सागर।पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय राजीव गांधी के बारे में कहा जाता है कि राजीव गांधी अपने भाई संजय गांधी के मुकाबले राजनीति में रुचि नहीं रखते थे. वो एक प्रोफेशनल पायलट थे और गांधी परिवार के सदस्य होने के अलावा राजनीति से उनका कोई खास नाता नहीं था. ये भी कहा जाता है कि इंदिरा गांधी की हत्या के कारण उपजे रिक्त स्थान को भरने के लिए राजीव गांधी मजबूरी में बेमन से राजनीति में आए थे, लेकिन इतिहास के पन्नों को उलटकर देखा जाए, तो राजीव गांधी की सियासी ट्रैनिंग इंदिरा गांधी के निधन के कई सालों पहले शुरू हो गयी थी और एक नेता के तौर पर उन्होंने पहला चुनावी दौरा और सभाएं मध्यप्रदेश के बुंदेलखंड में की थी.
हालांकि ये कोई आम चुनाव नहीं,बल्कि लोकसभा का उपचुनाव था. जिसमें कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव की हैसियत से राजीव गांधी ने हिस्सा लिया था और सागर के बीना में पहली चुनावी सभा को संबोधित किया था. यहां पर उन्होंने एक रोड शो भी किया था. राजीव गांधी तब दो दिन सागर में रहे थे और बीना के अलावा खुरई, सागर और रहली का भी दौरा किया था. हालांकि उपचुनाव में कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा था.
संजय गांधी के निधन के बाद सक्रिय राजनीति की शुरूआत
इंदिरा गांधी के दो बेटे राजीव और संजय गांधी का स्वभाव एकदम विपरीत था. राजीव गांधी सौम्य और शर्मीले स्वभाव के थे, तो संजय गांधी तेज तर्रार व्यक्ति थे. मां इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्री और देश के सबसे बडे़ सियासी परिवार के सदस्य होने के बावजूद राजीव गांधी की सियासत में कोई खास रूचि नहीं थी. बताया जाता है कि राजीव गांधी एक प्रोफेशनल पायलट थे और अपनी जिंदगी से काफी खुश थे, लेकिन एक विमान दुर्घटना में 23 जून 1980 को संजय गांधी
का निधन हो गया था. उसके बाद राजीव गांधी ने कांग्रेस की सदस्यता ली थी और एक तरह से सियासी पारी शुरू की थी.
सागर की सांसद सहोद्राबाई राय के निधन से हुई थी सीट खाली
आपातकाल के बाद उपजे हालातों के चलते 1977 में कांग्रेस की करारी हार के बाद कांग्रेस ने 1980 के आमचुनाव में जोरदार वापसी की थी और कांग्रेस (आई) करीब 353 सीटें हासिल करने में कामयाब रही थी. सागर लोकसभा सीट से भी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी सहोद्राबाई राय ने दोबारा जीत हासिल की थी. सहोद्राबाई राय गोवा मुक्ति आंदोलन की नायिका के रूप में जानी जाती थी और सागर की पहली महिला सांसद होने का गौरव उन्हें प्राप्त था, लेकिन सांसद बनने के 6 महीने बाद ही सहोद्रा बाई राय का निधन हो गया और सागर सीट पर उपचुनाव के हालात बने. दिसंबर 1981 में उपचुनाव संपन्न हुआ था और दमोह के सरकारी काॅलेज में प्रोफेसर श्यामलाल ठक्कर ने कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा था.
सागर लोकसभा उपचुनाव से शुरू हुई चुनावी ट्रेनिंग
संजय गांधी के निधन के बाद राजीव गांधी ने राजनीति में प्रवेश ले लिया, लेकिन अपने शर्मीले स्वभाव के कारण काफी कम सक्रिय रहते थे. उन्हें कांग्रेस में राष्ट्रीय महासचिव बनाया गया और इंदिरा गांधी ने उनको सियासत का ककहरा सिखाने के लिए सबसे पहले चुनावी दौरा करने बुंदेलखंड भेजा. राजीव गांधी के राजनीतिक जीवन का पहला दौरा सागर का था. जिसमें उन्होंने पहली चुनावी सभा बीना में संबोधित की थी. राजीव गांधी एआईसीसी के महासचिव के तौर पर कांग्रेस प्रत्याशी के पक्ष में प्रचार करने आए थे. राजीव गांधी की उम्र तब महज 37 साल थी और 23 दिसम्बर 1981 को राजीव गांधी ने बीना के शास्त्री वार्ड में स्थित शासकीय उत्कृष्ट विद्यालय क्रमांक एक में आमसभा को संबोधित किया और सभा के बाद रोड शो भी किया.
प्रोफेसर श्यामलाल ठक्कर के पक्ष में की थी चुनावी सभा
सहोद्राबाई राय के निधन के पश्चात खाली हुई सागर सीट से दमोह के सरकारी काॅलेज के प्रोफेसर श्यामलाल ठक्कर सागर के रहने वाले थे. सागर लोकसभा उपचुनाव के लिए इंदिरा गांधी ने खुद श्यामलाल ठक्कर को चुना था और तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह को निर्देश देकर उनका इस्तीफा करवाकर चुनाव लड़ाया गया था.
मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह सहित दिग्गजों ने डाला डेरा
एमपी कांग्रेस के प्रवक्ता अभिषेक बिलगैंया बताते हैं कि 'मेरे दादा बद्रीप्रसाद बिलगैंया बीना जनपद पंचायत के अध्यक्ष थे. राजीव गांधी के दौरे और सभा की तैयारियों के लिए उन्हें प्रभारी बनाया गया था. हम लोग तो काफी छोटे थे, लेकिन बाद में दादाजी ने बताया कि राजीव गांधी का पहला चुनावी दौरा होने के कारण दिल्ली और भोपाल से काफी दबाब था. मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह सहित कई मंत्रियों ने राजीव गांधी के आने के पहले ही डेरा डाल लिया था और तैयारियों को लेकर पल-पल की जानकारी ली जा रही थी.'