श्रीनगर: पेशावर कांड के नायक और स्वतंत्रता सेनानी वीर चन्द्र सिंह गढ़वाली की पुण्य तिथि पर एक अक्टूबर को केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह पीठसैंण आयेंगे. केन्द्रीय रक्षा मंत्री वीर चन्द्र सिंह गढ़वाली के पैतृक गांव में उनकी स्मृति में मूर्ति का अनावरण एवं स्मारक का लोकार्पण कर श्रद्धांजलि अर्पित करेंगे.
इसके अलावा राजनाथ सिंह सहकारिता विभाग के अंतर्गत राज्य सरकार द्वारा संचालित दीनदयाल उपाध्याय योजना के तहत पांच लाख रुपए तक का ब्याज मुक्त ऋण के चेक महिला स्वयं सहायता समूहों को वितरित करेंगे. साथ ही राठ विकास अभिकरण के तत्वाधान घसियारी कल्याण योजना का शुभारम्भ कर स्थानीय ग्रामीण महिलाओं को घसियारी किट भी देंगे. उत्तराखंड सरकार में कैबिनेट मंत्री धन सिंह रावत ने ये जानकारी दी है.
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कैबिनेट मंत्री धन सिंह रावत ने कहा कि केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह आगामी एक अक्टूबर को पेशावर कांड के नायक, स्वतंत्रता सेनानी और उत्तराखंड की महान विभूति वीर चन्द्र सिंह गढ़वाली की पुण्य तिथि पर पौड़ी जनपद स्थिति उनके पैतृक गांव पीठसैंण आयेंगे.
डॉ. रावत ने बताया कि स्वाधीनता आंदोलन में वीर चन्द्र सिंह गढ़वाली के योगदान को चिर स्मरणीय बनाये रखने के लिए उनके पैतृक गांव में रक्षामंत्री राजनाथ सिंह उनकी मूर्ति का अनावरण करेंगे. इसके साथ ही उनके स्मारक का भी लोकार्पण केन्द्रीय मंत्री द्वारा किया जायेगा.
डॉ. रावत ने बताया कि इस अवसर पर केन्द्रीय रक्षामंत्री राठ विकास अभिकरण के अंतर्गत संचालित घसियारी कल्याण योजना का शुभारम्भ भी करेंगे. इस योजना के तहत क्षेत्र की 25 हजार ग्रामीण महिलाओं को घसियारी किट वितरित की जाने की योजना है, जिसमें दो कुदाल, दो दरांती, रस्सी, एक टिफिन बॉक्ट, पानी की बोतल और एक किट बैग शामिल है.
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ग्रामीण महिलाएं अपनी रोजमर्रा की दिनचर्या के दौरान आवश्यकतानुसार इनका इस्तेमाल कर सकेंगी. इस योजना को लेकर स्थानीय महिलाओं में खासा उत्साह है. इसके अलावा सहकारिता विभाग के अंतर्गत दीनदयाल उपाध्याय योजना के तहत रक्षामंत्री द्वारा महिला समूहों को पांच लाख रुपए तक के ब्याज मुक्त ऋण के चेक वितरित किये जायेंगे, ताकि महिलाएं स्थानीय स्तर पर अपने स्वरोजगार को गति दे सकें.
कौन थे वीर चन्द्र सिंह गढ़वाली: चन्द्र सिंह गढ़वाली का जन्म 25 दिसम्बर 1891 में हुआ था. चन्द्र सिंह के पूर्वज चौहान वंश के थे, जो मुरादाबाद में रहते थे. काफी समय पहले ही वह गढ़वाल की राजधानी चांदपुरगढ़ी में आकर बस गये थे. यहां के थोकदारों की सेवा करने लगे थे. चन्द्र सिंह के पिता का नाम जलौथ सिंह भंडारी था, जो एक किसान थे.
प्रथम विश्वयुद्ध भी लड़ा: 3 सितम्बर 1914 को चन्द्र सिंह सेना में भर्ती होने के लिये लैंसडाउन पहुंचे थे. 1915 में प्रथम विश्वयुद्ध में ब्रिटिश सेना ने भारत की तरफ से उन्हें गढ़वाली सैनिकों के साथ फ्रांस भेज था, जहां से वे 1 फरवरी 1916 को वापस लैंसडाउन आ गये थे. प्रथम विश्व युद्ध के दौरान ही 1917 में चन्द्र सिंह ने अंग्रेजों की ओर से मेसोपोटामिया के युद्ध में भाग लिया, जिसमें अंग्रेजों की जीत हुई थी. 1918 में बगदाद की लड़ाई में भी हिस्सा लिया था.
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महात्मा गांधी के सम्पर्क में आए: प्रथम विश्व युद्ध समाप्त हो जाने के बाद अंग्रेजों द्वारा कई सैनिकों को निकालना शुरू कर दिया और जिन्हें युद्ध के समय तरक्की दी गयी थी उनके पदों को भी कम कर दिया गया. इसमें चन्द्र सिंह भी थे. इन्हें भी हवलदार से सैनिक बना दिया गया था, जिस कारण इन्होंने सेना को छोड़ने का मन बना लिया. लेकिन उच्च अधिकारियों द्वारा इन्हें समझाया गया कि इनकी तरक्की का खयाल रखा जायेगा और इन्हें कुछ समय का अवकाश भी दे दिया. इसी दौरान चन्द्र सिंह महात्मा गांधी के सम्पर्क में आये.
1920 में बजीरिस्तान भेजा गया: कुछ समय पश्चात चन्द्र सिंह को बटालियन समेत 1920 में बजीरिस्तान भेजा गया. जिसके बाद इनकी पुनः तरक्की हो गयी. वहां से वापस आने के बाद चन्द्र सिंह का ज्यादा समय आर्य समाज के कार्यकर्ताओं के साथ बीता और उनके अंदर स्वदेश प्रेम का जज्बा पैदा हो गया, लेकिन अंग्रेजों को यह रास नहीं आया और उन्होंने इन्हें खैबर दर्रे के पास भेज दिया. इस समय तक चन्द्रसिंह हवलदार मेजर के पद पर पहुंच गए थे.
इसीलिए पड़ा गढ़वाली नाम: उस समय पेशावर में स्वतंत्रता संग्राम की लौ पूरे जोरशोर के साथ जली हुई थी. अंग्रेज इसे कुचलने की पूरी कोशिश कर रहे थे. इसी काम के लिये 23 अप्रैल 1930 को चन्द्र सिंह को पेशावर भेज दिया गया. चन्द्र सिंह गढ़वाली को आदेश दिया गया कि वे आंदोलनरत जनता पर हमला कर दें, लेकिन चन्द्र सिंह गढ़वाली ने निहत्थी जनता पर गोली चलाने से साफ मना कर दिया. इसी ने पेशावर कांड में गढ़वाली बटालियन को एक ऊंचा दर्जा दिलाया. इसी के बाद से चन्द्र सिंह को चन्द्र सिंह गढ़वाली का नाम मिला और इनको पेशावर कांड का नायक माना जाने लगा.
अंग्रेजों ने दी सजा: अंग्रेजों की आज्ञा न मानने के कारण इन सैनिकों पर मुकदमा चला. गढ़वाली सैनिकों की पैरवी मुकुन्दी लाल द्वारा की गयी, जिन्होंने अथक प्रयासों के बाद इनके मृत्युदंड की सजा को कैद की सजा में बदल दिया. इस दौरान चन्द्र सिंह गढ़वाली की सारी सम्पत्ति जब्त कर ली गई और इनकी वर्दी को इनके शरीर से काट-काट कर अलग कर दिया गया.
11 साल जेल में रहे: 1930 में चन्द्रसिंह गढ़वाली को 14 साल के कारावास के लिये ऐबटाबाद की जेल में भेज दिया गया. जिसके बाद इन्हें अलग-अलग जेलों में स्थानान्तरित किया जाता रहा. लेकिन इसी बीच इनकी सजा कम कर दी गई और 11 साल के कारावास के बाद उन्हें 26 सितम्बर 1941 को आजाद कर दिया गया. हालांकि इन पर कुछ पांबदिया भी लगा दी गईं. इसी वजह से ये अपने पैतृव गांव नहीं आ पाए और इधर-उधर भटकते रहे.
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भारत छोड़ो आंदोलन से जुड़े: आखिर में चन्द्र सिंह गढ़वाली वर्धा में महात्मा गांधी के पास चले गए. गांधी जी चन्द्र सिंह गढ़वाली से काफी प्रभावित थे. 8 अगस्त 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में इन्होंने इलाहाबाद में रहकर इस आंदोलन में सक्रिय भागीदारी निभाई. फिर से 3 तीन साल के लिये जेल भेजे गए. हालांकि 1945 में इन्हें आजाद कर दिया गया.
आजाद भारत में चुनाव लड़ा: 22 दिसम्बर 1946 में कम्युनिस्टों के सहयोग के कारण चन्द्र सिंह फिर से गढ़वाल में प्रवेश कर सके. 1967 में इन्होंने कम्युनिस्ट उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा पर उसमें इन्हें सफलता नहीं मिली. 1 अक्टूबर 1979 को चन्द्रसिंह गढ़वाली का लम्बी बीमारी के बाद निधन हो गया था. 1994 में भारत सरकार द्वारा उनके सम्मान में एक डाक टिकट भी जारी किया गया, कई सड़कों के नाम भी उनके नाम पर रखे गये.