रामगढ़ जिले के बरकाकाना के बुजुर्ग जमीरा स्थित चाइना कब्रिस्तान पर ताइवान के तीन प्रतिनिधि पहुंचे. नई दिल्ली स्थित ताइपे आर्थिक एवं सांस्कृतिक केंद्र से तीन सदस्यीय अधिकारियों का दल पहुंचकर कब्रिस्तान परिसर का अवलोकन किया. इसके साथ ही बौद्ध मंदिर में सामूहिक रूप से पूजा-अर्चना कर कैंडल जलाया. अधिकारियों ने परिसर में हो रहे जीर्णोद्धार कार्य का निरीक्षण भी किया.
ताइवान के इस प्रतिनिधिमंडल में मिस्टर एरीक, मिस्टर वांग, मिसेज शॉ और डेविड चेन शामिल थे. बरकाकाना के चाइना कब्रिस्तान पहुंचने पर दल ने ध्यान स्थल पर कैंडल व अगरबत्ती जला कर द्वितीय विश्व युद्ध में मारे गए सैनिकों को याद कर उनकी आत्मा की शांति के लिये प्रार्थना की. हालांकि इस दौरान अधिकारियों ने कैमरे के सामने कुछ भी बोलने से इनकार किया.
ताइवान एंबेसी से हर साल यहां अधिकारी आते हैं और यहां का जायजा लेते हैं. साथ ही साथ साफ-सफाई, रखरखाव की भी जानकारी वे लोग लेते हैं. वर्तमान समय में साफ-सफाई के साथ-साथ कब्रिस्तान क्षेत्र में चल रहे रिपेयर व सुंदरीकरण कार्यों का निरीक्षण कर संवेदक को आवश्यक दिशा-निर्देश भी दिया.
बता दें कि द्वितीय विश्व युद्ध की स्मृतियां रामगढ़ जिला मुख्यालय से करीब 8 किलोमीटर दूर बुजुर्ग जमीरा के समीप चाइना कब्रिस्तान के रूप में आज भी मौजूद है. पूरे भारत में रामगढ़ के अलावा अरुणाचल प्रदेश और असम में भी इस युद्ध की स्मृतियां मौजूद हैं. चीन और ताइवान से कोसों दूर झारखंड की धरती में इन सैनिकों की कब्र के दर्शन के लिए हर साल परिजन आते हैं और उन्हें याद करते हैं.
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान रामगढ़ में चीनी सैनिकों का बटालियन कैंप था. करीब एक लाख चीनी सैनिक यहां रहते थे. ये सैनिक विश्व युद्ध के दौरान भारत के सैनिकों के साथ जापान के सैनिकों के खिलाफ युद्ध भी लड़े थे. चार साल के प्रवास के दौरान कई चीनी सैनिक असमय मौत के शिकार हो गए थे. उन्हें रामगढ़ में ही दफन कर दिया गया था. सभी कब्रों पर सैनिकों के नाम और पद मंदारिन भाषा में अंकित हैं. कब्रिस्तान में एक शिलालेख भी है. जिसपर चीनी सैनिकों की बहादुरी और वीरता की कहानी लिखी गई है. चाइना कब्रिस्तान में एक बौद्ध मंदिर और युद्ध स्मारक के रूप में एक विशाल स्तंभ स्थापित है.
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