कोटद्वार: शहर के तहसील परिसर में जहां कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने पेशावर कांड के महानायक वीर चंद्र सिंह गढ़वाली की प्रतिमा पर माल्यार्पण कर उन्हें याद किया. वहीं, पेशावर कांड के महानायक वीर चंद्र सिंह गढ़वाली के आश्रितों का कहना है कि उन्हें सरकार की ओर से कोई सुविधा नहीं दी जा रही है.
गौर हो कि आज ही के दिन पेशावर में आजादी के लिए लड़ने वाले निहत्थे पठानों पर वीर चंद्र सिंह गढ़वाली ने गोली चलाने से मना किया था. वहीं, पेशावर कांड के महानायक वीर चंद्र सिंह गढ़वाली के आश्रित देशबंधु गढ़वाली का कहना है कि कांग्रेस और बीजेपी उनके नाम को तो काफी भुनाती है लेकिन उनके आश्रितों के बारे में नहीं सोचती. उन्होंने कहा कि उन्हें जो सम्मान मिलना चाहिए वो आजतक नहीं मिल पाया है. राजनीतिक दल कभी-कभार उनकी प्रतिमा पर फूल माला चढ़ा देते हैं, लेकिन जो उनका सपना था वो आजतक भी पूरा नहीं हो पाया है.
देशबंधु गढ़वाली का कहना है कि उन्हें किसी कार्यक्रम में नहीं बुलाया जाता. कई सरकारें आई और गई, लेकिन उनकी सुध किसी ने भी नहीं ली. बता दें कि वीर चंद्र सिंह गढ़वाली के नाम पर सियासत तो बहुत हुई, लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि उनके वंशजों की कोई सुध लेने को भी तैयार नहीं है. सरकारें वीर चंद्र सिंह गढ़वाली को उत्तराखंड का गौरव तो मानती है. लेकिन उनके परिवार को जो सम्मान मिलना चाहिए था वो आजतक नहीं दे पाई है.
पेशावर कांड
भारतीय इतिहास में पेशावर कांड के महानायक के रूप में वीर चंद्र सिंह गढ़वाली को याद किया जाता है. 23 अप्रैल 1930 को हवलदार मेजर चंद्र सिंह गढ़वाली के नेतृत्व में गढ़वाल राइफल के जवानों ने भारत की आजादी के लिए लड़ने वाले नेताओं पर गोली चलाने से मना कर दिया था. पेशावर कांड में गढ़वाली बटालियन को एक ऊंचा दर्जा दिलाया था. इसी के बाद से चंद सिंह को वीर चंद्र सिंह गढ़वाली नाम मिला और उनको पेशावर कांड का महानायक माना जाने लगा. अंग्रेजों की आदेश न मानने के कारण इन सैनिकों पर मुकदमा चलाया गया था. गढ़वाली सैनिकों की पैरवी मुकंदीलाल द्वारा की गई थी, जिनके अथक प्रयासों के बाद उनके मृत्युदंड की सजा को कैद की सजा में बदला गया था. उस दौरान चंद्र सिंह गढ़वाली की सारी संपत्ति को जप्त कर दिया था.