्य प्रदेश में पहली बार 50 लीटर वजन उठाने वाले ड्रोन का इस्तेमाल करके खेती में नया प्रयोग किया था. लेकिन नई ड्रोन नीति के बाद अब अभिनव अपने काम को आगे जारी नहीं रख पाए और अंतत उन्हें भारत को छोड़कर अपने काम को ऑस्ट्रेलिया में आगे बढ़ने का फैसला लिया.
आधुनिक खेती की समस्याएं
जो लोग खेती किसानी करते हैं उन्हें इस बात का अंदाजा होगा कि आजकल की खेती में कीटों का प्रकोप ज्यादा होने लगा है और कई किट ऐसे हैं जिनका तुरंत नियंत्रण न किया जाए तो वह पूरी फसल को बर्बाद कर देते हैं. इनके कई रासायनिक और प्राकृतिक निदान भी हैं, लेकिन कृषि मजदूरों की लगातार घटती तादाद की वजह से किसान जानते हुए भी खेती में दबा का छिड़काव नहीं करवा पाता.
मध्य प्रदेश में पहला ड्रोन इस्तेमाल
जबलपुर के पाटन इलाके में एक किसान परिवार में अभिनव सिंह ठाकुर नाम के एक युवा ने इंजीनियरिंग की और जब उसने देखा कि अपने आसपास के किसान खेती में कीट पतंग के प्रकोप की वजह से अपनी आंखों के सामने फसलों को खराब होता हुआ देख रहे हैं. तो उसने काफी सोच विचार करने के बाद इस समस्या के निदान के लिए ड्रोन की तकनीक पर काम करना शुरू किया. कुछ साल पहले तक भारत में जो ड्रोन इस्तेमाल होते थे उनमें ज्यादातर छोटे ड्रोन थे, जिसमें कैमरे लगे होते थे और इन ड्रोन का इस्तेमाल वीडियो रिकॉर्डिंग के लिए किया जाता था.
50 लीटर तक कीटनाशक उठाने की क्षमता
अभिनव ने एक बड़ा ड्रोन तैयार किया जिसके जरिए कीटनाशक दवा का छिड़काव किया जा सके. शुरुआत में अभिनव का ड्रोन छोटा था लेकिन उसने लगातार कोशिश करते हुए अपने ड्रोन को 50 लीटर तक कीटनाशक उठाने की क्षमता का बना लिया. अभिनव सिंह ठाकुर ने अपने इस जुनून को ही जीवन यापन का जरिया बनाने का सोचा और उसने ऐसे और ड्रोन तैयार किया और इसके पहले कि वह इन्हें बेचने के लिए बाजार तैयार करता उससे पहले ही सरकार की ड्रोन नीति आ गई.
सरकार की ड्रोन नीति के बाद बंद हुआ उद्योग
सरकार की नई ड्रोन नीति में कई ऐसे प्रावधान हैं जिसकी वजह से भारतीय ड्रोन निर्माता के सामने चुनौतियां खड़ी हो गई. सरकार किसानों को ड्रोन खरीदने की सब्सिडी दे रही है और किसानों को ₹5,00,000 तक की सब्सिडी मुहैया की जा रही है, इसमें एक शर्त यह है कि ड्रोन भारत में ही बना होना चाहिए. ड्रोन का आयात पूरी तरह से बंद है और कोई भी विदेश से ड्रोन आयात नहीं कर सकता. ऐसी स्थिति में अभिनव के सामने संकट खड़ा हो गया. क्योंकि ड्रॉन को असेंबल तो भारत में ही कर रहे थे लेकिन इसके बहुत सारे कलपुर्जे उन्हें आयात करने पड़ते थे.
लाइसेंस की प्रक्रिया काफी महंगी
अभिनव का कहना है कि ''अभी जो कंपनियां प्रधानमंत्री की ड्रोन योजना के तहत किसानों को ड्रोन मुहैया करवा रही हैं वे खुद ड्रोन नहीं बना रहीं, बल्कि सामान को चोरी छुपे विदेश से आयात करती हैं और फिर उन पर अपना लेवल लगाकर उन्हें बेच देती हैं.'' अभिनव ने फोन पर ईटीवी भारत को बताया कि ''उसने भी कोशिश की थी लेकिन लाइसेंस की प्रक्रिया इतनी महंगी है कि वह इतना निवेश नहीं कर पाया.''