अशोकनगर: मेरे सपनों की उड़ान आसमां तक है, मुझे बनानी अपनी पहचान आसमां तक है. मैं कैसे हार मान लूं और थक कर बैठ जाऊं, मेरे हौसलों की बुलंदी आसमां तक है. युवा कवि तपस अग्रवाल की रचना की ये पंक्तियां जीवन को प्रेरित करने का सबसे अच्छा उदाहरण है, और इन्हीं पंक्तियों सा हौसला मध्य प्रदेश की एक 23 साल की बेटी दिखा रही है. जिसने इतनी कम उम्र में दुनिया के सातों महाद्वीप की सबसे ऊंची पर्वत चोटियों को झुकाने का, फतह करने का लक्ष्य बनाया है. मुस्कान रघुवंशी ने पहली बार में ऑस्ट्रेलिया की सबसे ऊंची छोटी माउंट कोस्कुईस्ज्को पर भारत का तिरंगा लहराया है. वह भी भारत के स्वतंत्रता दिवस के मौके पर.
किसान परिवार से आती है मुस्कान रघुवंशी
मध्य प्रदेश के छोटे से जिले अशोकनगर की रहने वाली मुस्कान रघुवंशी आज देश दुनियां में पहचान की मोहताज नहीं है. 23 साल की मुस्कान एक किसान की बेटी हैं. पिता रामकृष्ण रघुवंशी और मां ममता रघुवंशी अपनी बेटी की उपलब्धि से फूले नहीं समा रहे, क्योंकि घर से निकली बेटी विदेश की सबसे ऊंची पर्वत चोटी पर तिरंगा जो लहरा आयी है. गांव की गलियों से निकल कर कश्मीर से कन्याकुमारी की दूरी नापने के बाद गांव की ये छोरी देश के उन सबसे कम उम्र की पर्वतारोही है. जिसने ऑस्ट्रेलिया माउंट कोस्कुईस्ज्को पैरों से माप लिया.
पिता बनाना चाहते थे अफसर
मुस्कान रघुवंशी के पिता अपनी बेटी की इस उपलब्धि से गर्व महसूस कर रहे हैं. पेशे से किसानरामकृष्ण रघुवंशी ने ETV भारत से बातचीत के दौरान बताया कि 'मुस्कान में हमेशा से कुछ कर गुजरने की चाहत थी. जब वह बारहवीं कक्षा में थी, तो उसने स्पोर्ट्स में जाने की बात कही थी, लेकिन बेटी को पढ़ा लिखाकर अफसर बनाने की चाहत में उन्होंने इस बात पर ध्यान नहीं दिया. मुस्कान जब स्कूली शिक्षा पूरी कर चुकी थी, तो पिता ने उन्हें सरकारी नौकरी की तैयारी के लिए इंदौर भेजा, लेकिन इस बीच देश में कोरोना महामारी फैल गई तो ऐसे में मुस्कान को भी अपने माता पिता के पास घर वापस लौटना पड़ा.
कोरोना काल में फिट रहने शुरू की थी साइकिलिंग
उस दौरान मुस्कान के पिता लोगों की खस्ता हालत और ऑक्सीजन की कमी को देख रहे थे. उन्होंने जुगाड़ से ऑक्सीजन के सिलेंडरों का इंतजाम किया और घर में रहते ही घर के नीचे से किसी तरह ऑक्सीजन भरवा गैस सिलेंडर जरूरतमंद लोगों तक पहुंचाने शुरू किए. जिसने कोरोना का खौफ थोड़ा कम किया और लोगों की मदद करने के जज्बे ने उन्हें अस्पताल तक जाने की हिम्मत दी है, अपने पिता को इस तरह भागदौड़ करते देखा तो खुद में महसूस किया कि इतने दिनों से घर के अंदर बैठे-बैठे वह क्या कर रही है. उसने स्वस्थ शरीर की उम्मीद में साइकिलिंग शुरू की और कुछ समय बाद इसी में उसका मन लग गया, उसकी मेहनत भी तब रंग लाई जब OMG बुक ऑफ़ रिकॉर्ड्स में उसका नाम दर्ज हुआ.
जज्बा देख पिता ने दिया सहारा, तो नाप दिया भारत सारा
अपनी बेटी की पहली उपलब्ध देखने के बाद पिता को भरोसा हो गया कि उनकी बेटी अपने जीवन में कुछ अच्छा कर सकती है, इसलिए उन्होंने सरकारी नौकरी की तैयारी पर जोर न देते हुए उसकी रुचि में आगे बढ़ने में मदद करने के लिए आर्थिक रूप से सपोर्ट करना शुरू किया है. मुस्कान भी नारी सशक्तिकरण का संदेश देश दुनिया को देना चाहती है. इसलिए उसने नारी सशक्तिकरण की जागरुकता के लिए दूसरी बार में साइकिल से 3200 किलोमीटर की नर्मदा यात्रा की, इसके बाद कश्मीर से कन्याकुमारी तक का सफर 25 दिनों में अपनी साइकिल से तय किया. उसके इस मिशन का हर किसी ने सहयोग किया खुद तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भी उनकी मुहिम की तारीफ की थी.