हैदराबाद: हर साल 23 जून को हम अंतरराष्ट्रीय विधवा दिवस पर दुनिया भर में सभी उम्र की विधवाओं की स्थिति को विशेष मान्यता देते हैं. हाल के आंकड़ों के अनुसार दुनिया में लगभग 2580 लाख (258 मिलियन) विधवाएं हैं. 2011 की जनगणना के अनुसार भारत में 5.6 करोड़ विधवाएं थीं. 2001 से 2011 के दशक में 89.71 लाख महिलाएं विधवाएं बढ़ी थी. अनुमान है यह 2011 से 2024 तक करीबन एक करोड़ के करीब विधवाएं जुड़ गईं होंगी.
लगभग 10 में से एक विधवा अत्यधिक गरीबी में रहती हैं. ऐसा इसलिए है क्योंकि कई विधवाओं के पास काम सहित ऋण या अन्य आर्थिक संसाधनों तक पहुंच नहीं है. लैंगिक समानता की उपलब्धि में तेजी लाने का विषय (भूमि और संपत्ति के अधिकारों को मजबूत करने पर जोर देते हुए) है.
अतीत के अनुभव से पता चलता है कि विधवाओं को अक्सर विरासत के अधिकारों से वंचित किया जाता है. साथी की मृत्यु के बाद उनकी संपत्ति हड़प ली जाती है. उन्हें बीमारी के 'वाहक' के रूप में अत्यधिक कलंक और भेदभाव का सामना करना पड़ सकता है. दुनिया भर में महिलाओं को पुरुषों की तुलना में वृद्धावस्था पेंशन तक पहुंच की संभावना बहुत कम है, इसलिए पति या पत्नी की मृत्यु से वृद्ध महिलाओं के लिए दरिद्रता हो सकती है.
लॉकडाउन और आर्थिक बंदी के समय में विधवाओं के पास बैंक खातों और पेंशन तक पहुंच नहीं हो पाती है. इस दौरान अगर वे भी बीमार हो जाएं तो स्वास्थ्य सेवा का खर्च उठाना या खुद और अपने बच्चों का भरण-पोषण करने में उन्हें काफी समस्याओं का सामना करना पड़ता है. अकेली माताओं वाले परिवारों और अकेली वृद्ध महिलाओं के पहले से ही गरीबी के प्रति संवेदनशील होने के कारण, यह एक ऐसा क्षेत्र है जिस पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है.
अंतररष्ट्रीय विधवा दिवस का इतिहास
संयुक्त राष्ट्र (यूएन) द्वारा 21 दिसंबर 2010 को 'विधवाओं और उनके बच्चों के समर्थन में' नामक प्रस्ताव पारित करके आधिकारिक तौर पर अंतरराष्ट्रीय विधवा दिवस की घोषणा की गई थी. अंतरराष्ट्रीय विधवा दिवस का इतिहास यूनाइटेड किंगडम में स्थित लूम्बा फाउंडेशन से जुड़ा है. यह फाउंडेशन लॉर्ड राज लूम्बा द्वारा स्थापित एक धर्मार्थ ट्रस्ट है जो विधवाओं के सशक्तिकरण के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर काम करता है.
पृष्ठभूमि
अंतरराष्ट्रीय विधवा दिवस की शुरुआत लूम्बा फाउंडेशन ने 2005 में की थी. 1997 में इसकी स्थापना के बाद से ही फाउंडेशन का ध्यान दुनिया भर में विधवाओं की दुर्दशा पर रहा है. इसके संस्थापक राज लूम्बा के अनुसार, कई देशों में महिलाओं को अपने पतियों की मृत्यु के बाद बहुत कष्ट सहना पड़ता है. 'सरकार या गैर सरकारी संगठनों द्वारा उनकी देखभाल नहीं की जाती है और समाज द्वारा उनका तिरस्कार किया जाता है.' यह दिवस 23 जून को मनाया जाता है क्योंकि लूम्बा की मां (पुष्पावती लूम्बा) 1954 में इसी दिन विधवा हुई थीं.
अंतरराष्ट्रीय विधवा दिवस का महत्व
यह दिन इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह लोगों में उन समस्याओं के बारे में जागरूकता लाता है जिनका सामना पूरी दुनिया में विधवाएं करती हैं. यह प्रगति पर चिंतन करने और आम महिलाओं द्वारा किए गए साहस और दृढ़ संकल्प का जश्न मनाने का समय है. यह लोगों का ध्यान इस ओर आकर्षित करने का भी दिन है कि वे कार्रवाई करें और विधवाओं को पूर्ण अधिकार और मान्यता प्रदान करें.
यह विधवाओं के सामने आने वाली चुनौतियों के बारे में जागरूकता फैलाता है.
- वैश्विक स्तर पर विधवाओं की मदद करने के तरीके खोजने में मदद करता है.
- राष्ट्रीय सरकारों के नीति निर्माता विधवाओं की कठिनाइयों को स्वीकार नहीं कर रहे हैं.
- नीति निर्माताओं की ओर से विधवाओं को जानबूझकर नजरअंदाज किया जाता है.
- यह दिन नीति निर्माताओं को दुनिया भर में विधवाओं के लिए समान अवसर प्रदान करने के लिए प्रेरित करता है.
- यह पारंपरिक कलंक को तोड़ता है कि विधवाएं बहिष्कृत हैं.
- यह इस विचार को खारिज करता है कि विधवाएं दुर्भाग्य लाती हैं.
- यह इस कलंक के खिलाफ जागरूकता पैदा करता है कि विधवाएं समाज की बर्बादी हैं या राष्ट्रीय संपत्ति पर बोझ हैं.
विकासशील देशों में विधवाओं की समस्याएं