बेरीनाग: उत्तराखंड में घराट यानी पानी से चलने वाले यंत्र से अनाजों को पीसा जाता है, लेकिन आधुनिकता की मार की वजह से घराट अब लुप्त होने की कगार पर हैं. घराट अनाज को पीसने का पारंपरिक तरीका है, लेकिन पिथौरागढ़ की एक छात्रा ने घराट से जुड़ा एक मॉडल तैयार किया है. जो काफी मॉर्डन और बेहतर है. यही वजह है कि छात्रा के मॉडल को राष्ट्रीय स्तर पर जगह मिली है.
लक्षिका का घराट है खास: दरअसल, हिमालया इंटर कॉलेज चौकोड़ी की कक्षा 12 वीं बाल वैज्ञानिक लक्षिका बिष्ट ने पारंपरिक घराट पर शोध करते हुए एक मॉडर्न घराट बनाया है, जो कि कम पानी होने पर भी आसानी से चल सकता है. इतना ही नहीं पारंपरिक घराट की तुलना में काफी तेजी से अनाज को भी पीस सकता है. इसके अलावा जो पानी नीचे की ओर बहता है, उससे बिजली उत्पादन भी किया जा सकता है.
लक्षिका बिष्ट के घराट के मॉडल को राष्ट्रीय स्तर पर जगह मिली है. लक्षिका के मॉडल का राष्ट्रीय विज्ञान महोत्सव के लिए हुआ है. लक्षिका के घराट का मॉडल आगामी 26 दिसंबर से 31 दिसंबर तक शिव छत्रपति खेल परिसर बालेवाड़ी पुणे (महाराष्ट्र) में होने वाले राष्ट्रीय बाल वैज्ञानिक प्रदर्शनी में प्रदर्शित होगा.
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राज्य बाल विज्ञान समन्वयक डॉ. देवराज राणा ने बताया कि 50वीं राष्ट्रीय बाल वैज्ञानिक प्रदर्शनी के लिए चयनित हिमालया कॉलेज चौकोड़ी की छात्रा लक्षिका बिष्ट अपने मॉडल को प्रदर्शित करेगी. इस साल राष्ट्रीय बाल वैज्ञानिक प्रदर्शनी का मुख्य विषय 'सूचना एवं प्रौद्योगिकी' रखा गया है, जिसका उप विषय भी रखा गया है. लक्षिका के इस प्रोजेक्ट के निर्माण में विद्यालय के संरक्षक चंद्र सिंह कार्की, शिक्षक ध्रुव पंत समेत अन्य लोगों ने मदद की.
विलुप्त होते घराटों को देखकर कुछ करने की जागी ललक: लक्षिका बिष्ट शैक्षिक भ्रमण के तहत एक बार बेरीनाग के दूरस्थ क्षेत्र बरसात गांव पहुंची थी. जहां लक्षिका ने जीर्ण क्षीर्ण हालत में एक घराट देखा. जिसके बाद उसने अपने शिक्षकों से इसके बारे में जानकारी जुटाई और नए रूप में इसे विकसित करने की ठानी. यही वजह है कि आज लक्षिका ने ऐसा घराट तैयार किया है. जिसे अब राष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिलने वाली है.
घराट में पीसे अनाजों का आटा माना जाता है पौष्टिक: पानी से चलने वाले घराटों में पीसा आटा काफी पौष्टिक माना जाता है. इलेक्ट्रॉनिक चक्की और मशीनों से तैयार आटा में उतनी पौष्टिकता नहीं होती है, जितनी घराट में पीसी आटे में होती है. पहले लोग अपने गेहूं, मडुंआ, मक्की, चौलाई, फाफर आदि अनाजों को पीसते थे, लेकिन अब घराट ही गायब होने लगे हैं.
क्या लक्षिका के मॉडल को मंच दे पाएगी सरकार? आज के चकाचौंध में घराट विलुप्त हो गए हैं. लक्षिका की ओर से तैयार किया गया घराट आज जहां पर्यावरण की दृष्टि से मिल का पत्थर साबित होने के साथ बिजली उत्पादन और स्वरोजगार के क्षेत्र में भी बड़ा आयाम साबित हो सकता है, लेकिन दरकार है कि सरकार लक्षिका के मॉडल को सराहे और धरातल पर उतारे.
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