रुद्रप्रयाग: उत्तराखंड की संस्कृति और आस्था की पहचान भगवान तृतीय केदार भगवान तुंगनाथ की डोली यात्रा इन दिनों मद्महेश्वर घाटी से गुजर रही है. साथ ही श्रद्धालु डोली यात्रा का जोरदार स्वागत कर सुख-समृद्धि का आशीर्वाद मांग रहे हैं. भक्त दुर्गम रास्तों और नदी नालों में जान जोखिम में डालकर भगवान तुंगनाथ की डोली को ले जाते दिखाई दिए.
गौर हो कि सोमवार को भगवान तुंगनाथ की डोली राकेश्वरी मंदिर रांसी पहुंचेगी. जहां 18 वर्षो बाद भगवती राकेश्वरी और भगवान तुंगनाथ का अदभुत मिलन होगा. बता दें कि शीतकालीन गद्दीस्थल मार्कडेय तीर्थ मक्कूमठ से दस जनवरी से शुरू हुई भगवान तुंगनाथ की दूसरे चरण की उत्तर दिवारा यात्रा इन दिनों मद्महेश्वर घाटी का भ्रमण कर रही है. देवरा यात्रा विभिन्न गांवों में जाकर भक्तों को आशीर्वाद दे रहे है और भक्त पुष्प वर्षा से देव डोली का स्वागत कर रहे हैं.
दुर्गम रास्तों पर भक्त नदी में उतरकर डोली को पार करवा रहे हैं. श्रद्धालुओं की इस आस्था को देखकर हर कोई हैरान है. देव डोली यात्रा में भक्त आज भी पौराणिक मान्यताओं का निर्वहन करते हुए अटूट श्रद्धा के साथ परम्पराओं का निर्वहन कर रहे हैं.
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वहीं 18 वर्षों बाद भगवती राकेश्वरी और भगवान तुंगनाथ का अदभुत मिलन होगा. जिसके साक्षी मदमहेश्वर घाटी के हजारों श्रद्धालु बनेंगे. हर दिन प्रातः काल पंचांग पूजन के तहत पृथ्वी, कुबेर, गणेश, सूर्य, अग्नि, दुर्गा, कार्तिकेय सहित तैतीस करोड़ देवी-देवताओं का आह्नवान किया जाता है. भगवान तुंगनाथ की डोली और दिवारा यात्रा में साथ चल रहे अनेक देवी-देवताओं के निशानों का भक्त रुद्राभिषेक कर आरती उतारते हैं.
मान्यता है कि भगवान तुंगनाथ की आरती शुरू होते ही कई देवी देवता नर रूप में अवतरित होने लगते हैं. यात्रा के दौरान महिलाएं पौराणिक जागरों से दिवारा यात्रा की अगुवाई करती हैं. इस दिवारा यात्रा में आचार्य सुरेन्द्र प्रसाद मैठाणी, अतुल मैठाणी, आशीष मैठाणी, विनोद प्रसाद मैठाणी, भरत प्रसाद मैठाणी व राजेन्द्र प्रसाद मैठाणी समेत कई भक्तगण शामिल हैं.