देहरादून (धीरज सजवाण): उत्तराखंड की दून घाटी में बसा देहरादून शहर जो कभी अपनी स्वच्छ आबोहवा और रिटायरमेंट लाइफ के लिए जाना जाता था, वो शहर आज एक बड़ी समस्या से गुजर रहा है. वो समस्या है आलीशान कोठियों में रहने वाले अकेले बुजुर्ग और उनकी सुरक्षा. हाल ही में देहरादून के बंसत विहार इलाके में ओएनजीसी के रिटायर्ड इंजीनियर की हत्या के बाद इस तरह की चर्चाओं ने फिर से जोर पकड़ा है.
कोठी करोड़ों की लेकिन खटक रहा अकेलापन: यह कहा जाता है कि देश की किसी भी बड़ी व्यापारी और प्रेस्टीजियस सर्विस में काम करने वाले अधिकारी के रिटायरमेंट प्लान में देहरादून शहर में अपने जीवन के फुर्सत के पल बिताना शामिल होता है. देहरादून शहर में बसंत विहार, डिफेंस कॉलोनी, मोहित नगर, डालनवाला और राजपुर रोड सहित ऐसे कई इलाके हैं, जहां पर रिटायरमेंट के बाद देश के कई बड़े व्यवसायी, अधिकारी, नेता, खेल और बॉलीवुड से जुड़े प्रतिष्ठित लोगों ने अपनी बड़ी-बड़ी कोठियां बनाई हैं.
बुजुर्गों की सुनने वाला नहीं कोई: इन इलाकों में ज्यादातर समाज के उच्च वर्ग के लोगों के घर हैं, लेकिन आज यह इलाके वीरान होते जा रहे हैं. दरअसल, इन इलाकों में करोड़ों की बड़ी-बड़ी कोठियां तो हैं, लेकिन इनमें रहने वाले अब सिर्फ बुजुर्ग ही बचे हैं. परिवार के ज्यादातर सदस्य देश-विदेश में नौकरी कर रहे हैं या फिर बिजनेस.
देहरादून में बुजुर्गों को लेकर के काम करने वाली टाइम बैंक संस्था के अनुसार उत्तराखंड गठन के बाद पिछले दो दशक में बहुत तेजी से देहरादून के यह पॉश इलाके वीरान हुए हैं. यहां पर बड़े-बड़े घरों में केवल बुजुर्ग दंपति या फिर सिंगल बुजुर्ग ही बचे हैं.
खाए जा रहा अकेलापन: टाइम बैंक के सदस्य सुनली कुमार की मानें तो देहरादून के पॉश इलाकों में करोड़ों की आलीशान कोठियों में रहने वाले बुजुर्ग अकेले पड़ चुके हैं. महीनों-महीनों तक इन बुजुर्गों से बात करने वाला कोई नहीं होता है. जीवन भर चकाचौंध और व्यस्तता के बीच जीवन गुजरने वाला व्यक्ति बुढ़ापे में अकेला हो गया. कई बुजुर्गों की हालत तो ऐसी है कि जीवन साथी भी उनका साथ छोड़ गया और यही अकेलापन उन्हें खाए जा रहा है.
तन्हाई में कट रहा जीवन: टाइम बैंक ग्रुप सदस्य अवधेश कुमार के अनुसार देहरादून के मोहित नगर में फिलहाल 25 बुजुर्ग अकेले बड़े-बड़े घरों में रह रहे हैं. कुछ घरों में बुजुर्ग दंपति जोड़ा है, लेकिन कुछ ऐसे भी जिनके जीवन साथी यानी पति या पत्नी का निधन हो चुका है. ऐसे बुजुर्गों के साथ समस्या ये है कि इनके पास बात करने वाला भी कोई नहीं है.
अवधेश कुमार खुद का उदाहरण देते हुए कहते हैं कि पिछले साल ही उनकी पत्नी का निधन हुआ है और अब वह बिल्कुल अकेले हैं. अवधेश कुमार बताते हैं कि बढ़ती उम्र के साथ उन्हें कई तरह की बीमारियां भी घेर लेती हैं. ऐसे समय में मन और ज्यादा घबराता है. यदि उन्हें कुछ हो गया तो वो क्या करेंगे? अवधेश कुमार बताते है कि उन्हें और उन जैसे कई लोगों को कई बार इस तरह की समस्याओं से गुजरना पड़ा है, लेकिन उनके पास मदद के लिए कोई नहीं था.
सुरक्षा बड़ी चुनौती: अब जिस तरह के देहरादून में क्राइम का ग्राफ बढ़ रहा है और अकेले रह रहे बुर्जुगों पर हमले हो रहे हैं, उसमें उनकी सुरक्षा पुलिस और खुद बुजुर्गों के लिए बड़ी चुनौती बनती जा रही है. घरों में अकेले रहने वाले बुजुर्ग अब खुद को असुरक्षित महसूस कर रहे हैं. बसंत विहार क्षेत्र में हाल ही में हुई वारदात ने सबको इस तरह सोचने पर मजबूर कर दिया है.
टाइम बैंक मुहिम से मिल रहा बुजुर्गों को सहारा: देहरादून के पॉश इलाकों में रहने वाले बुजुर्गों के पास वैसे तो कोई कमी नहीं है, लेकिन समस्या है तो अकेलेपन की है, जो उन्हें खाए जा रही है. आज की इस भागदौड़ भरी लाइफ में कोई भी बुजुर्गों को समय नहीं देना चाहता है. ऐसे में टाइम बैंक नाम की समाजसेवी संस्था ने एक मुहिम शुरू की. इस मुहिम में समय को पैसे की तरह जमा किया जाता है.