आम तौर पर चैत के महीनों में पकने वाले काफल पर इस सीजन में गर्मी और मौसम की मिली जुली मार पड़ी है. जिसके कारण काफल की 'मिठास' फीकी हो गई है. हर बीतते साल के साथ काफल कहीं गुम से होते जा रहे हैं. जिससे पहाड़ के गांवों में सीजनल रोजगार भी छीन गया है.उत्तराखंड के पहाड़ी जिलों में पाया जाने वाला 'काफल' पहाड़ के लिए सिर्फ एक फल नहीं है, बल्कि इसमें उत्तराखंड के साहित्य और संस्कृति की भी झलक मिलती है. जिसके कारण इसकी मिठास कम होने से पहाड़वासियों के चेहरे पर भी मायूसी छाई हुई है.