हल्द्वानी: महान नेत्रहीन शिक्षाविद् लुई ब्रेल का शनिवार यानी आज जन्मदिन है. लुई ब्रेल ने एक ऐसी लिपि का अविष्कार किया, जो नेत्रहीन बच्चों को शिक्षा का उजाला देने का जरिया बनी. उन्हीं के नाम पर इसे ब्रेल लिपि का नाम दिया गया. हल्द्वानी के गौलापार के नैब संस्था के नेत्रहीन बच्चे आज भी ब्रेल लिपि से ही पढ़ाई कर अपने जीवन में नया उजाला ला रहे हैं. यही नहीं, ऐसे कई बच्चे हैं जो ब्रेल लिपि के माध्यम से पढ़ाई कर आज कई उच्च पदों पर नौकरियां कर रहे हैं.
नेत्रहीन बच्चे भी मानते हैं कि ब्रेल लिपि से पढ़ाई करने में उनको आसानी होती है. लिपि में बने 6 बिंदुओं के माध्यम से स्वर व्यंजन से लेकर अल्फाबेट तक के शब्दों का चयन कर लेते हैं. उनको ब्रेल लिपि के माध्यम से पढ़ाई करने में कोई कठिनाई नहीं आती है. ब्रेल लिपि एक तरह की लिपि है जिसको विश्व भर में नेत्रहीन बच्चों को पढ़ाने और लिखने में छूकर व्यवहार में लाया जाता है. इस लिपि का आविष्कार साल 1821 में नेत्रहीन फ्रांसीसी लेखक लुई ब्रेल ने किया था. अलग-अलग अक्षरों संख्याओं और विराम चिन्ह को दर्शाते हैं. यह लिपि कागजों पर उभरकर बनाई गई है. इसमें 12 बिंदुओं को 6-6 की दो पंक्तियों को रखा जाता है. इसी लिपि पर आधारित 12 के स्थान पर 6 बिंदुओं के उपयोग से 64 अक्षर और चिन्ह वाली लिपि बनाई गई.
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महान शिक्षाविद् लुई ब्रेल ने 3 वर्ष की उम्र में अपनी दोनों आंखों की रोशनी को खो दिया था. 15 साल की उम्र में उन्होंने ब्रेल लिपि तैयार कर अपने जीवन में रोशनी लाने के साथ-साथ दूसरे नेत्रहीनों के लिए मिसाल बने. आज पूरी दुनिया के नेत्रहीन ब्रेल लिपि से अपने जीवन में नई रोशनी ला रहे हैं.