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वैदिक मंत्रोच्चार के साथ भगवान तुंगनाथ के कपाट शीतकाल के लिए बंद

भगवान तुंगनाथ मंदिर के कपाट बुधवार (चार नवंबर) को सुबह 11.30 बजे विधि-विधान के साथ शीतकाल के लिए बंद हो गए हैं. 6 नवंबर को भगवान तुंगनाथ की चल विग्रह उत्सव डोली भनकुण्ड से रवाना होगी और शुभ लगनानुसार अपने शीतकालीन गद्दीस्थल मार्कडेय तीर्थ तुंगनाथ मंदिर मक्कूमठ में विराजमान होगी.

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तृतीय केदार भगवान तुंगनाथ मंदिर
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Published : Nov 4, 2020, 5:14 PM IST

रुद्रप्रयाग: तृतीय केदार भगवान तुंगनाथ मंदिर के कपाट बुधवार (चार नवंबर) को सुबह 11.30 बजे विधि-विधान के साथ शीतकाल के लिए बंद हो गए हैं. इस अवसर पर बड़ी संख्या में श्रद्धालु ने बाबा भोलेनाथ का आशीर्वाद लिया और ढोल दमाऊ की थाप पर नृत्य किया.

भगवान तुंगनाथ के कपाट शीतकाल के लिए बंद.

विजय दशमी के पावन पर्व पर भगवान तृतीय केदार तुंगनाथ के कपाट बंद करने की तिथि और समय निर्धारित की गई थी. इसी परम्परा के तहत बुधवार सुबह ब्रह्मबेला पर कपाट बंद करने की तैयारियां शुरू की गयी. विद्वान आचार्यों, हक-हकूकधारियों और वेदपाठियों ने भगवान तुंगनाथ के स्वयंभू लिंग की विशेष पूजा-अर्चना कर जलाभिषेक किया. इसके बाद विशेष आरती की गई. ठीक दस बजे भगवान तुंगनाथ के स्वयंभू लिंग को चन्दन, भस्म, भृंगराज, पुष्प और अक्षत्र से समाधि दी गयी. इसके बाद 11 बजकर 30 मिनट पर भगवान तुंगनाथ के कपाट पौराणिक परम्पराओं और रीति-रिवाजों के साथ शीतकाल के लिए बंद कर दिए गए.

पढ़ें- आज एक घंटा है करवा चौथ पूजा का शुभ मुहूर्त, राश‍ि अनुसार ऐसे करें श्रृंगार

प्रथम रात्रि प्रवास के लिए चोपता पहुंचेगी. पांच नवंबर को चोपता से प्रस्थान कर बनियाकुण्ड, दुगलबिट्टा, पवधार, मक्कूबैण्ड, डूण्डू, वनातोली होते अंतिम रात्रि प्रवास के लिए भनकुण्ड पहुंचेगी. उन्होंने बताया कि 6 नवंबर को भगवान तुंगनाथ की चल विग्रह उत्सव डोली भनकुण्ड से रवाना होगी और शुभ लगनानुसार अपने शीतकालीन गद्दीस्थल मार्कडेय तीर्थ तुंगनाथ मंदिर मक्कूमठ में विराजमान होगी.

रुद्रप्रयाग: तृतीय केदार भगवान तुंगनाथ मंदिर के कपाट बुधवार (चार नवंबर) को सुबह 11.30 बजे विधि-विधान के साथ शीतकाल के लिए बंद हो गए हैं. इस अवसर पर बड़ी संख्या में श्रद्धालु ने बाबा भोलेनाथ का आशीर्वाद लिया और ढोल दमाऊ की थाप पर नृत्य किया.

भगवान तुंगनाथ के कपाट शीतकाल के लिए बंद.

विजय दशमी के पावन पर्व पर भगवान तृतीय केदार तुंगनाथ के कपाट बंद करने की तिथि और समय निर्धारित की गई थी. इसी परम्परा के तहत बुधवार सुबह ब्रह्मबेला पर कपाट बंद करने की तैयारियां शुरू की गयी. विद्वान आचार्यों, हक-हकूकधारियों और वेदपाठियों ने भगवान तुंगनाथ के स्वयंभू लिंग की विशेष पूजा-अर्चना कर जलाभिषेक किया. इसके बाद विशेष आरती की गई. ठीक दस बजे भगवान तुंगनाथ के स्वयंभू लिंग को चन्दन, भस्म, भृंगराज, पुष्प और अक्षत्र से समाधि दी गयी. इसके बाद 11 बजकर 30 मिनट पर भगवान तुंगनाथ के कपाट पौराणिक परम्पराओं और रीति-रिवाजों के साथ शीतकाल के लिए बंद कर दिए गए.

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प्रथम रात्रि प्रवास के लिए चोपता पहुंचेगी. पांच नवंबर को चोपता से प्रस्थान कर बनियाकुण्ड, दुगलबिट्टा, पवधार, मक्कूबैण्ड, डूण्डू, वनातोली होते अंतिम रात्रि प्रवास के लिए भनकुण्ड पहुंचेगी. उन्होंने बताया कि 6 नवंबर को भगवान तुंगनाथ की चल विग्रह उत्सव डोली भनकुण्ड से रवाना होगी और शुभ लगनानुसार अपने शीतकालीन गद्दीस्थल मार्कडेय तीर्थ तुंगनाथ मंदिर मक्कूमठ में विराजमान होगी.

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