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जनवरी में ही खिल गया फ्योंली का फूल, जलवायु परिवर्तन की पड़ी मार, रबी की फसल पर मंडराया संकट

Crops affected by climate change उत्तराखंड में जलवायु परिवर्तन के कारण मार्च माह में खिलने वाला फ्योंली का फूल जनवरी माह में ही खिल गया है. जलवायु परिवर्तन पर पर्यावरणविदों ने चिंता जताई है. साथ ही समय पर बारिश और बर्फबारी न होने से काश्तकारों की रबी की फसल भी प्रभावित हुई है.

fyonli flower
फ्योंली का फूल
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By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Jan 16, 2024, 8:37 PM IST

Updated : Jan 16, 2024, 9:31 PM IST

रुद्रप्रयाग: जनवरी माह के दूसरे सप्ताह में भी मौसम के अनुकूल बर्फबारी और बारिश नहीं होने से काश्तकारों की रबी की फसल खासी प्रभावित हो गई है, जिससे उनके माथे पर चिंता की लकीरें पड़ने लगी है. खेत-खलिहानों में मार्च महीने में खिलने वाला फ्योंली का फूल जनवरी माह में खिलने से पर्यावरणविद खासे चिंतित हैं. पर्यावरणविदों का मानना है कि जलवायु परिवर्तन के कारण फ्योंली का फूल निर्धारित समय से दो माह पहले ही खिल चुका है.

मौसम के अनुकूल बर्फबारी न होने से क्षेत्र का शीतकालीन पर्यटन व्यवसाय भी खासा प्रभावित हो रहा है. आने वाले समय में यदि मौसम के अनुकूल बर्फबारी और बारिश नहीं होती है तो मई, जून में बूंद-बूंद पानी का संकट होने के साथ बरसात के समय होने वाले सेब के उत्पादन पर भी खासा प्रभाव पड़ सकता है. मौसम के अनुकूल बर्फबारी और बारिश न होने से प्राकृतिक जल स्रोतों के जल स्तर पर भारी गिरावट देखने को मिल रही है और आने वाले समय में पेयजल की समस्या गंभीर होने की संभावनाओं से इनकार नहीं किया जा सकता है.

रबी की फसल प्रभावित: मदमहेश्वर घाटी क्षेत्र के गैड़ बष्टी के काश्तकार बलवीर राणा और व्यापार संघ के पूर्व अध्यक्ष आनंद सिंह रावत ने बताया कि जनवरी माह के दूसरे सप्ताह में भी मौसम के अनुकूल बर्फबारी और बारिश न होने से काश्तकारों की गेहूं, जौ, मटर व सरसों की फसलें खासी प्रभावित हो चुकी हैं तथा आने वाले समय में काश्तकारों के सामने दो जून की रोटी का संकट बन सकता है.

उन्होंने बताया कि एक दशक पूर्व जनवरी और फरवरी माह में जमकर बर्फबारी होने से यातायात खासा प्रभावित हो जाता था और तुंगनाथ घाटी में भारी संख्या में सैलानियों की आवाजाही होने से घाटी गुलजार रहती थी. मगर धीरे-धीरे मौसम में परिवर्तन होने के बाद से शीतकाल में भी बर्फ कम ही गिर रही है. ऐसे में शीतकालीन पर्यटन व्यवसाय खासा प्रभावित हो गया है.
ये भी पढ़ेंः बर्फबारी न होने से फीकी हुई हिल स्टेशनों की चमक, बिजनेस में आई 70% गिरावट, मुरझाये पर्यटकों के चेहरे

हिमालय गतिविधियों में आ गया परिवर्तन: पर्यावरण विशेषज्ञ देव राघवेन्द्र बद्री ने कहा कि हिमालय में ज्यादा छेड़छाड़ होने से मौसम में खासा परिवर्तन देखने को मिल रहा है. आपदा के बाद से केदारनाथ धाम में चल रहे पुनर्निर्माण कार्य और सेना के मालवाहक हेलीकॉप्टर चिनूक के साथ हेली सेवाओं की लगातार आवाजाही से हिमालय की गतिविधियों में परिवर्तन आ चुका है. इस परिवर्तन के कारण बारिश और बर्फबारी भी नहीं हो रही है. रेलवे प्रोजेक्ट और ऑल वेदर कार्य ने भी पहाड़ के सीने को चीरने का काम किया है. इसके साथ ही निर्माण कार्यों का मलबा नदियों में फेंके जाने से नदियों के अस्तित्व पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं. एक ओर जहां शीतकाल में आग की घटनाओं ने जन्म ले लिया है, वहीं प्राकृतिक स्त्रोत भी सूखते जा रहे हैं. इस विषय पर समय रहते चेतने की आवश्यकता है.

रुद्रप्रयाग: जनवरी माह के दूसरे सप्ताह में भी मौसम के अनुकूल बर्फबारी और बारिश नहीं होने से काश्तकारों की रबी की फसल खासी प्रभावित हो गई है, जिससे उनके माथे पर चिंता की लकीरें पड़ने लगी है. खेत-खलिहानों में मार्च महीने में खिलने वाला फ्योंली का फूल जनवरी माह में खिलने से पर्यावरणविद खासे चिंतित हैं. पर्यावरणविदों का मानना है कि जलवायु परिवर्तन के कारण फ्योंली का फूल निर्धारित समय से दो माह पहले ही खिल चुका है.

मौसम के अनुकूल बर्फबारी न होने से क्षेत्र का शीतकालीन पर्यटन व्यवसाय भी खासा प्रभावित हो रहा है. आने वाले समय में यदि मौसम के अनुकूल बर्फबारी और बारिश नहीं होती है तो मई, जून में बूंद-बूंद पानी का संकट होने के साथ बरसात के समय होने वाले सेब के उत्पादन पर भी खासा प्रभाव पड़ सकता है. मौसम के अनुकूल बर्फबारी और बारिश न होने से प्राकृतिक जल स्रोतों के जल स्तर पर भारी गिरावट देखने को मिल रही है और आने वाले समय में पेयजल की समस्या गंभीर होने की संभावनाओं से इनकार नहीं किया जा सकता है.

रबी की फसल प्रभावित: मदमहेश्वर घाटी क्षेत्र के गैड़ बष्टी के काश्तकार बलवीर राणा और व्यापार संघ के पूर्व अध्यक्ष आनंद सिंह रावत ने बताया कि जनवरी माह के दूसरे सप्ताह में भी मौसम के अनुकूल बर्फबारी और बारिश न होने से काश्तकारों की गेहूं, जौ, मटर व सरसों की फसलें खासी प्रभावित हो चुकी हैं तथा आने वाले समय में काश्तकारों के सामने दो जून की रोटी का संकट बन सकता है.

उन्होंने बताया कि एक दशक पूर्व जनवरी और फरवरी माह में जमकर बर्फबारी होने से यातायात खासा प्रभावित हो जाता था और तुंगनाथ घाटी में भारी संख्या में सैलानियों की आवाजाही होने से घाटी गुलजार रहती थी. मगर धीरे-धीरे मौसम में परिवर्तन होने के बाद से शीतकाल में भी बर्फ कम ही गिर रही है. ऐसे में शीतकालीन पर्यटन व्यवसाय खासा प्रभावित हो गया है.
ये भी पढ़ेंः बर्फबारी न होने से फीकी हुई हिल स्टेशनों की चमक, बिजनेस में आई 70% गिरावट, मुरझाये पर्यटकों के चेहरे

हिमालय गतिविधियों में आ गया परिवर्तन: पर्यावरण विशेषज्ञ देव राघवेन्द्र बद्री ने कहा कि हिमालय में ज्यादा छेड़छाड़ होने से मौसम में खासा परिवर्तन देखने को मिल रहा है. आपदा के बाद से केदारनाथ धाम में चल रहे पुनर्निर्माण कार्य और सेना के मालवाहक हेलीकॉप्टर चिनूक के साथ हेली सेवाओं की लगातार आवाजाही से हिमालय की गतिविधियों में परिवर्तन आ चुका है. इस परिवर्तन के कारण बारिश और बर्फबारी भी नहीं हो रही है. रेलवे प्रोजेक्ट और ऑल वेदर कार्य ने भी पहाड़ के सीने को चीरने का काम किया है. इसके साथ ही निर्माण कार्यों का मलबा नदियों में फेंके जाने से नदियों के अस्तित्व पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं. एक ओर जहां शीतकाल में आग की घटनाओं ने जन्म ले लिया है, वहीं प्राकृतिक स्त्रोत भी सूखते जा रहे हैं. इस विषय पर समय रहते चेतने की आवश्यकता है.

Last Updated : Jan 16, 2024, 9:31 PM IST
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