पाली. जिले के सकदरा गांव की रहने वाली प्रवीणा मीणा शादी के बाद अपने ससुराल में महज 21 साल की उम्र में सरंपच बन गई थीं. पांच साल तक रुपावास गांव की सरपंच रहने के दौरान प्रवीणा ने बालिका शिक्षा को लेकर ज्यादा काम किया. प्रवीणा चाहकर भी ज्यादा नहीं पढ़ सकीं थी, लेकिन सरपंच रहते हुए करीब दो हजार लोगों की जनसंख्या वाले गांव की बालिकाओं के लिए स्कूल खुलवा दिया.
ऐसा रहा शुरुआती जीवन :सरपंच बनने के बाद लोगों का रहन सहन बदल जाता है, लेकिन प्रवीणा का परिवार आज भी सामान्य जीवन जी रहा है. पति आज भी मजदूरी के लिए जाते हैं. घर भी सामान्य ही है. प्रवीणा अपने घर का ही काम करती हैं. पिता की मौत के बाद वह बीमार रहने लगी हैं. प्रवीणा कहती है कि उनके गांव सकदारा में बालिका शिक्षा के लिए ज्यादा व्यवस्था नहीं थी. दूसरी कक्षा के बाद उनका एडमिशन कस्तूरबा गांधी बालिका आवासीय विद्यालय के लिए हो गया. आठवीं तक वहां पढ़ीं, इसके बाद वापस घर आ गई. आगे पढ़ाई करवाने की परिवार की स्थिति नहीं थी. 19 साल की उम्र में उनका विवाह सकदरा से करीब चालीस किमी दूर रूपावास गांव के गोमाराम से हुआ. दंपती के दो बेटे भी हैं. प्रवीणा की मां भंवरी देवी ने बताया कि पिता की मौत के बाद से बेटी भी बीमार रहने लगी. उनके दो बेटे भी हैं, जो अभी पढ़ रहे हैं.