नई दिल्ली:पूर्व पार्षद और फरवरी 2020 के दिल्ली दंगों के आरोपी ताहिर हुसैन की अंतरिम जमानत याचिका पर 28 जनवरी को तीन जजों की बेंच के समक्ष सुनवाई होगी. इससे पहले सुप्रीम कोर्ट की दो जजों की बेंच द्वारा विभाजित फैसला सुनाया गया था. उनकी याचिका पर नए सिरे से सुनवाई होगी. 24 फरवरी 2020 को उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हिंसा भड़क उठी थी, जिसमें 53 लोग मारे गए थे और कई घायल हुए थे.
हुसैन ने राजधानी में अगले महीने होने वाले विधानसभा चुनावों के लिए प्रचार करने के मद्देनजर अंतरिम जमानत की मांग करते हुए शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया. 22 जनवरी को हुसैन को अंतरिम जमानत नहीं मिल सकी, क्योंकि न्यायमूर्ति पंकज मिथल और अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की दो जजों की पीठ ने विभाजित फैसला सुनाया. न्यायमूर्ति मिथल ने हुसैन को अंतरिम जमानत देने से इनकार कर दिया, हालांकि न्यायमूर्ति अमानुल्लाह ने कहा कि उन्हें अंतरिम जमानत पर रिहा किया जा सकता है. हुसैन की याचिका पर 28 जनवरी को न्यायमूर्ति विक्रम नाथ, न्यायमूर्ति संजय करोल और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ के समक्ष सुनवाई होगी.
दो जजों की बेंच ने पाया कि मौजूदा मामले में याचिकाकर्ता के खिलाफ आरोप सिर्फ दंगों से ही नहीं बल्कि गृह मंत्रालय के अधिकारी की हत्या से भी जुड़े हैं. जस्टिस मिथल ने अपनी राय में कहा कि यह आरोप लगाया गया है कि उनके घर/दफ्तर का इस्तेमाल उपरोक्त अपराधों को अंजाम देने के लिए केंद्र के तौर पर किया जा रहा था, जिसमें गृह मंत्रालय के अधिकारी अंकित शर्मा की हत्या भी शामिल है.
न्यायमूर्ति मिथल ने कहा कि वर्तमान मामले पीएमएलए से संबंधित एक और 2020 के दिल्ली दंगों से संबंधित नौ मामलों सहित ग्यारह मामलों में हुसैन की संलिप्तता, एक कानून का पालन करने वाले नागरिक के रूप में उनकी स्थिति को कमजोर और नष्ट करती है. न्यायमूर्ति मिथल ने कहा, 'समय आ गया है कि भारत के नागरिक स्वच्छ भारत के हकदार हों, जिसका अर्थ स्वच्छ राजनीति भी है. इस उद्देश्य के लिए यह आवश्यक है कि दागी छवि वाले लोग, विशेषकर जो हिरासत में हैं, जिन्हें जमानत नहीं दी गई है, जो विचाराधीन हैं, भले ही वे जेल से बाहर हों, उन्हें किसी न किसी तरह से चुनाव में भाग लेने से प्रतिबंधित किया जाए.'