झारखंड

jharkhand

ETV Bharat / bharat

गैर हिंदी भाषियों के सहयोग से हिंदी बनी थी देश की राजभाषा, हिंदी प्रोफेसर ने बताया इतिहास - Hindi Diwas - HINDI DIWAS

Hindi Diwas 2024. 14 सितंबर को हिंदी दिवस मनाया जाता है. जेवियर कॉलेज रांची के हिंदी के प्रोफेसर बताते हैं कि हिंदी में अपार संभावनाएं हैं. लोगों को शर्म छोड़कर हिंदी में संवाद करना चाहिए.

Hindi Diwas 2024
कॉन्सेप्ट इमेज (ईटीवी भारत)

By ETV Bharat Jharkhand Team

Published : Sep 14, 2024, 6:01 PM IST

रांची:आज हिंदी दिवस है. हिंदी की पहचान और संघर्ष को याद करने का दिन! हमारी हिंदी जो सबको आनंद देती है, वह हमारे जीवन का सुगम मार्ग भी प्रशस्त करती है, इसलिए आज इस भाषा के प्रति सम्मान प्रकट करने का दिन है और यह संकल्प लेने का भी दिन है कि हम शर्म और हीन भावना को त्याग कर जितना अधिक हिंदी का प्रयोग करेंगे, हमारी हिंदी उतनी ही सशक्त और समृद्ध होगी. हिंदी दिवस के महत्व और झारखंड में हिंदी की स्थिति पर ईटीवी भारत संवाददाता उपेंद्र कुमार ने हिंदी के ज्ञाता और जेवियर्स कॉलेज में हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो. (डॉ.) कमल बोस से विस्तृत बातचीत की.

प्रो कमल बोस से बात करते संवाददाता उपेंद्र कुमार (ईटीवी भारत)

कमल बोस, जो स्वयं बांग्लाभाषी हैं, लेकिन वे सालों से हिंदी भाषा के विकास में लगे हुए हैं. उन्होंने हिंदी के बारे में कई रोचक बातें बताईं और यह भी बताया कि जब आजादी के समय संविधान सभा इस बात पर चर्चा कर रही थी कि देश की राजभाषा क्या हो, तो अलग-अलग विचार सामने आ रहे थे, इसलिए संविधान सभा में लोकतांत्रिक तरीके से मतदान हुआ और संविधान सभा के गैर-हिंदी भाषी सदस्यों के समर्थन से हिंदी देश की राजभाषा बनी.

'राष्ट्रभाषा के नाम पर बहस ठीक नहीं'

डॉ. कमल बोस का कहना है कि राजभाषा और राष्ट्रभाषा के नाम पर बहस या भेद ठीक नहीं है, क्योंकि राष्ट्रभाषा बनने की क्षमता केवल हिंदी में ही है. उनका कहना है कि हिंदी कोई कमतर भाषा नहीं है, बल्कि यह सभी भारतीय भाषाओं की बड़ी बहन है. हिंदी के विकास में सभी भाषाओं का योगदान है और हिंदी ने भी सभी भाषाओं को अपने तरीके से पोषित किया है.

'झारखंड में भाषा के लिए नहीं हुआ आंदोलन'

झारखंड में हिंदी के विकास और उत्थान के सवाल पर डॉ. कमल बोस ने कहा कि झारखंड गठन के 23-24 वर्षों में हिंदी या किसी अन्य आदिवासी-क्षेत्रीय भाषा के लिए कोई आंदोलन नहीं हुआ. इसका कारण यह है कि राज्य के विभिन्न क्षेत्रों में 32 क्षेत्रीय और आदिवासी भाषाएं बोली जाती हैं, इसलिए छोटे क्षेत्रों की भाषाओं के लिए कोई राजनीतिक या सामाजिक आंदोलन शुरू नहीं हो सका. डॉ. कमल बोस ने कहा कि आज हिंदी दिवस पर यह संकल्प लेने का दिन है कि हम हिंदी का भरपूर उपयोग करेंगे. हिंदी का दायरा और क्षितिज बहुत बड़ा है, लेकिन भ्रांतियों ने इसे नुकसान पहुंचाया है. इस भाषा में अभिव्यक्ति की अपार संभावनाएं हैं, जब गैर हिंदी भाषी हिंदी के करीब आएंगे, तब उन्हें इसकी महत्ता का एहसास होगा.

हिंदी में अपार संभावनाएं

प्रोफेसर कमल बोस कहते हैं कि हिंदी में रोजगार उपलब्ध कराने की अनेक संभावनाएं हैं. उच्चारण, ध्वनि, लेखन, तकनीकी और चिकित्सा शिक्षा में हिंदी की उपयोगिता बढ़ने की अनेक संभावनाएं हैं. ऐसे में शर्म-संकोच को छोड़कर सभी को गर्व के साथ हिंदी में संवाद करना चाहिए. उन्होंने कहा कि किसी भी भाषा का मूल तत्व स्थान, पात्र और समय का महत्वपूर्ण पहलू होता है.

कमल बोस कहते हैं कि हिंदी झारखंड की राजभाषा है और अभी कामकाज भी हिंदी में होता है, इसके साथ ही अगर सरकार राज्य में हिंदी अकादमी की स्थापना करने और हिंदी को लेकर भ्रांतियों को दूर करने के लिए आगे आए, तो हिंदी के लिए बेहतर माहौल बन सकता है.

यह भी पढ़ें:

हिंदी दिवस पर बोले शाह, 'हिंदी और स्थानीय भारतीय भाषाओं के बीच कोई प्रतिस्पर्धा नहीं' - Hindi Diwas

हिंदी दिवस : दुनिया भर की भाषाओं के बीच क्या है हिंदी की रैंकिंग ? - National Hindi Day

जानें क्यों मनाया जाता है विश्व हिंदी दिवस, इतिहास व उपयोगिता

ABOUT THE AUTHOR

...view details