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सिद्धपीठ कालीमठ में नवरात्रि के पहले दिन भक्तों ने लगाई हाजिरी

चैत्र नवरात्रों के पहले दिन सैकड़ों श्रद्धालुओं ने सिद्धपीठ कालीमठ में पूजा-अर्चना कर मनौती मांग कर विश्व कल्याण की कामना की. देवस्थानम् बोर्ड की ओर से मुख्य मन्दिर सहित सिद्धपीठ कालीमठ का विशेष श्रृंगार किया गया है.

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भक्तों ने लगाई हाजिरी
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Published : Apr 13, 2021, 7:23 PM IST

रुद्रप्रयाग/ऊखीमठ : चैत्र नवरात्रों के पहले दिन सैकड़ों श्रद्धालुओं ने सिद्धपीठ कालीमठ में पूजा-अर्चना कर मनौती मांग कर विश्व कल्याण की कामना की. देवस्थानम् बोर्ड की ओर से मुख्य मन्दिर सहित सिद्धपीठ कालीमठ का विशेष श्रृंगार किया गया है. चैत्र नवरात्रों में विद्वान आचार्यों के वैदिक मंत्रोंच्चारण से सिद्धपीठ कालीमठ का वातावरण भक्तिमय बना हुआ है. इसके साथ ही कोविड- 19 का भी ख्याल रखा जा रहा है और श्रद्धालुओं को सैनिटाइज करवाकर दर्शन करवाए जा रहे हैं.

सुर सरिता मंदाकिनी नदी के वाम पाश्र्व में सरस्वती के पावन तट पर स्थित सिद्धपीठ कालीमठ जहां एक ओर असीम आस्था और आध्यात्म का केन्द्र है. वहीं कालीमठ घाटी में बिखरे अलौकिक सौंदर्य को देखने के लिए देश-विदेश के पर्यटकों व तीर्थयात्रियों सहित स्थानीय लोग नवरात्रों में यहां आकर पुण्य अर्जित कर रहे हैं. चैत्र नवरात्रों के पावन पर्व पर प्रातः काल से देर सांय तक श्रद्धालुओं का हुजूम उमड़ रहा है. स्थानीय पुजारियों एवं आचार्यों द्वारा भगवती काली के मंत्रों और आरतियों से मां काली को प्रसन्न किया जा रहा है.

ये भी पढ़ें :रुद्रप्रयाग के अंतिम गांव गौंडार में जल्द मिलेगी बिजली की सुविधा
मान्यता है कि जो भक्त कालीशिला तथा कालीमठ में आकर तीन रात्रि जागरण कर नवरात्रों में तन-मन से पूजन, नमन तथा ध्यान करता है. उसे अभीष्ट फल की प्राप्ति होती है. इस स्थान में आने के लिए किसी दिन, नक्षत्र तथा मुहूर्त की आवश्यकता नहीं पड़ती है. यहां आकर भक्त कभी भी भगवती काली के साक्षत दर्शन प्राप्त कर पुण्य अर्जित कर सकता है, लेकिन कई रूपों में विराजमान भगवती काली के विभिन्न रूपों की पूजा करने के लिए नवरात्रों को ही उचित माना गया है. क्योंकि काली प्रत्यक्ष फलदा, दर्शनात्स्मरणम् अर्थात शरद तथा चैत्र मास के नवरात्रों मे जो भक्त व्रत, पाठ, कुमारी पूजन, हवन, गणेश पूजन बटुकपूजन करता है.

वह देवी कृपा से सुखी एवं सम्पन्न हो जाता है. इस सिद्धपीठ में तीन युगों से जलती अखण्ड धूनी की भभूत को माथे पर लगाने से जहां कई चर्मरोग दूर होते हैं. वहीं नजरदोष के लिए भी इसे शुद्ध माना गया है. कालीमठ में स्थित महाकाली, महालक्ष्मी, महासरस्वती, गौरीशंकर, सिद्धेश्वर महादेव, भैरवनाथ आदि देवी-देवताओं के मंदिर मौजूद हैं. मंदिर के पुजारियों की मानें तो सिद्धपीठ कालीमठ तथा शक्तिपीठ कालीशिला में साक्षात काली अम्बे, अम्बिके, अम्बालिके सहित विभिन्न रूपों में अपने भक्तों को दर्शन देती है.

भगवती काली के भक्तों ने महाकाली, महालक्ष्मी, महासरस्वती, भैरव नाथ की विशेष पूजा-अर्चना कर तीन युगों से प्रज्वलित धुनी की भस्म धारण कर मनौती मांगी. पंडित विपिन भटट् ने बताया कि सिद्धपीठ कालीमठ में वर्ष भर श्रद्धालुओं का आवागमन जारी रहता है, लेकिन नवरात्रि के पावन पर्व पर श्रद्धालु भारी संख्या में पहुंचते हैं.

चार दिवसीय अगस्त्य महोत्सव एवं बैशाखी मेले का हुआ शुभारंभ
रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रमों के साथ चार दिवसीय अगस्त्य महोत्सव एवं बैसाखी मेले का शुभारम्भ हुआ. मुख्य अतिथि सामाजिक कार्यकर्ता देवेश नौटियाल ने दीप प्रज्जवलित कर मेले का विधिवत शुभारम्भ किया. जनता को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि ये मेले हमारी पौराणिक विरासत एवं संस्कृति के संवाहक होते हैं. इन्हें संरक्षित करना हम सबका दायित्व है. विशिष्ट अतिथि बीईओ अगस्त्यमुनि केएल रड़वाल ने कहा कि पौराणिक मेले हमारी पहचान, हमारी धरोहर है. इन मेलों से हमारी पुरानी परम्परायें जुड़ी होती हैं. इस परम्परा को बनाये रखना हमारा कर्तव्य है.

रुद्रप्रयाग/ऊखीमठ : चैत्र नवरात्रों के पहले दिन सैकड़ों श्रद्धालुओं ने सिद्धपीठ कालीमठ में पूजा-अर्चना कर मनौती मांग कर विश्व कल्याण की कामना की. देवस्थानम् बोर्ड की ओर से मुख्य मन्दिर सहित सिद्धपीठ कालीमठ का विशेष श्रृंगार किया गया है. चैत्र नवरात्रों में विद्वान आचार्यों के वैदिक मंत्रोंच्चारण से सिद्धपीठ कालीमठ का वातावरण भक्तिमय बना हुआ है. इसके साथ ही कोविड- 19 का भी ख्याल रखा जा रहा है और श्रद्धालुओं को सैनिटाइज करवाकर दर्शन करवाए जा रहे हैं.

सुर सरिता मंदाकिनी नदी के वाम पाश्र्व में सरस्वती के पावन तट पर स्थित सिद्धपीठ कालीमठ जहां एक ओर असीम आस्था और आध्यात्म का केन्द्र है. वहीं कालीमठ घाटी में बिखरे अलौकिक सौंदर्य को देखने के लिए देश-विदेश के पर्यटकों व तीर्थयात्रियों सहित स्थानीय लोग नवरात्रों में यहां आकर पुण्य अर्जित कर रहे हैं. चैत्र नवरात्रों के पावन पर्व पर प्रातः काल से देर सांय तक श्रद्धालुओं का हुजूम उमड़ रहा है. स्थानीय पुजारियों एवं आचार्यों द्वारा भगवती काली के मंत्रों और आरतियों से मां काली को प्रसन्न किया जा रहा है.

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मान्यता है कि जो भक्त कालीशिला तथा कालीमठ में आकर तीन रात्रि जागरण कर नवरात्रों में तन-मन से पूजन, नमन तथा ध्यान करता है. उसे अभीष्ट फल की प्राप्ति होती है. इस स्थान में आने के लिए किसी दिन, नक्षत्र तथा मुहूर्त की आवश्यकता नहीं पड़ती है. यहां आकर भक्त कभी भी भगवती काली के साक्षत दर्शन प्राप्त कर पुण्य अर्जित कर सकता है, लेकिन कई रूपों में विराजमान भगवती काली के विभिन्न रूपों की पूजा करने के लिए नवरात्रों को ही उचित माना गया है. क्योंकि काली प्रत्यक्ष फलदा, दर्शनात्स्मरणम् अर्थात शरद तथा चैत्र मास के नवरात्रों मे जो भक्त व्रत, पाठ, कुमारी पूजन, हवन, गणेश पूजन बटुकपूजन करता है.

वह देवी कृपा से सुखी एवं सम्पन्न हो जाता है. इस सिद्धपीठ में तीन युगों से जलती अखण्ड धूनी की भभूत को माथे पर लगाने से जहां कई चर्मरोग दूर होते हैं. वहीं नजरदोष के लिए भी इसे शुद्ध माना गया है. कालीमठ में स्थित महाकाली, महालक्ष्मी, महासरस्वती, गौरीशंकर, सिद्धेश्वर महादेव, भैरवनाथ आदि देवी-देवताओं के मंदिर मौजूद हैं. मंदिर के पुजारियों की मानें तो सिद्धपीठ कालीमठ तथा शक्तिपीठ कालीशिला में साक्षात काली अम्बे, अम्बिके, अम्बालिके सहित विभिन्न रूपों में अपने भक्तों को दर्शन देती है.

भगवती काली के भक्तों ने महाकाली, महालक्ष्मी, महासरस्वती, भैरव नाथ की विशेष पूजा-अर्चना कर तीन युगों से प्रज्वलित धुनी की भस्म धारण कर मनौती मांगी. पंडित विपिन भटट् ने बताया कि सिद्धपीठ कालीमठ में वर्ष भर श्रद्धालुओं का आवागमन जारी रहता है, लेकिन नवरात्रि के पावन पर्व पर श्रद्धालु भारी संख्या में पहुंचते हैं.

चार दिवसीय अगस्त्य महोत्सव एवं बैशाखी मेले का हुआ शुभारंभ
रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रमों के साथ चार दिवसीय अगस्त्य महोत्सव एवं बैसाखी मेले का शुभारम्भ हुआ. मुख्य अतिथि सामाजिक कार्यकर्ता देवेश नौटियाल ने दीप प्रज्जवलित कर मेले का विधिवत शुभारम्भ किया. जनता को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि ये मेले हमारी पौराणिक विरासत एवं संस्कृति के संवाहक होते हैं. इन्हें संरक्षित करना हम सबका दायित्व है. विशिष्ट अतिथि बीईओ अगस्त्यमुनि केएल रड़वाल ने कहा कि पौराणिक मेले हमारी पहचान, हमारी धरोहर है. इन मेलों से हमारी पुरानी परम्परायें जुड़ी होती हैं. इस परम्परा को बनाये रखना हमारा कर्तव्य है.

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