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हिमाचल में नशे का जाल लील रहा मां के लाल, चुनावी समर में सियासतदानों को ना फिक्र ना मलाल - Drugs in Himachal Pradesh - DRUGS IN HIMACHAL PRADESH

Drug Addiction Cases in Himachal Pradesh: हिमाचल प्रदेश में पिछले 3 सालों में 58 युवाओं की मौत ड्रग ओवरडोज से हो चुकी है. बीते दो सालों से औसतन 2000 मामले एनडीपीएस के दर्ज हो रहे हैं. कुछ जानकार उड़ता पंजाब के आइने में हिमाचल को भी देख रहे हैं क्योंकि हिमाचल में नशे का जाल फैलता जा रहा है और युवाओं को लील रहा है. लेकिन मौजूदा चुनावी समर में ये मुद्दा नेताओं की जुबान पर आया ही नहीं.

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By ETV Bharat Himachal Pradesh Team

Published : May 31, 2024, 4:56 PM IST

Updated : May 31, 2024, 5:20 PM IST

शिमला/सिरमौर: "इसी साल 7 फरवरी को मेरा 23 साल का जवान बेटा विवेक गांव गया था. जहां नशे के ओवरडोज की वजह से उसकी मौत हो गई. उसे चिट्टे की लत थी, जो आखिरकार उसकी जान लेकर ही छूटी". ये बयां करते वक्त कांता देवी की आंखे भर आती हैं लेकिन उसे अपना नाम जगजाहिर करने और बेटे की गलत लत के बारे में बताने में कोई हिचकिचाहट नहीं है. हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिले के नाहन की कांता देवी जैसी ना जाने कितनी मांओं के लाल नशे के जाल में फंसकर अपनी जिंदगी के साथ-साथ परिवार को भी तबाह कर रहे हैं. कभी पंजाब इस नशे के लिए बदनाम था लेकिन अब हिमाचल वादियों में भी ये नशा घुल रहा है और पहाड़ की जवानी को बर्बाद कर रहा है.

कांता देवी का दर्द

"जिस बेटे को 9 महीने कोख में रखा, जन्म देने के लिए बेइंतहा दर्ज सहा और फिर तमाम दुश्वारियों के बाद उसे पाल पोसकर बड़ा किया वो महज 23 साल की उम्र में चला गया". कांता देवी का ये दर्द उन्हें जिंदगीभर सालता रहेगा. चार बेटों की मां कांतादेवी को बेटे विवेक की मौत के बाद इस बात का शुक्र है कि दो बेटे शराब पीते हैं लेकिन चिट्टे जैसे ड्रग्स से दूर हैं. बीपीएल परिवार से ताल्लुक रखने वाले इस परिवार में उनके बीमार पति, बहुएं और चार पोतियां भी हैं. घर का खर्च बड़ी मुश्किल से चल पाता है, इसके लिए कुछ बेटे मदद करते हैं तो कातां भी लोगों के घरों में काम करके गुजारा कर रही है. पति को सांस की तकलीफ है, महीने में ऑक्सीजन और दवाओं का खर्च मुश्किलों के पहाड़ को और ऊंचा कर देता है. वो मदद के लिए सरकार से लेकर नेताओं और सामाजिक संस्थाओं से भी गुहार लगाती हैं.

कांता देवी के बेटे की मौत ड्रग ओवरडोज से हुई ((ETV Bharat))

ऐसे मामलों में लोकलाज के डर से कई लोग सामने नहीं आते. कांता देवी का दर्द सिर्फ एक मां ही समझ सकती है और वो चाहती हैं कि जैसा उसके साथ हुआ वो किसी और के साथ ना हो. लेकिन कांता अपने बेटे की गलती को छिपाने की बजाय खुलकर सामने आई हैं. वो कहती हैं कि किसी ना किसी को तो आगे आना ही होगा. पुलिस प्रशासन और सरकार को नशा कारोबारियों के खिलाफ सख्त से सख्त एक्शन लेना होगा. नहीं तो जवान बेटे यूं ही जान गंवाते रहेंगे और परिवार बर्बाद होते रहेंगे. घर के किसी एक सदस्य का नशे का आदी होना कई जिंदगियों को तबाह कर देता है.

कांता देवी मानती हैं कि सरकारी नशा मुक्ति केंद्रों की जरूरत है क्योंकि प्राइवेट सेंटर्स का खर्च उठाना हर किसी के बस की बात नहीं है. सिरमौर में अखिल भारतीय जनवादी महिला समिति की पूर्व अध्यक्ष संतोष कपूर ने बढ़ते नशे के खिलाफ चिंता जताती हैं. बतौर सामाजिक कार्यकर्ता वो और उनका संगठन नशे के खिलाफ अभियान छेड़ते रहे है. वो कहती हैं कि नशे का असर सिर्फ युवाओं पर नहीं उनके परिवारों पर भी पड़ता है. अवैध नशे के कारोबार और उससे जुड़े लोगों पर शिकंजा कसने पर वो जोर देती हैं. खासकर बाहरी राज्यों से होने वाली नशा तस्करी को रोकने की सख्त जरूरत है.

हिमाचल में नशा ले रहा युवाओं की जान (सांकेतिक तस्वीर)

3 साल में ड्रग ओवरडोज से 58 युवाओं की मौत

हिम के आंचल हिमाचल में अब नशे का जाल अपनी जड़ें फैला रहा है और प्रदेश के युवा इस जाल में फंसते जा रहे हैं. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक पिछले 3 साल में हिमाचल प्रदेश के 58 युवा ड्रग ओवरडोज से अपनी जान गंवा चुके हैं. कांगड़ा से लेकर ऊना और बिलासपुर से लेकर सोलन तक युवाओं की मौत के मामले सामने आ चुके हैं. हिमाचल का शायद ही कोई जिला ऐसा बचा हो जहां नशे की जद में युवा ना हों. मई महीने की 15 तारीख को ही कांगड़ा के ठाकुरद्वारा में 27 साल के युवक की लाश मिली, जिसके पास नशे की सिरिंज पड़ी हुई मिली. परिवार का इकलौता बेटा नशे की भेंट चढ़ गया. पिता ने दर्जी का काम करके बेटे को पाला था लेकिन नशे ने सबकुछ छीन लिया. ऐसी कहानियां हिमाचल में बिखरी पड़ी हैं लेकिन ज्यादातर लोग शर्म के मारे सामने नहीं आते.

"स्थिति और ज्यादा भयावह है"

सरकारी आंकड़ों में मौत की गिनती हमेशा कम ही होती है. नशे के खिलाफ दशकों से काम कर रहे सामाजिक कार्यकर्ता जीयानंद शर्मा कहते हैं कि नशे की ओवरडोज से मौत का आंकड़ा और भी ज्यादा हो सकता है. नशे को लेकर हालात बहुत ही डराने वाले हैं. घर से दूर रहकर पढ़ाई या छोटी-मोटी नौकरी करने वाले युवा नशा के सौदागरों के निशाने पर रहते हैं.

गौरतलब है कि प्रदेश के सबसे बड़े शिक्षण संस्थानों में से एक NIT हमीरपुर में साल 2023 में एक छात्र की नशे के ओवरडोज से मौत हो गई. जांच में खुलासा हुआ कि नशा तस्करों की पहुंच हॉस्टल तक थी. ये वाकया सोचने पर मजबूर करता है और सरकार से लेकर पुलिस के तमाम दावों को अंगूठा दिखाता है. नशे के ओवरडोज से मौत की मनहूस ख़बरें मानो आम हो चली है. नशे की खेप और उसके साथ गिरफ्तारी की खबरों से अखबार अटे रहते हैं लेकिन युवाओं के नाम पर सियासत का झंडा बुलंद करने वाले नेताओं की जुबान पर इस मसले को लेकर ताला लटका है.

हिमाचल में नशे के खिलाफ एनडीपीएस के मामले (ETV Bharat GFX)

चुनावी शोर में नशे का मुद्दा गायब

देशभर में लोकसभा चुनाव का शोर है और हिमाचल प्रदेश में 7वें और सबसे अंतिम चरण में 1 जून को मतदान है. 6 विधानसभा की सीटों पर भी उपचुनाव होना है. तारीखों का ऐलान 16 मार्च को ही हो गया था. यानी प्रचार करने का सबसे ज्यादा मौका हिमाचल के प्रत्याशियों और नेताओं को मिला. करीब दो महीने से ज्यादा हिमाचल की गलियां सियासी नारों से गूंजती रही. जगह-जगह मंच सजे, जनसभाएं हुई, रोड शो हुए लेकिन नशे का मुद्दा गुमशुदा ही रहा. बड़े-बड़े सियासी दलों ने स्टार प्रचारकों को लंबी-लंबी फेहरिस्त निकाली, बड़े-बड़े नेता प्रचार के मैदान में पहुंचे थे. लेकिन मजाल है कि किसी की भी जुबान से हिमाचल के बर्बाद होते युवाओं का जिक्र या फिक्र हो. सियासतदान माइक के आगे एक-दूसरे पर छींटाकशी और पर्सनल अटैक करते रहे. कुछ खुद की पीठ थपथपाकर चले गए तो कुछ इतिहास के सियासतदानों को कोसकर आगे बढ़ गए. कुल मिलाकर हिमाचल के नेताओं से लेकर दिल्ली में देश और पार्टियों की नुमाइंदगी करने वालों की जुबान पर इस मसले पर ताला लटका रहै. बेतुकी और बेफिजूल की बयानबाजी में नशे का मसला गायब रहा.

हिमाचल में हर साल दर्ज होने वाले NDPS के मामले (ETV Bharat GFX)

'उड़ता पंजाब' की राह पर है हिमाचल ?

कुछ साल पहले 'उड़ता पंजाब' नाम की फिल्म में पड़ोसी राज्य पंजाब में नशे की गर्त में फंसी लगभग पूरी पीढ़ी का जिक्र था. सवाल है कि क्या हिमाचल भी धीरे-धीरे उस राह पर चल रहा है ? हिमाचल प्रदेश हाइकोर्ट ने नशे को लेकर बीते 10 सालों में राज्य सरकार को कई आदेश पारित किए हैं. हाइकोर्ट एक बार केंद्र सरकार को नशा तस्करों को मौत की सजा का कानून बनाने का आदेश भी दे चुका है. अदालत ने सरकारों को 'उड़ता पंजाब' की तर्ज पर हिमाचल की हालत का भी जिक्र किया का जिक्र भी कर चुकी है. पुलिस भी नशे के खिलाफ अभियान चलाने का दावा तो करती है लेकिन नशा तस्करी के आंकड़े साल दर साल बढ़ रहे हैं. पुलिस अभियान भी इसकी वजह हो सकते हैं लेकिन ये आंकड़े बताते हैं कि हिमाचल नशा कारोबारियों के निशाने पर है. इसकी एक वजह हिमाचल का पर्यटन राज्य होना भी है.

हिमाचल प्रदेश में NDPS एक्ट के तहत नशे के मामलों का आंकड़ा देखें तो बीते करीब एक दशक में औसतन हर साल मामलों में इजााफा ही हुआ है. साल 2014 में 644 मामले दर्ज हुए जो 2015 में कुछ कम होकर 622 हुए. फिर साल 2016 में हिमाचल पुलिस ने पुलिस ने 929 मामले NDPS एक्ट के तहत दर्ज किए. साल 2017 में ये आंकड़ा एक हजार के पार पहुंच गया और इस साल 1010 मामले दर्ज हो गए. 2018 में 1342 मामले, 2019 में 1400 से ज्यादा, साल 2020 में 1377, साल 2021 में 1392, साल 2022 में 1517 और बीते साल 2023 में एनडीपीएस के तहत 2147 मामले दर्ज हुए. जो अब तक रिकॉर्ड है.

हिमाचल प्रदेश में नशा तस्करी के बढ़ते मामले (सांकेतिक तस्वीर)

कैसे टूटेगा नशे का जाल ?

कांता देवी जैसी मां के लिए सबसे बड़ा दर्द यही है कि उन्हें अब इसके साथ जिंदगी बितानी है. लेकिन ये एक मां का हौसला ही है जो उसे आगे बढ़कर इस नशे के खिलाफ आवाज बुलंद करने की हिम्मत दे रहा है. कांता देवी की सरकार और पुलिस से अपील है कि नशा तस्करों पर कड़ा एक्शन हो, इस जाल को फैलने से रोकें ताकि जो उसके साथ हुआ वो किसी और मां के साथ ना हो. कांता देवी सरकारी नशा मुक्ति केंद्रों की भी पैरवी करती हैं ताकि नशा छुड़ाने की राह में पैसा रोड़ा ना बने.

शिमला के एएसपी रहे सुनील नेगी बताते हैं कि नशे के मामलों में होने वाली काउंसलिंग के दौरान काफी चौंकाने वाली बातें सामने आती हैं. 18 से 20 साल के लड़के नशे के इतने आदी हो रहे हैं कि घर से पैसे, सामान और मां के गहने तक चुरा रहे हैं ताकि नशा खरीद सकें. नेगी कहते हैं कि पुलिस सख्ती के साथ नशे पर नकेल कसने में जुटी है लेकिन इसमें समाज से लेकर परिवार और स्कूल जैसे संस्थानों को भी अपनी भागीदारी निभानी होगी.

सामाजिक कार्यकर्ता जीयानंद के मुताबिक हिमाचल के जंगलों में नशे की सीरिंज बिखरी मिलती हैं. क्योंकि ये जंगल अब नशे के अड्डे बन रहे हैं. आईजीएमसी अस्पताल के एमएस रहे डॉ. रमेश चंद बताते हैं कि उनके पास ऐसे-ऐसे मामले आते हैं जिनमें मां-बाप रो-रोकर बेटे के नशे की लत का जिक्र करते हैं क्योंकि परिवार के एक सदस्य की लत से पूरा परिवार तबाह हो जाता है.

हर साल नशा तस्करी के हजारों मामले आते हैं (सांकेतिक तस्वीर)

सामाजिक कार्यकर्ता सत्यवान पुंडीर के मुताबिक चुनावी दौर खत्म हो चुका है और सियासी दलों या नेताओं ने नशे के खिलाफ कुछ भी नहीं कहा. बेरोजगार युवा आसानी से नशे की जद में आते हैं. ये स्थिति डराने वाली है क्योंकि बेरोजगारों की फौज बढ़ती जा रही है. तस्करों की नजर अब युवाओं के साथ-साथ स्कूल जाने वाले नौनिहालों पर भी है. ये सोचकर भी डर लगता है क्योंकि ऐसा हुआ तो दो से तीन पीढ़ियां इसकी जद में आ जाएंगी.

हिमाचल को करीब से जानने वाले वरिष्ठ पत्रकार नवनीत शर्मा कहते हैं कि पहाड़ की जवानी अगर यूं ही नशे के जाल में फंसती रही तो इसका असर सबको भुगतना पड़ेगा क्योंकि एक युवक का नशा करना या ओवरडोज से मौत होना पूरे परिवार को गर्त में धकेलता है. इसलिये सियासत और सरकारों का रोल तो अहम है ही समाज के सभी वर्गों को भी हाथ बढ़ाना होगा. क्योंकि पहले जहां सिर्फ पंजाब को नशे का गढ़ कहा जाता था अब ये धीरे-धीरे दूसरे राज्यों में भी जड़ें जमा चुका है.

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Last Updated : May 31, 2024, 5:20 PM IST

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