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रोपवे प्रोजेक्ट्स को लेकर अच्छी खबर, मंत्रालयों से मंजूरी लेना होगा आसान, पर्वतीय राज्यों को होगा फायदा - ROPEWAY PROJECT RULES RELIEF

रोपवे परियोजना के लिए लैंड ट्रांसफर और पर्यावरण संरक्षण से जुड़े नियमों का पालन जरूरी, सलाहकार समिति ने की जरूरी सिफारिशें

ROPEWAY PROJECT RULES RELIEF
रोपवे प्रोजेक्ट्स को लेकर अच्छी खबर (ETV BHARAT)
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By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Jan 13, 2025, 7:57 PM IST

देहरादून, नवीन उनियाल: उत्तराखंड समेत देश के तमाम पर्वतीय राज्यों को रोपवे परियोजनाओं की मंजूरी अब आसानी से मिल सकेगी. दरअसल, केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने रोपवे परियोजनाओं को पर्यावरण के अनुकूल मानते हुए फारेस्ट कंजर्वेशन एक्ट 1980 के नियमों में कुछ राहत देने का निर्णय लिया है. इसके बाद उत्तराखंड के साथ ही देश के दूसरे पर्वतीय राज्यों में भी रोपवे परियोजनाएं आसानी से आगे बढ़ाई जा सकेंगी.

उत्तराखंड में ऐसी तमाम रोपवे परियोजनाएं हैं जिसके जरिए न केवल राज्य में पर्यटको की सुविधाओं को बढ़ाने की कोशिश की जा रही है बल्कि विभिन्न तीर्थ स्थलों को मुख्य मार्ग से जोड़ने के प्रयास हो रहे हैं. रोपवे की ऐसी परियोजनाएं केवल उत्तराखंड में ही नहीं बल्कि देश के दूसरे पर्वतीय राज्यों में भी प्राथमिकता के साथ आगे बढ़ रही हैं. खास तौर पर पर्वतीय राज्यों के लिए रोपवे परियोजनाएं बेहद अहम मानी गई हैं. इसके जरिए वन क्षेत्र और पर्यावरण को बेहद कम नुकसान होने का भी आकलन किया गया है. यही कारण है कि केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने अब रोपवे परियोजनाओं को फारेस्ट कंजर्वेशन एक्ट 1980 के तहत विभिन्न शर्तों में राहत देने का फैसला लिया है.

प्रदेश में नीलकंठ रोपवे, केदारनाथ और मसूरी रोपवे समेत ऐसी कई रोपवे परियोजनाएं हैं जिनको राज्य सरकार आगे बढ़ना चाहती है. इन परियोजनाओं को आगे बढ़ाने में सबसे ज्यादा दिक्कत वन एवं पर्यावरण मंत्रालय की मंजूरी लेने में आती है. इसकी वजह यह है कि रोपवे के वन क्षेत्र से गुजरने के चलते जितने इलाके में रोपवे लगाया जाता है उस पूरे क्षेत्र में लैंड ट्रांसफर से लेकर वन संरक्षण अधिनियम 1980 के नियमों का पालन करना होता है. जिसके कारण कई बार पर्यावरण संरक्षण को देखते हुए मंजूरी लेने में काफी वक्त लग जाता है. अब केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने रोपवे के केवल उन दो क्षेत्रों को ही मंजूरी के लिए अनिवार्य किया है जहां पर रोपवे के स्टेशन लगाने होते हैं.

केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के अंतर्गत वन सलाहकार समिति की सिफारिश को लागू किए जाने का निर्णय लिया गया है. वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के अंतर्गत इस सलाहकार समिति ने साल 2019 में हिमाचल प्रदेश की सरकार द्वारा रोपवे परियोजनाओं को छूट से जुड़े प्रस्ताव पर विचार किया था. जिसके बाद वन सलाहकार समिति ने कुछ अहम सिफारिश से भी की थी. इन्हीं सिफारिश को अब केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने लागू करने का निर्णय लिया है.

सलाहकार समिति ने रोपवे परियोजनाओं को विकास कार्यों के साथ वन एवं पर्यावरण के संरक्षण के लिए जरूरी माना. इसमें माना गया कि रोपवे परियोजनाओं से पर्यावरण को बेहद कम नुकसान होता है. पर्वतीय क्षेत्रों में दूसरे विकास कार्यों से भूस्खलन का खतरा रहता है, जबकि रोपवे परियोजनाएं ऐसे खतरों को कम करती हैं. केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के साल 2019 में वन सलाहकार समिति की सिफारिश को लागू करने के निर्णय के बाद अब रोपवे परियोजना में केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय की मंजूरी मिलना आसान हो जाएगा. अब तक रोपवे परियोजना जिन वन क्षेत्र से गुजरती थी उस पूरे इलाके के लिए लैंड ट्रांसफर और पर्यावरण संरक्षण से जुड़े विभिन्न नियमों का पालन करना होता था, लेकिन, अब इन परियोजनाओं को इससे छूट दी गई है. अब लैंड ट्रांसफर की ये औपचारिकता केवल रोपवे परियोजना के लिए लगने वाले टावर क्षेत्र के लिए ही पूरी करनी होगी. जिस क्षेत्र से रोपवे गुजरेगा वह क्षेत्र इस नियम के अंतर्गत नहीं माना जाएगा.

पढ़ें- रोपवे से आसान होगी केदारनाथ-हेमकुंड साहिब की यात्रा… कितना लंबा होगा सफर, जानें सब कुछ

देहरादून, नवीन उनियाल: उत्तराखंड समेत देश के तमाम पर्वतीय राज्यों को रोपवे परियोजनाओं की मंजूरी अब आसानी से मिल सकेगी. दरअसल, केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने रोपवे परियोजनाओं को पर्यावरण के अनुकूल मानते हुए फारेस्ट कंजर्वेशन एक्ट 1980 के नियमों में कुछ राहत देने का निर्णय लिया है. इसके बाद उत्तराखंड के साथ ही देश के दूसरे पर्वतीय राज्यों में भी रोपवे परियोजनाएं आसानी से आगे बढ़ाई जा सकेंगी.

उत्तराखंड में ऐसी तमाम रोपवे परियोजनाएं हैं जिसके जरिए न केवल राज्य में पर्यटको की सुविधाओं को बढ़ाने की कोशिश की जा रही है बल्कि विभिन्न तीर्थ स्थलों को मुख्य मार्ग से जोड़ने के प्रयास हो रहे हैं. रोपवे की ऐसी परियोजनाएं केवल उत्तराखंड में ही नहीं बल्कि देश के दूसरे पर्वतीय राज्यों में भी प्राथमिकता के साथ आगे बढ़ रही हैं. खास तौर पर पर्वतीय राज्यों के लिए रोपवे परियोजनाएं बेहद अहम मानी गई हैं. इसके जरिए वन क्षेत्र और पर्यावरण को बेहद कम नुकसान होने का भी आकलन किया गया है. यही कारण है कि केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने अब रोपवे परियोजनाओं को फारेस्ट कंजर्वेशन एक्ट 1980 के तहत विभिन्न शर्तों में राहत देने का फैसला लिया है.

प्रदेश में नीलकंठ रोपवे, केदारनाथ और मसूरी रोपवे समेत ऐसी कई रोपवे परियोजनाएं हैं जिनको राज्य सरकार आगे बढ़ना चाहती है. इन परियोजनाओं को आगे बढ़ाने में सबसे ज्यादा दिक्कत वन एवं पर्यावरण मंत्रालय की मंजूरी लेने में आती है. इसकी वजह यह है कि रोपवे के वन क्षेत्र से गुजरने के चलते जितने इलाके में रोपवे लगाया जाता है उस पूरे क्षेत्र में लैंड ट्रांसफर से लेकर वन संरक्षण अधिनियम 1980 के नियमों का पालन करना होता है. जिसके कारण कई बार पर्यावरण संरक्षण को देखते हुए मंजूरी लेने में काफी वक्त लग जाता है. अब केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने रोपवे के केवल उन दो क्षेत्रों को ही मंजूरी के लिए अनिवार्य किया है जहां पर रोपवे के स्टेशन लगाने होते हैं.

केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के अंतर्गत वन सलाहकार समिति की सिफारिश को लागू किए जाने का निर्णय लिया गया है. वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के अंतर्गत इस सलाहकार समिति ने साल 2019 में हिमाचल प्रदेश की सरकार द्वारा रोपवे परियोजनाओं को छूट से जुड़े प्रस्ताव पर विचार किया था. जिसके बाद वन सलाहकार समिति ने कुछ अहम सिफारिश से भी की थी. इन्हीं सिफारिश को अब केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने लागू करने का निर्णय लिया है.

सलाहकार समिति ने रोपवे परियोजनाओं को विकास कार्यों के साथ वन एवं पर्यावरण के संरक्षण के लिए जरूरी माना. इसमें माना गया कि रोपवे परियोजनाओं से पर्यावरण को बेहद कम नुकसान होता है. पर्वतीय क्षेत्रों में दूसरे विकास कार्यों से भूस्खलन का खतरा रहता है, जबकि रोपवे परियोजनाएं ऐसे खतरों को कम करती हैं. केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के साल 2019 में वन सलाहकार समिति की सिफारिश को लागू करने के निर्णय के बाद अब रोपवे परियोजना में केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय की मंजूरी मिलना आसान हो जाएगा. अब तक रोपवे परियोजना जिन वन क्षेत्र से गुजरती थी उस पूरे इलाके के लिए लैंड ट्रांसफर और पर्यावरण संरक्षण से जुड़े विभिन्न नियमों का पालन करना होता था, लेकिन, अब इन परियोजनाओं को इससे छूट दी गई है. अब लैंड ट्रांसफर की ये औपचारिकता केवल रोपवे परियोजना के लिए लगने वाले टावर क्षेत्र के लिए ही पूरी करनी होगी. जिस क्षेत्र से रोपवे गुजरेगा वह क्षेत्र इस नियम के अंतर्गत नहीं माना जाएगा.

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