पिथौरागढ़: उत्तराखंड के अनेक भागों में आजादी के इतने वर्षों के बाद भी बुनियादी सुविधाएं नहीं पहुंच पाई हैं. आज भी लोग बुनियादी सुविधाओं के लिए तरस रहे हैं. खासकर राज्य में स्वास्थ्य सेवाओं का बुरा हाल है. सरकार भले ही स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर बड़े-बड़े दावे करती हो, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही है. खास बात यह है कि राज्य में स्वास्थ्य मंत्रालय स्वयं सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत संभाल रहे हैं.
पिथौरागढ़ जिले के मुनस्यारी तहसील का भी कुछ यही हाल है. तहसील के कई सीमांत गांव ऐसे हैं जहां आजादी के 7 दशक बाद भी न तो विकास की कोई किरण पहुंची है और न लोगों की जिंदगी बचाने के लिए एक अदद डॉक्टर. आलम ये है कि प्रेग्नेंट महिलाओं को यहां आज भी खतरनाक रास्तों से डंडों की मदद से रोड तक पहुंचाया जा रहा है.
मुनस्यारी के मालुपाटी में रहने वाली इंद्रादेवी को जब 5 सितम्बर को प्रसव पीड़ा हुई तो ग्रामीणों ने पहले घर पर ही डिलीवरी की कोशिश की, लेकिन नाकाम रहने पर प्रेग्नेंट महिला को आखिरकार अस्पताल लाना ही पड़ा, लेकिन अस्पताल पहुंचने की डगर भी यहां कम मुश्किल नहीं है.
गांव से मुनस्यारी तहसील मुख्यालय लाने के लिए ग्रामीणों ने प्रेग्नेंट लेडी को दो डंडों के सहारे कुर्सी पर बैठा दिया और बारी-बारी से डंडों को कंधा देते रहे. जिस रास्ते से ग्रामीण प्रेंग्नेंट महिला को ला रहे थे वो भी नाम का ही रास्ता है, जरा सी चूक कितनी भारी पड़ जाए कोई नहीं जानता.
ग्रामीणों ने 4 किलोमीटर का खतरनाक पैदल सफर तय कर इंद्रादेवी को मुनस्यारी मुख्यालय तो पहुंचा दिया, लेकिन वहां भी ग्रामीणों को निराशा ही हाथ लगी. तहसील मुख्यालय में डॉक्टर न होने से इंद्रा को 150 किलोमीटर दूर पिथौरागढ़ मुख्यालय लाना पड़ा.
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मुख्यालय आने के लिए भी प्रेग्नेंट महिला को न तो आपातकालीन सेवा 108 मिल पाई और न ही कोई एम्बुलेंस. आखिरकार घर वालों को ही टैक्सी किराये पर लेकर मुख्यालय आना पड़ा. दर्द से कराहती इंद्रा घंटों मौत से जूझती रही और उसके साथ मौजूद लोग भी खुद को खतरे में डालकर उसे बचाने की जुगत में लगे रहे.
करीब 7 घंटे बाद जब इंद्रा महिला चिकित्सालय पहुंची तो तब जान में जान आई. चिकित्सालय में इन्द्रा ने एक प्यारी बेटी को जन्म दिया है फिलहाल दोनों सुरक्षित भी हैं, लेकिन सवाल ये खड़ा होता है कि सबको स्वास्थ्य और सुरक्षा देने वाला हमारा तंत्र आखिर इंद्रा के मुश्किल वक्त में कहां सोया था? ये वाक्या तो कैमरे में कैद हो गया इसलिए सब तक पहुंच भी रहा है, लेकिन न जाने उत्तराखंड दुर्गम इलाकों में ऐसी कितनी इंद्रा हैं, जिनका दर्द समाज के सामने आ ही नहीं पाता.