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चुनावी मौसम में दल बदलते नेताजी, सीता सोरेन से लेकर बाबूलाल मरांडी तक इसमें शामिल, जानिए क्या है वजह - Defection In Jharkhand

Defection In Jharkhand. चुनाव का वक्त आते ही नेताओं का पाला बदलने का सिलसिला शुरू हो जाता है. इस बार भी पाला बदलने वालों में कई बड़े नाम शामिल हैं. इस रिपोर्ट में जानिए नेताओं के एक पार्टी से दूसरी पार्टी में जाने की क्या वजह होती है.

DEFECTION IN JHARKHAND
DEFECTION IN JHARKHAND

By ETV Bharat Jharkhand Team

Published : Mar 21, 2024, 6:33 PM IST

रांची:लोकसभा चुनाव का रंग चढ़ने लगा है. इसका असर भी दिख रहा है. वैसे तो समय के साथ राजनीति की दशा और दिशा भी बदली है. लेकिन एक दौर था जब किसी पार्टी या संगठन के प्रति वफादारी निभाते निभाते नेता अपना पूरा जीवन खपा देते थे. पार्टी के प्रति उनका समर्पण उनकी पहचान बन जाया करती थी. मगर अब न वो सोच रही और ना ही राजनीति की परिभाषा.

बदलते वक्त के साथ मानो इस पर भी तेजी से प्रोफेशनलिज्म हावी होने लगा है. जहां ज्यादा फायदा, वहां शिफ्टिंग. शायद यही वजह है कि चुनाव के वक्त राजनेताओं का पाला बदलना मौसम के जैसा हो गया है. इस बार भी लोकसभा चुनाव की घोषणा से पहले नेताओं के रंग बदलने लगे हैं. पूर्व में भी झारखंड में कई नेताओं को पाला बदलते देखा है.

झारखंड में होता रहा है पाला बदलने का खेल, भारतीय जनता पार्टी में भी खूब हुआ खेला

जिन बड़े नेताओं ने पाला बदला है उसमे सबसे बड़ा नाम है बाबूलाल मरांडी है. आज इनके पास प्रदेश भाजपा की कमान है. याद कीजिए 2006 का वह दौर जब डोमिसाइल विवाद की वजह से सीएम की कुर्सी गंवाने पर पार्टी में अलग-थलग पड़ने पर इन्होंने जेवीएम नाम से अपनी पार्टी बना ली थी. फिर वर्षों तक भाजपा को कोसते रहे.

जब लौटे तो यहां तक कह बैठे कि पार्टी दफ्तर में झाड़ू लगाने का भी काम मिला तो मेरे लिए सौभाग्य की बात होगी. आज के नेता प्रतिपक्ष अमर बाउरी, पूर्व प्रदेश अध्यक्ष रविंद्र राय और पूर्व प्रदेश अध्यक्ष दीपक प्रकाश भी कभी बाबूलाल की पंक्ति में पीछे खड़े थे. वापसी की तो बड़े बड़े ओहदे मिल गये. इस फेहरिस्त में नवीन जायसवाल का भी नाम है जो आजसू छोड़कर बीजेपी में आए.

फेहरिस्त में कई बड़े नाम

लोजपा के प्रदेश अध्यक्ष रहे बबन गुप्ता ने भी बीजेपी में राजनीतिक भविष्य की तलाश शुरू की थी. भानू प्रताप शाही, राधाकृष्ण किशोर, अनंत प्रताप देव, सुखदेव भगत, मनोज यादव जैसे नेता पाला बदलते रहे हैं. पिछले चुनाव में राजद की प्रदेश अध्यक्ष अन्नपूर्णा देवी ने ऐन वक्त पर पाला बदलकर बीजेपी का दामन थाम लिया था.

अन्नपूर्णा देवी बीजेपी के टिकट पर कोडरमा से सांसद बनीं और फिर इन्हें मोदी के मंत्रिमंडल में जगह मिल गई. हाल के दिनों में बीजेपी में शामिल होने वालों में कांग्रेस की गीता कोड़ा, राजद के घुरन राम शामिल हैं. अर्जुन मुंडा के अतीत को देखेंगे तो उनमें झामुमो की परछाई नजर आएगी. वर्तमान में जमशेदपुर से भाजपा के सांसद विद्युत वरण भी कभी झामुमो का हिस्सा थे. कुणाल षाडंगी भी इसी लिस्ट में शामिल हैं.

कांग्रेस में भी कई आए और गये

एनसीपी से कांग्रेस में अपना राजनीतिक सफर शुरू करने वाले राजेश ठाकुर इन दिनों प्रदेश अध्यक्ष हैं. जनता दल से भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में आकर राजनीतिक भविष्य तलाशने में सफल रहे सुबोधकांत सहाय तीन बार सांसद बने और केन्द्रीय मंत्रिमंडल में जगह बनाने में सफल रहे. निर्दलीय के रूप में राजनीति करने वाले बंधु तिर्की इन दिनों कांग्रेस के प्रभारी प्रदेश अध्यक्ष हैं. गीताश्री उरांव भी इनमें से एक हैं.

जिस पार्टी ने सुखदेव भगत को प्रदेश अध्यक्ष बनाया, उन्होंने भी 2019 में भाजपा ज्वाइन कर लिया था. बाद में बड़ी मुश्किल से घर वापसी की. इसी तरह प्रदेश अध्यक्ष रहे प्रदीप बलमुचू भी आजसू में चले गये थे. लेकिन देर सबेर ही सही कांग्रेस में लौट आए. कांग्रेस छोड़ चुकी थी लेकिन वापस आ गईं. पिछले दिनों बीजेपी के विधायक जे पी पटेल ने कांग्रेस का दामन थामा है.

झामुमो में भी खूब चला है उठापटक

हालिया उदाहरण तो सीता सोरेन का है. इन्होंने सोरेन परिवार से अलग होकर झारखंड की राजनीति में एक नया अध्याय लिख दिया है. कद्दावर नेता रहे हेमलाल मुर्मू भी कभी भाजपा में आए थे, लेकिन फिर अपने घर लौट गये. आज के झामुमो विधायक स्टीफन मरांडी ने भी कभी पार्टी छोड़ी थी और कांग्रेस में गये थे. सरफराज अहमद को कैसे भुलाया जा सकता है. बैद्यनाथ राम की कभी भाजपा में तूती बोलती थी. टिकट कटा तो झामुमो में चले गये. पिछले दिनों चंपाई कैबिनेट विस्तार में नाम भी शामिल था. लेकिन ऐन वक्त पर कट गया. खूब आग बबूला हुए. अब शांत पड़ गये हैं. गांडेय सीट से कांग्रेस ने विधायक बनाया था. लेकिन मौका देखकर झामुमो में आ गये. हेमंत सरकार फंसी तो कल्पना के नाम पर इन्होंने तो इस्तीफा देकर इतिहास कायम कर दिया. इसका फायदा भी मिला. झामुमो ने इन्हें राज्यसभा पहुंचा दिया है.

झारखंड में पार्टी बदलने में माहिर हैं राजनेता

झारखंड में राजनेताओं का दल बदल करना आम है. चुनाव के वक्त तो इनका उत्साह वैसा होता है कि जैसे नये घर में कोई शिफ्ट करने के वक्त. इस दल बदल के खेल में हर राजनीतिक दल से तालुकात रखने वाले राजनेता शामिल हैं. इन राजनीतिक दलों में क्षेत्रीय दल के साथ साथ राष्ट्रीय पार्टी से जुड़े लोग भी शामिल हैं. लंबी राजनीतिक अनुभव रखने वाले राधाकृष्ण किशोर सरीखे ऐसे कई राजनेता हैं जो जदयू, कांग्रेस,बीजेपी, आजसू और राजद में अपना राजनीतिक भविष्य तलाशते रहे.

क्या कहते हैं राजनीतिक विश्लेषक

राजनीतिक विश्लेषक अमरनाथ झा कहते हैं कि पार्टी बदलने के पीछे कई वजह हैं. पार्टी के अंदर आंतरिक राजनीति के साथ अपनी पहचान बनाने के लिए नेता दल बदल करते हैं. जिससे उन्हें लाभ का पद नये दल में किसी न किसी रूप में मिल जाता है.

वहीं, झारखंड हाईकोर्ट के अधिवक्ता सत्यप्रकाश मिश्रा कहते हैं कि लोकसभा और विधानसभा चुनाव की बात तो दूर झारखंड के राजनेता जो विधायक सांसद चुने जाते हैं वो राज्यसभा चुनाव और सरकार बनाने बिगाड़ने के खेल में दल से हटकर काम करते हैं. समय के साथ नैतिकता की बात तो दूर निजी स्वार्थ राजनेताओं पर जमकर हावी है. ऐसे में दल के बजाय हमेशा अपनी पहचान कैसे बनी रहे इस पर यह काम करते हैं.

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