पिथौरागढ़: उत्तराखंड के पहाड़ों में आमतौर पर सर्दियों में फलों की अनेक किस्में पैदा होती है. इसमें नींबू प्रजाति की एक किस्म होती है चूख. कुमाऊं में इसे चूख जबकि गढ़वाल में इसे पहाड़ी नींबू कहा जाता है. लेकिन अब ये फल भी कुछ पर्वतीय क्षेत्रों से विलुप्त होने की दहलीज पर है. इस नींबू के कई फायदे भी हैं. अक्सर सर्दियों में पहाड़ी क्षेत्रों में चूख की डिमांड बढ़ जाती है.
इस फल को काटकर इसमें भांग, नमक और चीनी मिक्स करके इसे जाड़ों में खाया जाता है. कुमाऊं में इसे शानकर जबकि गढ़वाल क्षेत्र में इसे कचमोली कहते हैं. इसके अलावा चूख का रस निकालने के बाद इसको उबालने की लंबी प्रक्रिया से गाढ़ा कर भंडारण भी किया जाता है. जिसे चटनी, दालों आदि व्यंजनों में वर्षों तक प्रयोग किया जाता रहा है. इसमें पर्याप्त मात्रा में विटामिन सी, फाइबर, मैग्नीशियम, पोटेशियम पाए जाने के कारण हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के साथ-साथ पेट, हार्ट और त्वचा संबंधी बीमारियों के लिए बेहद फायदेमंद है.
प्रदेश के ठंडे क्षेत्रों में नींबू (चूख) अपने आप में एक गुणकारी होने के साथ पहाड़ों में ठंड को कम करने का भी काम करता है. चूख का पेड़ लगभग 10 फीट ऊंचाई तक का होता है, जो दिसंबर और जनवरी माह में तैयार होता है. कोई चूख को खाने के काम में लाते हैं तो कोई रस बनाकर इससे सालों तक प्रयोग में लाते हैं. आज भी कई पहाड़ी क्षेत्रों में चूख का रस निकालकर पकाने का प्रचलन है.
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चूख को पकाने का तरीका: बड़ी संख्या में चूख को तोड़कर रस निकाला जाता है, जिसे एक बड़े बर्तन में घंटों आग में पकाया जाता है. पकाने के दौरान चूख का रस धीरे-धीरे कम होने साथ काला होने लगता है. 15 लीटर चूख का रस पकाने पर 1 लीटर पदार्थ तैयार होता है. जिससे आज भी लोग कांच की बोतल या बर्तन में रखते हैं. खास बात ये है कि ये पदार्थ जो कम से कम पांच साल तक खराब नहीं होता है. कुमाऊं मंडल में 1 लीटर चूख की कीमत 1 हजार रुपये है. चूख को औषधी के रूप में भी काम पर लिया जाता है. जबकि गर्मी के मौसम में चटनी बनाने में काम आता है.
नींबू से होने वाले लाभ: नींबू का रस दाल, साग और चावल पर निचोड़ा जाता है. इसके रस से भोजन स्वादिष्ट बनता है. नींबू का रस रक्तपित्त और स्कर्वी रोग में लाभदायक होता है. नींबू का रस अफरा, अपच, दुर्गन्धयुक्त, डकारें, उदरशूल और उल्टी में भी रोगी को दिया जाता है.